व्यंग्य "होली के रंग राजनीती के संग" (Sarcasm) Holi colors with politics

             व्यंग्य
होली के रंग राजनीति के संग
  होली के दिन पूछा मैंने नेताजी से
क्यों ?आप नहीं खेलेंगे होली ,
वे बोले, क्यों करते हो भाई हंसी ठिठोली अपनी नीति में कई रंग हैं
परिवर्तन की लहर अभी भी संग हैं
रंग लगाओ हमें तुम ही कौन सा,
देखो हर रंग में रम जाएंगे।
काला छोड़ सब हमें प्रिय हैं,
उसमें हम पहले ही पूर्ण हैं,
सफेद रंग हे प्रिय हमारा
समझो है वो सहारा।
वैसे तो हम रंग जमाते हैं,
वर्षभर होली मनाते हैं ,
भ्रष्टाचार घोटालों के रंगों में
डुबकियाँ  लगाते हैं,
फिर भी बेरंग हम निकल आते हैं।
‌ वर्ष पर हम खेलते हैं होली
‌  जनता बड़ी हैं भोली
अब तुम ही बोलो रंग हम लगाते हैं ना
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।।
‌              संगीता दरक
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#माँ तू ऐसी क्यों है?, #mother why are you like this , #Maa tu aesi kyu h


माँ तू ऐसी क्यों हैं ?

बचपन में जितनी परवाह थी, आज भी वो बरकरार क्यों हैं।
निकल गए हम उम्र की आपाधापी में कितना आगे,
तू आज भी वहीं रुकी क्यों हैं...
माँ तू ऐसी क्यों हैं ?

मैं रिश्तों में उलझ गया,
तेरी पसंद नापसंद को भूल गया,
पर याद तुझे आज भी
मेरी हर बात क्यों हैं...
माँ तू ऐसी क्यों हैं?

छत तेरी हो न हो, बनती हर
मुसीबत में तुम दीवार
समेटकर सारी खुशियाँ
तू हम पर देती वार
ये छत और दीवार सी क्यों है......
माँ तू ऐसी क्यों हैं?

बहू के ताने सुनकर भी देती उसको दुआएं,
बेटे की फिर ले लेती सारी बलाएं
जिसके इंतजार में तूने सही
कितनी पीड़ा
आज उस बेटे से कहती कुछ
क्यों नही है...
माँ तू ऐसी क्यों हैं?

भूल जाएं खुशियों में हम तुझे
लेकिन दर्द से मेरे आज भी
तेरा नाता है,
आह निकलने से पहले जुबाँ पर माँ तेरा ही नाम आता है।
मोम सा हृदय तेरा पाषाण सी सहनशीलता क्यों है
मोम सा ह्रदय तेरा पाषाण सी सहनशीलता क्यों है.......
माँ तू ऐसी क्यों हैं?

बेटे हो भले ही चार
माँ की ममता सबके हिस्से आती,
एक माँ तू है जो किसी के हिस्से में नहीं आती।
एक होकर चारों में बंट जाती क्यों है
माँ तू ऐसी क्यों हैं?

बता माँ, तू ऐसी क्यों हैं?

- संगीता दरक
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होली के रंग जीवन के संग

       
भारत त्योहारो का देश है जानिए मेरे साथ होली  का त्यौहार हम क्यों और कैसे मनाते हैं।

होली के रंग,जीवन के संग
जैसा कि हम जानते हैं भारत देश त्योहारों का देश है  ,और हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई वजह या परंपरा जरूर होती है ,
मार्च महीना चल रहा हैं ,बसंत का आगाज हो चुका है,आम के पेड़ों पर मोड़ (आम के फूल)आ गए हैं ।
और प्रकृति ने चारों और रंग बिखेर दिया है। जीवन में अनेक रंग, रंग ना हो तो बैरंग जिंदगी जिसमें खुशियों का स्वाद ना होता ।
रंगो के त्यौहार होली की ही आज हम  बात करते हैं ,जीवन में रंगों का अपना एक महत्व है ,
हरेक रंग कुछ ना कुछ कहता है,
अंबर नीला  है तो धरती हरी भरी है , हमारे यहाँ तो प्रकृति में ही रंग बिखरा है, तो भला हम रंगों से दूर कैसे रह सकते हैं।
होली का त्यौहार फागुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है एक पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दो भाई थे, हिरण्याक्ष बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था, उसके बढ़ते पापा को देखकर को देखकर भगवान विष्णु ने उनका संहार किया था ।
भाई की मृत्यु से हिरण्यकश्यप बहुत दुखी हुआ ,उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया ,
और उसने अपनी प्रजा से कहा कि वह उसकी पूजा करें ।
उसने भगवान विष्णु को पराजित करने के लिए ब्रह्माजी और शिवजी की  तपस्या की ,और वरदान प्राप्त किया। हिरणकश्यप के एक पुत्र प्रहलाद था,
जो बचपन से ही भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था।
प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करते देखा तो, उसे क्रोध आया।
उसने पुत्र प्रहलाद को कई तरह की यातनाएं दी, लेकिन प्रभु की भक्ति के कारण प्रहलाद को आंच नहीं आती।
हिरणकश्यप प्रहलाद को मारने के लिए युक्ति सोचने लगा, हिरण्यंकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया। हिरण्यकश्यप ने होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रहलाद को  लेकर बैठ जाए।
(होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती)
अग्नि प्रज्वलित होगी तो प्रहलाद जलकर  खाक हो जाएगा, और तुम
बाहर आ जाना ।
लेकिन अधर्म और पाप के कारण होलिका जल जाती है। और भगवान विष्णु का जाप करता हुआ प्रहलाद सुरक्षित बाहर आ जाता है ।
उस दिन से होलिका का दहन किया जाता है ।
अधर्म पर धर्म की विजय होती है और इसी उत्साह में सब लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते है
इस पौराणिक मान्यता के कारण ही आज भी हम होलिका दहन करते है लकड़ियों को रखकर ,
गोबर के थेपले जैसे गोलाकार चक्रियो जैसी बड़बुले की माला और गोबर से ही नारियल बनाकर लड़किया होलिका की पूजा करके चढ़ाती है ।
और उस नारियल को भाई द्वारा फोड़ा जाता है , उसके बाद लड़किया अपनी सहेलियों के घर परमल बाँटती है। उसके बाद संध्या मुहर्त में होलिका पुजन और दहन नगर जन द्वारा किया जाता है उसके बाद जलती हुई होली में गेहूँ की बालियों (नई फसल) को भूनकर खाया जाता है ।
होलिका दहन के अगले दिन धुंलेडी  होती है ,रंगों का ये त्यौहार पंचमी और सप्तमी और रंग तेरस तक चलता रहता है ।
अलग अलग प्रान्त में रंगों का ये त्यौहार खूब उत्साह से मनाया जाता है।
पूर्णिमा को होलिका दहन और उसके बाद धुलेंडी और रंगपंचमी ।
हमारी परम्पराओं की बात निराली हैं ,
हम होली को जलाते भी हैं और उसे शीतल भी करते हैं छः दिनों तक, और ठंडा खाना बनाकर सप्तमी के दिन खाते है और राजस्थान में तो इस दिन होली भी खेलते है ।
  गावँ में तो आज भी चूल्हा( अगले दिन) होली की आग लाकर ही जलाते थे ।
रंगों का ये त्यौहार कई जगह रंग तेरस के दिन भी मनाते है, दिन भर होली खेलते हैं और शाम को भोजन का आयोजन होता है ,जुलुस की भव्यता भी देखने लायक होती है ।
मंदिरों में फागुन के पुरे महीने में भजन और रंग गुलाल की मस्ती छाई रहती है । "बुरा न मानो होली है"  ऐसा कहकर सभी को रंग लगाया जाता है जिससे दुश्मन भी दोस्त बन जाता है और चारों और खुशियों के रंग बिखर जाते है ।
              संगीता दरक
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कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, Please bring my old days back, koi lota d mere bite hue din


कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

देखा मैंने आज बचपन को अपने आसपास ,
मन में जगी फिर से बच्चा बनने की आस,
मिल जाये मुझको सुहाना बचपन आज, बन जाऊँ बच्चा करूँ सब पर राज ।

ना कोई चिंता ना झमेले,
बस खुशियों के रेलम पेले,
पकड़ा -पकड़ी छुपम छुपाई ,
राजा-मंत्री चोर सिपाही खेल निराले,

सामान्य ज्ञान आसानी से बढाऊँ
लैपटॉप पर नए प्रोजेक्ट पाऊँ
फ्रोजन का बैग डाल कांधे पर इठलाऊँ  पिंक ड्रेस पहन कर खुद बॉर्बी डॉल बन जाऊँ

इंद्रधनुषी रंगीन अपनी सारी दुनिया सजाऊँ,
खेलकूद पढ़ाई में हमेशा अव्वल आऊँ,
माता-पिता का सहयोग
और पूरा अटेंशन मैं पाऊँ,
  सुबह से शाम तक मस्ती वाली नियमावली बनाऊँ ।

सारे जहाँ को भूलकर माँ की गोद में आऊँ,
कभी टीचर तो कभी पुलिस बन जाऊँ विशद परिष्कृत मन में सुंदर विचार गढ़ जाऊँ,
  खुशियाँ इतनी की झोली में समेट ना पाऊँ।

  ना ख़्वाहिशों का बोझ,ना भविष्य की चिंता
ना डाइट की फिक्र, बस खुशियों का जिक्र,
वो खुली छत पर सोना, आसमान को निहारना,
टूटते तारे से मन ही मन में कुछ मांगना।

जाने  कितने अरमान भरे,
यह प्यारे -प्यारे दिन,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।
              संगीता दरक माहेश्वरी
                 सर्वाधिकार् सुरक्षित

   

"लेडीज फर्स्ट " ladies first

        
लेडीज फर्स्ट
जी हाँ , "पहले आप"
मैं आपकी और मेरी ही बात करः रही हूँ क्यों न आज हम अपनी ही बात करें आज तो दिन भी हमारा हैं
"हैप्पी वुमन्स डे"
और अपने आप से एक वादा यह भी करे की हर दिन हम अपने आपको याद रखेंगे।
"लेडीज फर्स्ट" सब कहते है  पर हम लेडीज सबसे आगे कहा रहना
चाहती हैं।
ऐसी बात नही की हम महिलाये पीछे हैं
हम में से कई महिलाओं ने सफलता के नये आयाम स्थापित किये हैं
मेरी बात उन बहनों के लिये जो हमेशा कहती है की, हमें अपने लिये समय नही मिलता,
वो अपने आप को सबके बाद देखती हैं
हमे अपने आप को महत्व देना होगा, तभी हमे कोई और महत्व देगा, और हमारे महत्व को समझ पायेगा।
केरियर हो या अपनी पसंद का खानपान या हो पहनावे की बात या हो हमारा पुराना कोई शौक  हम पहले आपने आप को कहा मौका देते है।
हम तो दिन भर में अपने आप से मिल ले वही बहुत है, हमे सबके लिये समय होता है बस हमअपने लिये ही समय नही निकाल पाते ।
हम जिम्मेदारियों के साथ इतना आगे निकल जाते है कि हम आपने आप को   छोड़ देते है। और  जब कभी कोई आपकी पसंद का काम करता है तो आपको याद आता है कि हाँ ये तो मुझे भी पसंद है, चाहे वो कोई हुनर हो या डांस या गाने की हो बात,
जब हमारे बच्चे छोटे होते हैं, तो हम सोचते है की बच्चे बड़े हो जाये।
लेकिन हम ये भूल जाते हैं,
कि जिम्मेदारियो से कभी मुक्त नही हो पाते ,जीवन में कुछ न कुछ लगा रहता है। इसलिये हमे अपने आप को भी साथ में रखना चाहिये।
विवाह से पहले की स्थिति में जब हम होते है तो बात कुछ और होती है और विवाह के पश्चात नयी जिम्मेदारियों के साथ हम आगे बढ़ते रहते है, मैं ये नही कहती की हमे जिम्मेदारियों का वहन नही करना चाहिए बल्कि हमें अपने आपके प्रति भी सजग होना चाहिए।
40 की उम्र पर करने पर हमें शारीरिक चुनोतियों को स्वीकारना होता है,
वैसे भी हम में फिजिकल बदलाव होते है तो हम महिलाये अक्सर मोटापे का शिकार हो जाती है ,
हमे अपने आपको फिट भी रखना होगा
स्वस्थ और खुश रहेंगे तो हर काम बखुबी करः पाएंगे ।
आप सुबह अपने रूटीन से 10 मिनिट पहले उठिये और आँखे बंद करके अपने बारे में सोचिये हर रोज अपने आप से मिलिए  जानिए ,
अपने आप से पूछिए की क्या आप अपने आप से संतुष्ट है ।
दिनभर कितना भी व्यस्त रहे 15 मिनिट अपनी पसंद का काम जरूर करिये ।
अभी भी देर नही हुई है
"जब जागे तब सवेरा" अपने शौक और ख़्वाहिशों को समय देकर सींचिये देखना ये फिर से हरे भरे हो जायेगे
और आप भी मुस्कुराने लगेगी
हम सबमें कोई न कोई हुनर या हममें कोई शौक होता है जो समय के साथ हम उसे समेट देते हैं
अरे  हम सबको सहेजते सवाँरते हैं
चाहे वो घर हो या रिश्तें फिर
हम अपने आपको बिखरा हुआ क्यों रखते है ।    
हर सुबह आप आईने के  सामने जब सँवरती है तब उस चेहरे को गौर से देखिये और उससे हर रोज मिलने का वादा करिये और जब फुर्सत मिले या निकाले उससे बात करिये उसे समझिए 
फिर देखिये हर दिन आपका आपके साथ गुजरेगा। और आप अपने आप में वो ढूँढ़ लेंगी जिसको आपने खो दिया।
अपने आप के साथ रहिये मस्त रहिये।

"बेटी,बहन पत्नी माँ और कई किरदार सबमें समाई,
लेकिन बारी जब खुद की आई,
तो क्यों हम खुद को ही भूल गई"
महिला दिवस की आपको ढेरों बधाई
     संगीता दरक
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होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...