दोस्तों नमस्कार , आपको कितना याद है और कितना भूल गए आपने जो बचपन जिया क्या अभी की पीढ़ी वैसा बचपन जी रही है ।शायद नही ,इसी विषय पर मेरी रचना पढिये और् अपने पुराने दिनों को याद करिये और सोचियेगा की
क्या "भूल गए हम"
भूल गए हम........
पहले भी दो रोटी का जुगाड़ वो करते थे ,
पर हमसे बेहतर वो जीते थे।
जीने की जद्दोजहद में, हम जीने के अंदाज भूल गए । ख्वाहिशों के पीछे,भागते- भागते
रिश्तों के साथ सुस्ताना भूल गए ।
वो खुली छत पर आसमान को निहारना
और तारों को गिनना,
गिनने की गिनती हम भूल गए ।
ना रूठना याद रहा ना मनाना
सोशल मीडिया के चक्कर में ,अपनों
की खुशियों को भूलना हम भूल गए।
छुपम छुपाई,राजा मंत्री चोर सिपाही
पकड़ा और पकड़ी (पुराने खेल)
मोबाइल के गेम के चक्कर में सारे
खेल खेलना हम भूल गए।
समर कैंप और छुट्टियों में भी
क्लासेस इन क्लासेस के चक्कर में,
नाना-नानी के घर की मौज
हम भूल गए ।
बना लिए बड़े-बड़े मकान और
खुशियाँ
जहाँ की खरीद ली
बस मकान को घर बनाना,
और थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए ।
बस थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए।
समय और नई सोच के चक्कर में हम
परिवार को आगे बढ़ाना भूल गए ।
आने वाली पीढ़ी को मामा और बुआ के
रिश्तो में बाँधना हम भूल गए ।
दिया सबको सब कुछ बस थोड़ा सा
वक्त देना हम भूल गए।
याद रहा जीना हमको बस जीने का
अंदाज हम भूल गये।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित