होलिका दहन
आज उठाती है सवाल!
होलिका अपने दहन पर,
कीजिए थोड़ा
चिन्तन-मनन दहन पर।
कितनी बुराइयों को समेट
हर बार जल जाती,
न जाने फिर क्यों
इतनी बुराइयाँ रह जाती।
मैं अग्नि देव की उपासक,
भाई की आज्ञा के आगे नतमस्तक।
अग्नि का वरदान था
जला न सकेगी अग्नि मुझे,
पर जला दिया पाप, अधर्म, अहंकार ने
प्रह्लाद को, मैं जलाने चली नादान
पर बचाने वाले थे उसको भगवान।
सच आज भी तपकर निखरता है,
और झूठ आज भी टूटकर बिखरता है।
देती जो मैं सच का साथ,
ईश्वर का रहता मुझ पर हाथ!!!
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