जी लो..ये जिंदगी,live this life

     जी लो........ये जिंदगी
जान लो जीवन का मर्म,
कर लो अच्छे कर्म।
जो किसी को दुःख पहुँचाओगे,
तो सुख कहाँ से तुम पाओगे।
रिश्तों में तुम कड़वाहट न घोलो,
हँसकर मीठा तुम सबसे बोलो।
क्या तुम लाए क्या ले जाओगे,
अपनी अच्छी यादें ही,
यहाँ छोड़ जाओगे।
छोटा सा जीवन है,
कर्म अच्छे तुम कर लो।
खाते में ढेर सारा अपने 
पुण्य अर्जित कर लो।।।   
                 संगीता दरक
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बेजार सी एक रात,a poor night

         बेजार सी एक रात
बेजार सी एक रात आँखों में,
आज मेरे यूँ उतरती है।
ख्वाबो की खलिश,आँखों को
यूँ खटकती हैं।
ख्वाहिशों की बंजर जमीं में
रेगिस्तान सी पसरी हुई यादे
कैक्टस सी चुभ रही है।
अँधेरी रात आँखों से
कतरा-कतरा बह रही हैं।
बेताब है आँखे मेरी पाने
को आफताब
शायद अब्र उजाले के ले आए।।
               संगीता दरक
          सर्वाधिकार सुरक्षित

ये दिसंबर ,december

  ये दिसम्बर
  अधूरे ख़्वाब और
  पूरी हुई मन्नतों का गवाह है
  ये दिसम्बर।
  मिली हुई मंजिलो और
अधूरे सफर का हमसफ़र है
  ये दिसम्बर।
किसको क्या मिला,किसे है गिला
हिसाब सबका रखता है
ये दिसम्बर।
                     संगीता दरक
                   सर्वाधिकार सुरक्षित

वो शादियां वो रस्म रिवाज ,Those marriages, those rituals,


 कितना कुछ बदल गया समय के साथ-साथ

रीत रिवाज और हमारे पुराने अंदाज  ,पहले के शादी समारोह में खर्च कम और आनन्द अधिक मिलता था और अब सब बदल गया ।

इन्ही सबको दर्शाती मेरी रचना  पढ़िये और याद कीजिये पुराने दिनों को और हो सके तो कुछ  सोचियेगा  🙏🙏


 "वो शादियां वो रस्म रिवाज"

जाने कहा गई,
वो शादियां वो रस्म रिवाज़।
शरमाई सी दुल्हन और दूल्हे के अंदाज।

वो उन दिनों की रौनक ,
और घर को सजाना,
पड़ोसियों के घर मेहमान को ठहराना ।

वो गीत वो बताशों की मिठास,
वो अपनों के साथ,ख़ुशी और अट्टहास।
वो हल्दी की खुशबु , मेहंदी वाले हाथ,
जाने कहा गई वो शादियां वो रस्म
रिवाज़।

वो दुल्है को देखने की होड़,
वो बारात की भीड़।
वो हर द्वार पर दूल्हे का स्वागत ,
जाने कहा गई हर वो बात,
वो शादियां वो रस्म रिवाज़।

वो स्वागत,आदर और सत्कार,
वो भोजन परोसने की मीठी मनुहार,
वो मीठी नोकझोंक वो तकरार।
जाने कहा गई वो शादियां,
वो रस्म रिवाज़।

वो रस्में जिनमें देते नेक,
और सबके पीछे छिपी वजह अनेक,
वो सात फेरों के साथ,
वचनों की सौगात,
जाने कहा गई वो हर बात

रिश्तों के गठबंधन की मजबूत गाँठ,
वो कम खर्च के महंगे ठाठ।
जाने कहा गई वो शादियां वो रस्म रिवाज़।।
                संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित





नये साल में फिर.......

नये साल में फिर
नये साल में फिर ,मुलाकात होगी।
फिर दिल से दिल की बात होगी।
कुछ यादे, कुछ फ़साने,
कुछ हमारे कुछ तुम्हारे।

नयी आशाओं के दीप जलेंगे,
उम्मीदों के फूल खिलेंगे।
फिर नई कोई बात होगी,
नये साल में फिर मुलाकात होगी ।

फिर साँझ ढलेगी सुप्रभात होगी,
आँगन में फूलों की महक होगी,
नये साल में फिर मुलाकात होगी।
      
           संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित


             

अलविदा 2020


अलविदा 2020
बीतने को है एक साँझ,     
होने को है एक नयी भोर।
नया उजाला नयी उमंग,
फैली चारो और।
नया गगन नयी चली है बयार,
खोलकर पंख उड़ने को, 
जिंदगी है बेकरार।
सपनो की कश्ती में सवार,
किनारे की और
बीतने को है एक साँझ
होने को है एक नयी भोर।
नयी ख्वाहिशे नयी उमंगें
ले रही है आकार,
नया सफर नयी मंजिले
भी हैं तैयार।
बीतने को है एक साँझ,
होने को है एक नयी भोर।

  "थमता नही सफर जिंदगी का,
बस मुसाफिर बदल जाते है,
आइने वही रहते,
बस चेहरे बदल जाते है"।
    
             संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित

हाथों की लकीरे, hand lines , hatho ki lakiren


     

क्यों हम कर्म से ज्यादा विश्वास  हाथों की लकीरों पर करते है ।आज इसी विषय पर मेरी रचना पढ़िये और सोचिये और अपने कर्मो पर विश्वास रखिये।🙏 

हाथों की लकीरे
हाथों की लकीरों को हाथों में रहने दे
है मंजूर, तकदीर को जो होने दे
मुकद्दर से जो मिलता है,
वो समेट लिया कर

आरजुएं इतनी भी अच्छी नही होती
पढ़ले तकदीर हर कोई हमारी
इतनी सस्ती भी नही होती

वक्त से पहले और नसीब से ज्यादा
किसी को मिलता नही
काँटों के बिना गुलशन कभी
महकता नही

जो बैठे है तकदीर को पढ़ने वाले
पूछो उनसे अपनी किस्मत का हाल

रख भरोसा तू नेक काम किये जा
तकदीर  पूछेगी  तुझसे बता
तेरी रजा क्या है।।।
               ✍️संगीता दरक
                   सर्वाधिकार सुरक्षित

ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं,These lamps burn themselves

 जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो  दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास  भर दे

ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं

जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।

  मिट जाए, हर मन की त्रास
  रिश्तों में हो भरी मिठास
  अपने कर्मों का हो एहसास
  ये दीये तो ख़ुद  ही जल उठते हैं।

  ईश्वर में हर पल हो आस्था,
  सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
  अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
  ये दीये  तो ख़ुद ही जल उठते हैं।

  परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
  बड़ो को मिलता हो सम्मान
  मिट जाए जग से अज्ञान
   ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
              संगीता दरक
        सर्वाधिकार सुरक्षित
                 

एक वक्त की बात है,once upon a time ,ek vkt ki bat h

  मन कभी-कभी अतीत में चला जाता है और पुरानी बातों को याद करता है मेरी कलम आज यही लिख रही है     

एक वक्त की बात है
जब गाँव शहर सब एक थे,
मुखोटों के पीछे छुपे,
दिल सबके नेक थे।
जब वादों की कीमत पर ,
जलती थी इंसानियत।
और ख्वाबो के सितारों पर,
चमकती थी कायनात।
समय की हवाओं में बहके,
ऐसे दूर हम आ गए।
जहाँ गाँव हुए चकाचोंध
शहर में समा गए।
लोग बदले सोच बदली और
चल पड़े तलाश में मौजमस्ती
बड़ी ईमारत और सुनहरे
ख़्वाब में।
उस कस्तूरी की तलाश में
भटका वो सारा जँहा ।
जब सब बसा सकता था
वही अपना गाँव अपना देश,
अपनी दुनिया ।
भूल गया वो गाँव,
जो एक वक्त देश था।
बदल गये सब लोग,
जैसे कल का उतरा वेश था ।।
एक वक्त की बात है।।।
            ✍️संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित
          

बचपन बचाओ,save childhood, Bachpan bachao


  आप सभी पाठकों को नमस्कार

बाल मजदूरी में बचपन खो जाता है ,

बचपन बचाओ

इसी विषय पर मेरी आज की रचना जो मार्च 1997 में  दैनिक भास्कर समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी , प्रस्तुत है     

(बालशोषण)
     बचपन बचाओ
बचपन में मैं खेला नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
गरीबी का पालन पोषण
करता,
अपने बचपन को उसमें
दफन करता।
कंधों पर मेरे घर का बोझ था।
  शरीर से  कोमल कमजोर था,
सुबह से शाम तक हुक्म चलता था।
बचपन से ही जुल्म हुए मुझ पर कितने। बचपन में मैं खेला नहीं,
स्कूल को मैंने देखा नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
कंधे मेंरे बोझ से दबे हुए,
आंखें मेरी सपनों में डूबी हुई।
मैं भी बच्चा बनना चाहता हूँ,
मैं भी  पढ़ना चाहता हूँ।
बचपन मेरा बीत न जाए।
सपने मेरे बिखर न जाए।
कोई हमारा बचपन बचाओ ।
बड़ों से हमें बच्चा बनाओ।
               संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित

ये जीवन है y jivan h, this is life


          

  जीवन कैसे रचता है बसता है उतार चढ़ाव

 में भी ठहरता नही 

पढ़िये मेरी रचना में बीज का सफर 

जीवन के छोर तक🙏


ये जीवन है......
सृजन को लालायित बीज,
बना इक पौधा
यौवन की दहलीज पे आके,
सजा वृक्ष घना
फैली शाखाएँ चारों ओर,
रचाया संसार अपना
फलता फूलता, सुगंधित, सुरचित,
तन पर अपने नीड़ बनाता

सुख, दुख की छांव और धूप तले
जड़ें गहराईं, शाखाओं ने आकाश नापा
इक ओर किसी डाली के
बिछड़ने का शोक मनाया,
तो दूसरी ओर नयी कोपलों की
परवरिश में खिलखिलाया,

पतझड़ और बहार के मौसम को 

उसने हरदम यूँ सहज अपनाया।
                         

                   संगीता दरक
                 सर्वाधिकार सुरक्षित

आम आदमी हूँ मैं

सबसे सरल और सीधा लेकिन मुश्किलों भरा जीवन जीने वाला आम इंसान ।
लेकिन उसे  अपने आप को हरेक परिस्तिथियों में खुश रखना आता है यही सब मेरी रचना में पढ़िये.....

         आम आदमी हूँ
जानता हूँ, जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती हैं।
जीएसटी और नोटबंदी को
त्यौहार सा मना लेता हूँ।
दिये हो तो रोशन कर देता हूँ
वरना ,अंधेरों से काम चला लेता हूँ।  आम आदमी हूँ,ख्वाहिशें
बेचकर गुजारा कर लेता हूँ।
उलझता नहीं मैं अच्छे दिनों की
प्यास में।
जानता हूँ, बरसो बैठा रहा
मेरा राम भी इसी आस  में ।
काले और सफेद(धन)
के चक्कर में नहीं पड़ता ,
मिट्टी में सोना उगाना जानता हूँ।  
जानता नहीं मैं, राजनीति के
दाँव पेच लेकिन 56 इंच का
सीना लिए पहरेदारी करता हूँ
सीमा पर ।
आम आदमी हूँ साहब जीना जानता हूँ
आता है मुझे, अपनी ख्वाहिशों
पर पैबंद लगाना ।
देता हूँ बच्चों को आसमाँ उड़ने के
लिए पर , बंदिशें आरक्षण
की भी जानता हूँ।
सामान्य सी मुस्कान लिए आरक्षण
का दर्द भी झेल जाता हूँ।
हँसता हूँ हर पल जिंदगी जी लेता हूँ। जानता हूँ , जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती है मुझे !!!
               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                     सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरा स्वाभिमान,my self respect

     मेरा स्वाभिमान
लाई थी साथ ,मैं
अपने स्वाभिमान को।
पर साथ अपने रख ना पाई ।
स्वाभिमान के साथ रिश्तों को
निभाना कठिन लगता है ।
स्वाभिमान जब साथ होता है,
तो रिश्ते सिमटने लगते है।
और जब अपने स्वाभिमान
को पुराने कपड़ो की
तह के नीचे रख देती हूँ तो ,
सब सहज हो जाता है
         संगीता दरक©

दिल❣️की बात Dil ki bat

 

           दिल

सीने में दिल है मेरे,धड़कता भी है 

पत्थर न समझों, इसे पिघलता भी है

                    संगीता दरक©

भूल गए हम.....Bhul gay hum , we forgot .

दोस्तों नमस्कार , आपको कितना याद है और कितना भूल गए  आपने जो बचपन जिया क्या अभी की पीढ़ी वैसा बचपन जी रही है ।शायद नही ,इसी विषय पर मेरी रचना पढिये और् अपने  पुराने दिनों को याद करिये और सोचियेगा की  क्या "भूल गए हम"


भूल गए हम........

पहले भी दो रोटी का जुगाड़ वो करते थे ,पर हमसे बेहतर वो जीते थे।

जीने की जद्दोजहद में, हम जीने के अंदाज भूल गए ।                  

ख्वाहिशों के पीछे,भागते- भागते
रिश्तों के साथ सुस्ताना भूल गए ।

वो खुली छत पर आसमान को निहारना और तारों को गिनना,

गिनने की गिनती हम भूल गए । 


   ना रूठना याद रहा ना मनाना 

सोशल मीडिया के चक्कर में ,अपनों

 की खुशियों को भूलना हम भूल गए।

छुपम छुपाई,राजा मंत्री चोर सिपाही 

पकड़ा और पकड़ी (पुराने खेल)

मोबाइल के गेम के चक्कर में सारे 

खेल खेलना हम भूल  गए। 

   समर कैंप और छुट्टियों में भी 

क्लासेस इन क्लासेस के चक्कर में,

नाना-नानी के घर की मौज 

हम भूल गए । 

 बना लिए बड़े-बड़े मकान और 

खुशियाँ

 जहाँ की खरीद ली     

बस मकान को घर बनाना, 

और थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए ।   

बस थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए।

समय और नई सोच के चक्कर में हम परिवार को आगे बढ़ाना भूल गए ।  

   आने वाली पीढ़ी को मामा और बुआ के रिश्तो में बाँधना हम भूल गए ।

दिया सबको सब कुछ बस थोड़ा सा
वक्त देना हम भूल गए।                 

याद रहा जीना हमको बस जीने का

 अंदाज हम भूल गये।।


    संगीता दरक

सर्वाधिकार सुरक्षित

#बधाई हो बेटा हुआ-#Congratulations son is born- #badhai ho beta hua

"बधाई हो बेटा हुआ" ये शब्द कितनी बार सुनने को मिलते है हमे ,आज बेटिया बेटो से कम नही है लेकिन आज भी सोच बदली नही है यही  दर्द बताने की कोशिश की है मैने उम्मीद करती हूँ आप सबको पसंद आएगी ।

बधाई हो ....बेटा हुआ
ख़ुशी होती है, मुझे जब सुनती हूँ।
की उसके बेटा हुआ।
इसलिये,खुश नही होती मैं,
की उस माँ के कुलदीपक हुआ।
बल्कि इसलिये की उस माँ को
अब नही सहना पड़ेंगे ताने
नही होगा अब उस पर
नुकीले व्यंग्यो से प्रहार
मिलेगा अब उसकी बेटियो
को थोड़ा प्यार
अब नही सहना पड़ेगी
उसे प्रसव पीड़ा
बेटे के इंतजार में अब
मासूम बेटियाँ
नहीं आएगी इस जीवन में
जिनकी परवरिश
भी नही हो पाती

               ✍️संगीता दरक
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

#मुझे गर्व है , #proud of my culture

भारत त्योहारों का देश है, मेरे देश की बात ही अलग है आप भी अपनी संस्कृति को पढ़िये मेरे साथ मेरी रचना में

मुझे गर्व है ........
मुझें गर्व है मेरे सनातन धर्म
और संस्कृति पर
हरेक त्यौहार कुछ न कुछ कहता है
जीवन में रंग भरता रंगों का त्यौहार
तो रिश्तो की मिठास को
बढ़ाता रक्षा पर्व
और करता अँधेरे का नाश
दीपो उत्सव
हर त्यौहार की बात निराली है
त्यौहारों की मिठास और अपनों
का साथ जीवन में लाता है उमंगें नई
हर त्यौहार की बात निराली है
कई सपनों और ख्वाहिशो की
नींव तो दीवाली है
कितना भी हो हम परेशां पर
त्यौहार के आने से मन में
भर जाता उल्लास
बिछड़े अपने भी घर लौट आते है
सारे त्यौहार में अपने मिल जाते है
जीवन को गति देते , ये त्यौहार
ईश्वर में आस्था को दर्शाते
ये त्यौहार
छोटे बड़े सबकी खुशिया का कद
बढ़ाते ये त्यौहार
क्यों न हो हमे गर्व ,
हर त्यौहार हमे जीने का संदेश देते है
👏👏🙏

            संगीता दरक©

मैं दीया माटी का , I am a lamp of clay , M diya mati ka


एक संवाद दीये और मेरे बीच

         "मैं दीया माटी का "
एक दिन पूछा मैंने, दीये से
क्यों जलते हो तुम।
दीया बोला,मैं तो उजाले के
लिए तेल और बाती को साथ
लिएबरसों से जल रहा हूँ ।
आज भी अंधकार को मिटा रहा हूँ। लेकिन यहाँ आदमी-आदमी
को जला रहा है।
मैंने कहा बने हो मिट्टी के,
क्या इस बात से अनजान हो।
दीया बोला मिट्टी का हूँ
जानता हूँ मैं जलता,तपता हूँ ।
तभी तो बिखरकर नए
साँचे में ढलता हूँ।
अपने अस्तित्व को पहचानता हूँ।
तुम इंसानों की तरह
अपनी मिट्टी को नहीं भूलता।
मैंने कहा बिकते हो बाजारों में
फिर इतने अरमान क्यों ?
आएगा एक हवा का झोंका,
फिर इतना अभिमान क्यों,
दीया बोला बिकता हूँ बाजारो में,
लेकिन किसी अमीर की
जागीर नहीं ।
गरीब के घर में भी जलता हूँ ।
उसके सुख-दुख के साथ
चलता हूँ।
मेरे उजाले को तुम बाँट
नहीं पाओगे।
अँधेरे के  खिलाफ हर
जगह मुझे ही पाओगे ।
आए चाहे बयार या कोई
तूफाँ मैं अपने कर्म से नहीं हटता
हाँ होता है मुझे भी अहंकार जब अलौकिक कान्हा के सामने
अपनी ज्योति बिखेरता हूँ
मिट्टी का दीया हूँ, चारों और
प्रकाश बिखेरता हूँ
                संगीता दरक
          सर्वाधिकार सुरक्षित

दीपावली के बहाने ,excuses of diwali

  दीपावली के बहाने......
छोड़कर सारे अफसाने 
मिल जाये हम,
                  इसी बहाने।
मन का मैल करें दूर
मन में चमकाएँ
जीने का नूर,
         इसी बहाने ।
दिल में प्यार की ज्योत जलाए
मिलकर खुशियाँ मनाए हम,
              इसी बहाने ।
करें मंगल कामना हम
भूल कर सारे गम,
                  इसी बहाने।
गम का वनवास करें आज
हम खत्म,
अब ना करें कोई किसी
पर सितम,
आज खाए हम यह कसम,
            इसी बहाने ।
दीप बनकर प्रकाश
फैलाए ,
रोशनी की राह दिखाए हम,
इसी बहाने।
छोड़कर सारे अफसाने
मिल जाए हम
                  इसी बहाने।

           संगीता दरक
       सर्वाधिकार सुरक्षित

#मैं जिंदगी हूँ, #life

""मैं जिंदगी हूँ, कोई बोझ नही""
दो वक्त की रोटी,
और कुछ लिबास
क्या मांग लिया तुझसे ,
मैंने ऐसा खास
जो तू हजार ख़्वाहिशों
के बीच मुझे
जीना ही भूल गया
                     संगीता दरक©

#लाखो चाँद ,#millions of moons

आज चाँद को देखकर चाँद बनने की कोशिश ...हाँ सच में पढ़िये मेरी रचना

       लाखो चाँद
लाखो चाँद, आज टकटकी लगाए
देखेंगे उस चाँद को।
और मांग लेंगे खुशियाँ जहाँ की
करता वो रोशन आसमाँ को ,
तो हम भी इस जमीं की रौनक है।
तू हर रोज घटता बढ़ता है,
तो हम पर भी,
रिश्तों का रंग चढ़ता रहता है।
तेरी शीतलता का जवाब नही,
और हम सादगी और सृजनता में बेमिसाल है।
आज तेरे दर्श को हम यूँ बेताब है,
हमारे लिए तो तू आज  आफ़ताब है।
ऐ चाँद यूँ ही तू रोशन रहना,
और जोड़िया हमारी
सलामत रखना
                    संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित

#मन के दरिया,#river of mind 

मन के दरिया में
भावों की हिलोर उठी
मैं बांधने लगी, शब्दों के पूल
इस मन को,
उस मन तक मिलाने के लिये।।
                    ✍️संगीता दरक©

#जीवन ये चल रहा है,#life goes on

      जीवन ये चल रहा है
जीवन ये कैसा चल रहा हैं,
अपना ही अपने को छल रहा हैं।
हर तरफ कैसा ये माहौल है,
हरेक चेहरे पर उठता एक सवाल है।
बढ़ती महंगाई और जीवन की जिम्मेदारियाँ,
कम आमदनी में सबकी (सारे खर्च की) हिस्सेदारियां।
वो परिवार के साथ में बैठना,
और दिल खोलकर बातें करना।
अब तो सब सपना सा हो गया हैं
वक्त की अपनों के पास,
कमी सी हो गई है।
दुनियां की भीड़ में,
सुकूँ को तलाशता है आदमी।
अपनों के बीच अपनेपन
को तरसता है आदमी।
अपने आप से देखो
भाग रहा है आदमी।
और अंत में...
तलाश रहा हूँ मैं भी वही,
सुकून इस जहाँ में
शायद नयी कोई भोर होगी
और जीवन मेरा उजाले
से भर जायेगा।।
                   संगीता दरक
                सर्वाधिकार सुरक्षित

कुछ पल सुस्ता लूँ

जीवन की भागदौड़ से जब मन थक जाता है तब मन कुछ यूँ कहता है

         "कुछ पल सुस्ता लूँ"
  जीवन की आपा धापी में,
   कुछ पल सुस्ता लूँ ।
करके साधना, 

नित्य की ये
दौड़ धुप में अपने आप को
खो आया ।
अपने आपको अपनी
अंतर आत्मा से मिलवा दूँ।
करके शांत चित्त को ,
आज समझा दूँ।
नश्वर है ये जीवन,इसे बतला दूँ।
जीवन की हो साँझ,
उससे पहले थोड़ा पुण्य कमा लूँ
डूबती है ज्यों ये साँझ
जीवन भी खो जायेगा
एक दिन फिर होगी भोर
फैलेगा उजियारा चहूँ और
          संगीता दरक
      सर्वाधिकार सुरक्षित

#साथी हाथ बढ़ाना ,#partner raising hand

     
     साथी हाथ बढ़ाना
खुशियाँ हो चाहे गम हो,
दौलत ज्यादा हो या कम ।
तू समझ ना ,
किसी को छोटा या बड़ा
सर पर तेरे आसमाँ,
और तू नीचे खड़ा।
करः सके तू किसी का भला, तो तू करः
और बढ़ा सके जो हाथ,
किसी को बढ़ा लिया करः
साथी हाथ बढ़ाना ,यही सबसे कह दिया कर
एक अकेला कुछ न करः पायेगा
पर जब सब मिलकर हाथ बढ़ाएंगे तो
ना मुमकिन  भी मुमकिन बन जायेगा
                   संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित

#कोई राम बनकर तो आये # Ram #God

"रावण जलने को तैयार नही"
रावण बनने को, और जलने को
अब की बार तैयार नही।
कहता है मेरे समक्ष ,मुझे
जला सके वो राम नही ।
हर बार तो मैं जलता हूँ अपने पाप सहित मिटता हूँ,
किया था मैंने तो सीता का हरण
उस पाप की वजह से बरसों से मैं जल रहा हूँ
लेकिन जो पापी ,मासूमो के साथ करते है खिलवाड़ और  
लेते है जो कानून और लंबी तारीखों की आड़
मुझसे बढ़कर पापी हे वो  इस धरा पर
क्या उनका संहार नही हो सकता
मुहँ में राम बगल में भी हो राम क्या ये नही हो सकता।
जिसने अपनी सारी बुराइयों को हो जलाया
वो आकर मुझें बनाये और अंत में मुझे  जलाये।
                     संगीता दरक
                 सर्वाधिकार सुरक्षित

#आज फिर रावण जलेगा#dashhara festival

दशहरा पर्व"                  
आज फिर रावण जलेगा !
फिर हम में से ही कोई,
रावण बनायेगा।
 सारी बुराइयों को उसमे समाएगा। फिर,उसे राम बनकर चिंगारी
लगायेगा
लेकिन क्या?
ये सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा ।   
हम यूँ ही तमाशा देखते रहेंगे ।   
 बनाने वाले रावण बनाते रहेंगे ।    
  हम रावण को तो जलाते हैं।
लेकिन ? बनाने वाला जो
आज भी हमारे साथ खड़ा है !
उसका क्या??🤔🤔

               ✍️संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित

#मैं सामान्य #General#

मैं सामान्य , ये हर सामान्य व्यक्ति का ऐसा दर्द है जो बंया करना जरूरी है पढ़िये और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे 

मैं सामान्य (General)
मैं सामान्य,मेरी हर बात सामान्य।
जन्म लेते ही एक शब्द,
पीछे पड़ जाता है,
और सारी सुविधाओं के बीच,
अड़ जाता है।
मैं सामान्य,रहते हुए आगे बढ़ता हूँ।
परीक्षा हो या नोकरी का फार्म,
रेलवे का रिजर्वेशन,
हो या हो राशन कार्ड
"सामान्य" का ठप्पा लगा रहता।
मैं सामान्य सी बात समझता,
और जी जान लगाकर पढ़ता,
आगे बढ़ता पर बढ़ ना पाता।
कर जीने का मैं भी चुकाता हूँ।
फिर भी सारी सुविधाओं से
वंचित रह जाता हूँ।
जब हर बात में,
मैं सामान्य तो बुद्धि में क्यों ?
मैं खास हो जाता हूँ।
क्यों मेरे 60% और उनके 40%
क्या मैं विलक्षण हूँ ,
यदि हाँ तो मैं उच्च हूँ
फैसला आपका है,बताइये
मुझे सामान्य श्रेष्ठ बनकर जीना है।।।
           संगीता दरक
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#जनता बेचारी,#poor people

           जनता बेचारी😇
रफाल और अगस्ता के बीच में
फंसीबेचारीजनता                             
 लुभावनी बातें और
पाँच साल का शासन,
करोड़ों की हेरा फेरी,
ऊपर से सीना जोरी !
जनता केश लेस, और
नेताओं की ऐश ।
हर बार के लिये नया मुद्दा और
आकर्षक चुनावी घोषणा पत्र ।
भोली भाली जनता आ जाती
बहकावे में, और करे भी तो क्या ।
इनकी घोषणाएं लगती  प्यारी,
पड़ती हमारी  जेब पर ही भारी।
नये दाँव पेच लेकर  हर बार तैयार है ।
देश की किसी को दरकार नही।
सत्ता की लालसा में एक दूसरे को
कोसने में लगे हैं।
लगी हो आग कहीं भी ये तो अपनी रोटियां सेंकने में लगे है
सत्ता और कुर्सी की लालसा में इनको इतना गिरा दिया।
हर बार कोई मुद्दा इनको मिल ही जाता हे
ऐसे ही इनको पाँच साल का शासन मिल जाता है।।।।
              संगीता दरक
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व्यंग्य :- वाहः नेताजी,

   व्यंग्य वाह नेताजी 

आज सुबह मुझसे,
नेताजी ने नमस्कार किया। 
उस दिन से मेरे साथ चमत्कार हुआ ।
जो मुझसे, बोलने में कतराते थे ।
मुझे देख, जरा ज्यादा इतराते थे।
उन्होंने आकर मुझसे पूछा ,
क्यों भाई क्या बात है।
बड़े बड़े तुम्हारे साथ हैं ,
पहचानते हैं क्या ?
मैं बोला पहचानते क्या,
जानते हैं, घर पर आते जाते हैं।
वे बोले चलो अच्छा है,
तुम भी अपने वाले हो ।
मैं सोचता रहा ,और
मन ही मन मुस्कुराया।
और कह उठा ,
वाह क्या चीज  है नेता।।।
                संगीता दरक
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जैसे खाली पन्ने, blank pages

      जिंदगी जैसे खाली पन्ने
लफ्जो से पूछो कोई,
क्या कुछ सहा है
कभी ख़ामोशी से ,तो कभी चीखों से
सब्र से कभी तो बेसब्री से
मतलब से कभी बेमतलब होने लगे
आजकल बड़े खामोश रहते है
लफ्ज किसी से कुछ कहते नही है,
और बस में किसी के रहते नही
अहसासों की कमी सी हो गई है,
जिंदगी खाली पन्ने सी हो गई है।
                     संगीता दरक
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ये दर्द

रिसता है ये दर्द धीरे -धीरे
पिघलकर आँखों से उतरता है
और कागज पर आकर शब्दों
में ढल जाता हैं।
                संगीता दरक© 

#हे माँ सुनो पुकार,# maa ,

   आजकल का माहौल देखकर मन दुखी हो जाता है और माँ के दरबार में अर्जी लगाती हूँ मैं कुछ इस तरह पढ़िये मेरी पार्थना  

"हे माँ सुनो पुकार"
हे माँ अष्ट भुजाओं वाली ,
आओ इस कलयुग की धरा पर।
इन मानव वेष में बसे,
भेड़ियों का करने संहार।

पूजते हैं तुझे,करते है
तेरी आराधना।
पर समझते नही
ममत्व की भावना।

हर माँ की आँख भीगी है यहाँ,
रोती ,बिलखती है बेटियां यहाँ।

दे दो माँ इतनी शक्ति हमें,
डटकर करे मुकाबला।
करे अस्मत पर जो हमारी प्रहार,
करः दे हम उसका संहार।

सत् दे दो आजकल की नारियों को

 लज्जा को गहना ,जेवर को अपना हथियार बना ले।

तन को अपने स्वस्थ और मन को

 सुंदर सृदृढ़ बना ले।

हर दिन हो नवरात्रा,ऐसा माहौल
बना दो।
माँ करो अब ऐसी कृपा
हर नर हो नारायण,
और नारी हो देवी।
                     संगीता दरक
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#हाय रे महगांई, #hi re inflation

           "हाय रे महंगाई "
  सुबह से शाम तक दौड़ रहा है 
आदमी
 पता नहीं ,किसके पीछे भाग
रहा है आदमी
  जितना पास जाता है, उतना
दूर होता है
    पता नहीं, किसके पीछे भाग
रहा है आदमी
         ऐसी ही है महंगाई.....
   सुबह से शाम तक करती है
पीछा महंगाई
चीनी से लेकर दाल तक छाई हैं  महंगाई

  काजू ,बादाम तो मिलते नहीं थे
अब दाल रोटी भी नसीब
नहीं होती।  
बच्चो को पढ़ाना हो गया है भारी
 सैलेरी महीने से पहले हो जाती है
पूरी

आते है त्यौहार ,मनाने पड़ते है।
  घर में तेल हो न हो तो भी दीये जलाना पड़ते है

जेब में पैसे हो न हो,बच्चो को
तोहफे दिलाने पड़ते है
   घर का खर्च चलाना हो
गया है मुश्किल
      आसमान चढ़ती महंगाई ने
दिन में तारे दिखा दिये।
            ✍️संगीता दरक
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वक्त हूँ. Wakt hu , i am the time

 वक्त ,समय जी हाँ बहुत कीमती है आजकल किसी को भी समय नही है हर कोई कहता है कि समय नही है  अपने अपनों के लिये भी वक्त नही निकालते है और कभी बेवजह भी खर्च कर देते है ।
पढ़िये मेरी रचना 
   
     वक्त हूँ मैं

वक्त हूँ
वक्त हूँ ,यूँ बेहिसाब खर्च न किया कर,
    कभी अपनों से मिलकर ,
   अपनी खबर भी लिया कर ।
ख्वाईशो में अपनेें,
सपने उनके भी मिला लिया कर ,
देखकर जो तुझे जीते है,
कभी उनके लिये भी जी लिया कर ।
बुन लिया कर ख़्वाब,उनके भी
 जो  आज भी पैबंद
अपने खुद सीते है।
 बेशक उड़ तू आसमानों में,
पर पैर जमी पर रखा कर
साथ उनके भी कभी
चल लिया कर ।
जिनके बगैर तू चलता न था ।
छत है ,वो घर की दीवारों से
लगाये रखना ।
आशीष उनका अपने
हिस्से में बचाये रखना।
वक्त हूँ ,यूँ बेहिसाब खर्च
न  किया कर ।
पर अपनों पर यु बेगानो
सा हिसाब ना लगाया कर!!
वक्त ही हूँ अपने  - अपनों
पर बेहिसाब खर्च किया कर!!
                    संगीता दरक माहेश्वरी
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आज की ताजा "खबर",News

  खबर की भी  खबर लेना चाहिए क्यों की आजकल खबर अपना किरदार अच्छे से नही निभा रही है
पढ़िये और गौर करियेगा 
    
 
       आज की ताजा खबर
खबर को अब, खबरदार होना पड़ेगा।
वरना खबर की,
खबर लेते देर नही लगेगी।
खबर भूख से निकली है,
तो रास्ते में ही दम तोड़ देगी।
और ख़्वाहिशों की खबर होगी,
तो दूर तलक जायेगी।
ऐ खबर ,तेरे कांधे पर ना जाने कितने हाथ होंगे ,
तुझे सबकी खबर रखना है।
कितनी बंदूके तेरे कांधे पर होगी,
सबका हिसाब तुझे देना होगा ।
ऐ खबर तू न्याय के लिये निकली है ,
तो तुझे धैर्य रखना होगा ।
तूझें सच और झूठ के पलड़े में
कितनी बार तोला जायेगा ।
बस तुझे अपनी खबर को ,
खबर बनने से रोकना होगा।
खबर तेरा वजूद तेरी
औकात तय करेगी ।
कितने दिन तुझे सुर्खियों में रहना है,
ये तेरे लिबास तय करेंगे
   हर खबर पर है नजर सबकी
घात लगाये  बैठे है ,खबर की ,
खबर को खबरदार करः दो,
देखो खबर बनने से!!!! 
             संगीता दरक
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होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...