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व्यंग्य "होली के रंग राजनीती के संग" (Sarcasm) Holi colors with politics

             व्यंग्य
होली के रंग राजनीति के संग
  होली के दिन पूछा मैंने नेताजी से
क्यों ?आप नहीं खेलेंगे होली ,
वे बोले, क्यों करते हो भाई हंसी ठिठोली अपनी नीति में कई रंग हैं
परिवर्तन की लहर अभी भी संग हैं
रंग लगाओ हमें तुम ही कौन सा,
देखो हर रंग में रम जाएंगे।
काला छोड़ सब हमें प्रिय हैं,
उसमें हम पहले ही पूर्ण हैं,
सफेद रंग हे प्रिय हमारा
समझो है वो सहारा।
वैसे तो हम रंग जमाते हैं,
वर्षभर होली मनाते हैं ,
भ्रष्टाचार घोटालों के रंगों में
डुबकियाँ  लगाते हैं,
फिर भी बेरंग हम निकल आते हैं।
‌ वर्ष पर हम खेलते हैं होली
‌  जनता बड़ी हैं भोली
अब तुम ही बोलो रंग हम लगाते हैं ना
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।।
‌              संगीता दरक
‌            सर्वाधिकार सुरक्षित

बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts

 शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि  यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान         संगीता दरक माहेश्वरी