सपनों को तो साथ चाहिए

            सपनों को तो साथ चाहिए

            सपनों को तो साथ चाहिए 

           बस एक अंधेरी रात चाहिए 

           आएंगे और समा जाएंगे 

     पलकों तले और कभी बह जाएंगे अश्को में  

       मैं  कह उठती हूँ

              क्यों आते हैं मुझे सपने 

               जो नहीं है मेरे अपने

            कभी लगता है इन से डर 

               भागती हूँ उनसे दूर 

     मगर फिर सोचती हूँ यही तो मेरा सहारा है

      क्यों कि हकीकत तो मुझसे दूर भागती है

                 संगीता दरक माहेश्वरी©


बात का बतंगड़, talk about


 बात का बतंगड़ !

क्या सच में बनता है बात का बतंगड़
और राई का पहाड़
क्या सच में बात बिगड़ती सँवरती है
बात- बात होती है क्या हर बात
 में जज्बात होते हैं
या होता है शब्दो का गुच्छा
जो कभी उलझा देता है तो कभी सुलझा देता है
क्या सच में बाते कड़वी और मीठी होती है
होता है इनमें स्वाद,
कहते है हम तोल कर बोल, तो
क्या सच मे इन बातों का होता है कुछ मोल
क्या सच में बात करने से जी हल्का हो जाता है
मन मे रोष हो या हर्ष बात करने से होता है व्यक्त
कहते है कि
"बात निकली है तो दूर तलक जायेगी
सच मे बात निकली है तो दूर तलक जायेगी
पर किसी को ज़ख्म तो किसी को मरहम दे जायेगी
कही अनकही बाते मतलब बेमतलब की बाते
तेरी ,मेरी, इसकी,उसकी, बेहिसाब बाते
कभी चुप्पी साधे ,तो करती कभी  शोर ये बाते
ये बाते चारो और बिखरी हुई
जिंदगी चलती इनके इर्दगिर्द
सच मे ये बाते........
               

 संगीता दरक माहेश्वरी
  सर्वाधिकार सुरक्षित 

ख्वाहिशो की पतंग kite of desire

 ख्वाहिशो की पतंग को, कोशिश के मांजे से उमंगो की ढील देते रहना।

ऊंची उड़ान भरते हुए डगमगाने लगो तो, बढ़ते कदम थोडे पीछे ले लेना।
ओर फिर पूरी ऊर्जा से ऊँची उड़ान भर लेना,
हवा भी विपरीत होगी, बस थोड़ा धैर्य से काम लेना।
और देखना, फिर कोशिशें तुम्हारी गगन को चूम लेगी।
              संगीता दरक©

मंजिले वही थी #shyari status#

 मंजिले वही थी हमने  राहें बदल ली,

कारवां वही था हमने हमराज 
बदल लिया ,
फिजा भी वही मौसम भी वही था,
हमने अपना मिजाज बदल लिया ।
            संगीता दरक माहेश्वरी©

आज बड़े दिनों के बाद




 आज बड़े दिनों के बाद
आज बड़े दिनों के बाद
समय को चुराकर
भावो को समझाकर
शब्दों को मनाकर 
आज बड़े दिनों के बाद
कविता लिखने का मन बनाया
कलम ओर कागज को साथ बैठाया
मन में उमड़ने लगे है  कई भाव
लिखूं जिंदगी की धूप -छाँव
या फलसफ़ा ऐ इश्क
नील गगन पर  लिखू या  धरा के सौंदर्य पर
लिखू उगते सूरज या शीतलता बिखेरते चाँद पर या टिमटिमाते तारो पर
लिखू इस बयार पर या मौसम की ठिठुरन पर
या देह बिखेरती इस धूप पर
या लिख दु अपने मन की बात
या बिखेर दु ढेर सारे जज्बात
या लिखू जो सबके मन को भाये वो बात
आज बड़े दिनों के बाद
                      

संगीता दरक माहेश्वरी 
सर्वाधिकार सुरक्षित

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...