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ऐ वक्त

कहते है कि वक्त किसी का नही होता न ही किसी के लिये ठहरता है ये वक्त...

ऐ वक्त
जवाब नही ऐ वक्त तेरा कि कब किसकी तरफ तू हो  जाये
कंरूँ क्या मैं अभिमान कि तू पहलू में जाकर किसी और  के बैठ जाये
मैं थामना भी चाहूँ तुझको
तो क्या  एक लम्हा भी न समेट पाऊँ 
फिर करू क्यों मैं गुमाँ
हर हस्ती को मिटा आया है तू
चाहे  जर्रा हो या हो चट्टान
थमता  नही  तू किसी के लिये चाहे साँसे थम जाये
             संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित

खामोश दीवारें ,silent walls, khamosh divare

खामोश दीवारें......
खामोश दीवारें कब बोलेंगी
चार दीवारी का भेद कब खोलेंगी
क्या दीवारों के सिर्फ कान होते हैं
होती नही आँखें
क्यों ये मूक होकर देखती रहती हैं
सिसकियों और चीखों को सुनती हैं बस
अपने पहलू में क्या कुछ होने देती हैं
छत को बचाने के लिए नही
बोलती ये दीवारें
रिसता पानी दीवारों से कुछ बयां तो करता है
पर खुलकर कुछ नही बताती ये दीवारें खामोश खड़ी ये दीवारें
और जब साहस करके कुछ बोलती हैं तो टूट कर बिखर जाती हैं ये दीवारें
         संगीता माहेश्वरी
        सर्वाधिकार सुरक्षित

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...