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व्यंग्य "होली के रंग राजनीती के संग" (Sarcasm) Holi colors with politics

             व्यंग्य
होली के रंग राजनीति के संग
  होली के दिन पूछा मैंने नेताजी से
क्यों ?आप नहीं खेलेंगे होली ,
वे बोले, क्यों करते हो भाई हंसी ठिठोली अपनी नीति में कई रंग हैं
परिवर्तन की लहर अभी भी संग हैं
रंग लगाओ हमें तुम ही कौन सा,
देखो हर रंग में रम जाएंगे।
काला छोड़ सब हमें प्रिय हैं,
उसमें हम पहले ही पूर्ण हैं,
सफेद रंग हे प्रिय हमारा
समझो है वो सहारा।
वैसे तो हम रंग जमाते हैं,
वर्षभर होली मनाते हैं ,
भ्रष्टाचार घोटालों के रंगों में
डुबकियाँ  लगाते हैं,
फिर भी बेरंग हम निकल आते हैं।
‌ वर्ष पर हम खेलते हैं होली
‌  जनता बड़ी हैं भोली
अब तुम ही बोलो रंग हम लगाते हैं ना
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।
इतना सुन मेरा चेहरा पीला पड़ गया।।
‌              संगीता दरक
‌            सर्वाधिकार सुरक्षित

#जनता बेचारी,#poor people

           जनता बेचारी😇
रफाल और अगस्ता के बीच में
फंसीबेचारीजनता                             
 लुभावनी बातें और
पाँच साल का शासन,
करोड़ों की हेरा फेरी,
ऊपर से सीना जोरी !
जनता केश लेस, और
नेताओं की ऐश ।
हर बार के लिये नया मुद्दा और
आकर्षक चुनावी घोषणा पत्र ।
भोली भाली जनता आ जाती
बहकावे में, और करे भी तो क्या ।
इनकी घोषणाएं लगती  प्यारी,
पड़ती हमारी  जेब पर ही भारी।
नये दाँव पेच लेकर  हर बार तैयार है ।
देश की किसी को दरकार नही।
सत्ता की लालसा में एक दूसरे को
कोसने में लगे हैं।
लगी हो आग कहीं भी ये तो अपनी रोटियां सेंकने में लगे है
सत्ता और कुर्सी की लालसा में इनको इतना गिरा दिया।
हर बार कोई मुद्दा इनको मिल ही जाता हे
ऐसे ही इनको पाँच साल का शासन मिल जाता है।।।।
              संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित
             

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

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