करोड़ो की बातें @sparshbypoetry

 हाइकु 


"करोड़ो के" 😃😃


रखो धीरज

ऐसा करो कमाल

हो मालामाल


मिटी गरीबी

लाए हैं ख़ुशहाली

भरी तिजोरी 


धर धीरज

हाँफ रही मशीने

अधीर जन


राजनीति में  

देखो हो रही ऐश 

भोली जनता


करोड़ों  बातें

जनता कहाँ जाने

बनें जो साहू


भरी तिजोरी 

करके भ्रष्टाचार

लोकतंत्र में


भूखी जनता

 भरपेट नेताजी

बिना डकारे



चल सखी अब की बार #हिंदी कविता#खुशियों के फूल #सखी

 चल सखी अबकी बार...

मन के आंगन में हरियाली बिछाते हैं,

खुशियों के फूल खिलाते हैं ।

उमंगो की बुँदे बरसाकर,

मीठी यादों को टटोलकर

चल सखी अबकी बार

 इसमें आस के बीज रोपते हैं।

उत्साह और जोश के मौसम में 

धैर्य का खाद देते हैं,

आत्मविश्वास की लगा झड़ी 

चल सखी अबकी बार मन के आँगन में

 हरियाली बिछाते हैं।

भरोसे के बीज से उत्साह का पौधा

 निकल आएगा,

उल्लास से हरा-भरा शाखाओं संग इतरायेगा।

कलियों की महक से मन खिल जाएगा,

चल सखी अबकी बार 

मन के आँगन में हरियाली बिछाते हैं।

             संगीता दरक माहेश्वरी

#बढ़ती उम्र विवाह की #देरी से होते विवाह

 जय महेश

विषय :-बढ़ती उम्र विवाह से जुड़ी समस्याएं व निदान

इस पर मेरे विचार


समाज में सदा सन्तुलन यथावत रखेंगे।

बच्चों का विवाह युक्त समय पर करेंगे।।

नहीं  कोई असमंजस न कोई फिक्र हो। 

हर जगह हम माहेश्वरियों का जिक्र हो।।


जीवन में हर कार्य नियत समय पर होना चाहिए, प्रकृति भी हमें यही सीख देती है सूरज उगने में कभी देर नही करता चाहे कुछ भी परिस्तिथियाँ रही हो और ढलता भी नियत समय पर।

अभी कुछ वर्षों में हमारे समाज की जटिल समस्या है बढ़ती उम्र बच्चो की, विवाह की उम्र में विवाह नहीं हो रहे जिससे अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है ।

अविवाहित युवाओं के माता-पिता की दशा बहुत खराब है ।

27 से लेकर 35 वर्ष के युवा अविवाहित घूम रहे हैं।

विवाह नहीं होने के कारण:- युवाओं का उच्च शिक्षा प्राप्त न करना ,गाँव मे रहना,नोकरी के क्षेत्र में न होना या अच्छा पैकेज न होना।

या संयुक्त परिवार में रहता हो।

आज के दौर में लड़कियाँ जहां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है, और नए- नए ओहदे पर कार्य कर रही है,ऐसे में लड़कियों और उनके अभिभावकों की महत्वकांक्षा  बहुत बढ़ गई है उनको लड़का नोकरी पेशा चाहिए और तो और पैकेज भी अच्छा चाहिए और लड़का बड़े शहर में रहता हो परिवार छोटा हो ये सब कारण और इतनी मांगे जो उचित नहीं हैं विवाह विलम्ब के लिये कारण बनते है ।

विवाह की उम्र होते ही जब माता- पिता द्वारा बच्चो को कहा जाता है तब बच्चे अपने कैरियर को लेकर चिंतित रहते है और जब तक वो सैटल होते है तब तक विवाह की उम्र निकल जाती हैं।

आधुनिक चकाचौंध में युवा पीढ़ी अपने कैरियर और भविष्य को लेकर इतना गम्भीर है कि जब उनको विवाह के लिये कहा जाता है तो वो कहते है कि कर लेंगे क्या जल्दी है, ऐसा कहते कहते कब उम्र ढल जाती है पता ही नही चलता।

पहले के समय मे सम्बन्ध करवाने में मध्यस्थ की भूमिका बहुत खास होती थी, दोनों पक्ष मध्यस्थ की बात सुनते थे। और कुछ बात भी हो जाती तो मध्यस्थ की भूमिका से बात सम्भल जाती थी लेकिन चूंकि बच्चे आजकल घरवालों के कहने में ही नही तो फिर मध्यस्थ का क्या कहे।

आजकल बच्चे पढ़ाई के लिए बाहर जाते है और वही रह जाते जिससे रिश्तेदार उन्हें ज्यादा जानते ही नहीं ऐसे में कोई सम्बन्ध करवाता नही और कहते है कि कौन जिम्मेदारी ले रिस्क कोन ले पता नही (लड़का या लड़की) कैसे  है ।

युवकों की बढ़ती उम्र की चिंता ने अभिभावको को दूसरे समाज मे सम्बन्ध करने को मजबूर कर दिया फलस्वरूप दूसरे समाज में हमारे समाज के सम्बंध हो रहे है 

देरी से विवाह होने पर सन्तान उतपत्ति में भी समस्या आती है 

विवाह सम्बन्ध टूटने का एक कारण ये भी है कि बढ़ती उम्र में विवाह होने से दोनों के विचार और सामंजस्य नही बैठता ।

निदान निदान 

हर समस्या को समय रहते अवश्य सुलझाना चाहिए

हम माहेश्वरीयो से  दूसरे समाज  प्रेरणा लेते है

  हमें अपने  बेटों और बेटियों को पढ़ाना चाहिए उच्च शिक्षा भी दिलाना चाहिए लेकिन  अपने संस्कार और रीति-रिवाजों से उन्हें दूर नहीं रखना चाहिए और विवाह की उम्र होते ही उनको कह देना चाहिये की विवाह की उम्र में ही  विवाह होना चाहिए पढ़ाई और कैरियर तो विवाह के बाद भी बन सकता है  अभी एक स्लोगन बहुत चल रहा है बेटी ब्याहो  और बहू पढ़ाओ इसका मतलब यही है कि बेटियों को समय से ब्याह दो और शादी बाद बहुओं को पढ़ाओ।

एकऔर बात  बेटियो के माता पिता को अपनी महत्वकांशाओ को कम रखना चाहिए और अपनी बेटी के लिए अच्छा लड़का ,सिंगल फेमेली, अच्छा पैकेज ,बड़ा शहर ये सब सोच न रखते हुए  सुसंस्कारी परिवार और कमाने वाला लड़का हो ऐसी सोच रखनी चाहिए 

समाज द्वारा समय समय पर परिचय सम्मेलन करवाने चाहिए  और सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे ग्रुप्स बनाये जाए जिसमे एक दूसरे से सम्बन्धो की चर्चा हो सके । 

समाज के लोगो को ये समझना होगा कि समाज का  समाज मे ही सम्बन्ध हो जिससे परिवार में संस्कार आएंगे और हमारा समाज उन्नत समाज बनेगा

समाज की ऐसी समस्याओं के निराकरण हेतु समाजजन को समय- समय पर विचार विमर्श करके ठोस कदम उठाने चाहिए।

हमे अपने समाज के बच्चो को संस्कार शुरुआत से ही  देने चाहिए। ताकि युवा होने पर वो सही निर्णय ले सके।


    संगीता  दरक माहेश्वरी

      

#लव जिहाद #संभल जा ये इश्क है न प्यार#love#eshk#dharm#sanskar

 


 संभलना होगा तुमको

यूँ जिंदगी के फैसले चंद लम्हों
में  किया नहीं करते,
अपनी एक मुस्कान पर जान
 लुटाने वाले को जिंदगी भर का
 गम दिया नहीं करते।

नौ महीने जिस माँ ने रखा 
तुम्हें कोख में
  तेरे सपनों  को पिता ने  
किया हरदम पूरा,
ऐसे माता-पिता को छोड़
 दिया नही करते।

जिसके लिए तू रिश्तों को 
तोड़ रही है,
अपनी किस्मत की लकीरों
 को मोड़ रही है।

तेरे सर पर है जो सवार,
सम्भल जाना
 ये इश्क है ना प्यार।

किसी दिन तुम्हें छोड़ देगा,
तेरे विश्वास के टुकड़े-टुकड़े
कर देगा।

तेरे अपने तो तेरा साथ  देंगे
तुम्हें गले से भी लगा लेंगे।

पर सम्भलना तुम्हें होगा,
यूँ गलत राह से बचना होगा।

संस्कार और धर्म के महत्व को
समय रहते समझ लेना,
अपनी जिंदगी को सँवार लेना।

परिवार करे तुम पर गर्व
काम तू ऐसे कर लेना ।।।
           संगीता दरक माहेश्वरी

#दोस्ती #friendship #यारी #मित्रता

  दोस्ती   सुहाना  अहसास  है।

  सभी  रिश्तों  में  ये  खास  है।

  बड़े भाग्य से मिले एक दोस्त, 

  समझ  लो  कायनात पास है

#ये किताबें #बुक्स #विश्वपुस्तकदिवस

 ये किताबें

खामोश रहकर भी कितना
सिखाती,
काम की थकन को पलों में
मिटाती,
बीते पलों को फिर से
खिल-खिलाती,
सारे ज्ञान को अपने में
दर्शाती,
जीवन जीनें की नित राह
दिखाती,
होता मन उदास जो साथ
निभाती,
लेपटॉप,मोबाइल में खो
जाती,
ये किताबें हर दिन नजरें
बिछाती।।
     संगीता दरक माहेश्वरी

#धरती #पृथ्वीदिवस #नदियाँ

 धरती   तरुवर   माँगती, 

नदियाँ    माँगे   नीर।

अति दोहन नित है बुरा, 

मनवा अब रख धीर।।

#बढ़ते तलाक क्यों और कैसे रोके#how to keep love in relationship

 बढ़ते सम्बन्ध विच्छेद कारण और निवारण


सम्बन्ध अर्थात एक साथ बँधना या जुड़ना
किसी से जुड़ना  मन में उत्साह भर देता है और उसी से जब विच्छेद होता है तो मन दुखी हो जाता है।
संबंध विच्छेद एक पक्ष की तरफ से नहीं होता है क्योंकि कोई एक निभाने का प्रयास करता है तो शायद संबंध बने रहते हैं।
हमारे समाज का चिंतनीय पहलू एक यह भी है कि समाज में युवकों के सम्बन्ध नही हो रहे ऐसे में सम्बन्ध विच्छेद का होना दुःखद है ।
सम्बन्ध विच्छेद के कारण:-
*आजकल विवाह सम्बन्ध में पहले की भांति गुण और गोत्र नही देखे जाते पहले लड़के और लड़की के गुण मिलाते थे, ओर माँ के मामा और पिता के मामा की साख टालते थे, मतलब एक गोत्र होने पर रिश्ता नही होता था, क्यों कि ऐसा माना जाता है कि एक ही कुल के परिवार में स्वभाव प्रवति एक जैसी रहेगी तो पति पत्नी के रिश्तों में सामंजस्य या तालमेल कैसे आएगा ।
जैसे दोनों को अगर गुस्सा क्रोध ज्यादा आएगा तो रिश्ता कैसे निभेगा।
*बहुत सी बार बच्चे शादी के लिए तैयार नहीं होते (उनकी उम्र तो हो जाती है) तो उनको जब घर वाले राजी करते हैं तब वो अपने रिश्ते को निभा नही पाते है।

*आजकल सही उम्र में विवाह नही हो रहे बढ़ती उम्र के सम्बन्धो में तनाव होता है फलस्वरूप  सम्बन्ध टूट जाते है ।

*कहते हैं कि एक सिक्के के दो पहलू होते है
पुनर्विवाह  होने से बहुत से घर बसे है लेकिन आजकल ऐसी सोच हो गई कि चलो नही निभ रहा तो दूसरा सम्बन्ध कर देंगे ।
* बच्चे आजकल बाहर रहकर पढ़ाई करते हैं और परिवार से दूर रहकर बच्चे बाहर के माहौल में ढलने लगते हैं, और अपने संस्कारों से दूर होने से बच्चों में अपने रीति रिवाजों की समझ नही होती।
परिवार में साथ रहकर कैसे रिश्तो को निभाना है, कैसे एक दूसरे को समझना है वो समझते ही नही है ।
आज की युवा पीढ़ी  हर चीज को पैसे से खरीद लेंगे ऐसी सोच रखते हैं इसलिए भी  रिश्तो को इतना महत्व नहीं देते।

*आजकल बेटियाँ भी खूब पढ़ लिख रही है अपने पैरों पर खड़ी हो रही है खुद कमा रही है तो वह भी समझती है कि मैं क्यों सहन करूँ या निभाऊं, मैं तो अपना जीवन अपने मुताबिक जी सकती हूँ।

*बेटी ससुराल की हर बात मायके वालों को बताती है तो माँ अपनी बेटी के मोहवश गलत सीख देती है ये भी संबध विच्छेद का एक कारण है।
मायके वालो का जरूरत से ज्यादा बेटी के घर में हस्तक्षेप बेटी को ससुराल में किसी चीज की कमी हो तो वो कमी मायके वाले का पूरा करना भी कही न कही गलत है।
आज  रिश्ते इस मोबाइल फोन की वजह से भी टूट रहे हैं ।

*महानगरों में रहने वाले पति-पत्नी की जीवन शैली ऐसी होती है कि दोनों को बात करने समझने समझाने का समय नहीं।
समय की कमी और हमारी बढ़ती जरूरतो ने इंसान को मशीन बना दिया है,
पति-पत्नी का एक दूसरे को समय नहीं दे पाना यह भी  कारण है सम्बन्ध विच्छेद का।

*आजकल नई हवा यह भी चली है की शादी के दो-तीन वर्ष बाद भी युगल अपना परिवार बढ़ाते नहीं है,कहते हैं कि बच्चे से पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है लेकिन वह पति पत्नी अगर दोनों कामकाजी है तो दोनों अपनी भविष्य की योजनाओं की ओर देखते हैं दोनों अपने भविष्य के बारे में सोचते और कहते हैं कि एक बार सेटल हो जाए फिर परिवार बढ़ाएंगे।

निवारण
ऐसी कुछ बाते जिनको अमल में लाये तो  बढ़ते सम्बन्ध विच्छेद को रोका जा सकता है#
*सम्बन्ध करते समय गोत्र का ध्यान रखा जाए और गुण भी मिलाए जाए।
*विवाह सही उम्र में हो और
बच्चो की रजामंदी से  हो और वो विवाह के रिश्ते को लेकर पूर्ण रूप से तैयार हो तो ही विवाह करे ।
*पहले विवाह सम्बन्धो में  मध्यस्थ की भूमिका प्रमुख रहती थी,मध्यस्थ दोनों पक्ष की बातों को रखता और दोनों पक्ष मध्यस्थ की बात को महत्व देते थे ।और सम्बन्ध टूटने की कगार पर होता है तब मध्यस्थ दोनों परिवारों को साथ मे लेकर बात करते है ।
*बच्चे बाहर रहे पर उनको अपने त्योहारों और घर के  कार्यक्रमो उत्सव में उनको जरूर बुलाए ताकि वे अपने परम्पराओ और रिवाजो को समझे।

*बेटीयों को उच्च शिक्षा जरूर दिलाए मग़र जीवन के तौर तरीके रिश्ते नाते परम्पराओ के बारे में भी समझाए।

*बेटी का हर बात को मायके वालों से न कहना और माँ की सही  सीख भी बेटी के संसार को बसा सकती है ।
जरूरत पड़े तो बेटी और दामाद को बिठाकर समझावें।
बेटी की गलतियों को मायके वाले को बढ़ावा नही देना चाहिए और न ही (वरपक्ष)बेटे की गलतियों को अपने परिवार द्वारा छुपाना नहीं चाहिए।
*शहरों में परिवार से दूर रहने वाले पति पत्नी को एक दूसरे को समय जरूर देना चाहिए। साथ  बैठने से कई  समस्या सुलझ जाती है ।
परिवार के साथ रहते हैं तो एक दूसरे की गलती या मनमुटाव होने पर परिवार के  बड़े समझाते हैं तो दोनों समझ जाते हैं
छोटी- छोटी बातें बड़ी नहीं बनती
रिश्तो के महत्व को समझाते ।

*पति पत्नी को अपने काम के भविष्य की योजनाओं के  साथ अपने रिश्ते के भविष्य का भी सोचना चाहिए समय से परिवार को बढ़ाना चाहिए ।जिनसे दोनों के सम्बन्ध और प्रगाढ़ हो।
और अंत में.....
पहले सम्बन्ध करने से पहले घरवालों की बात होती थी  लड़का लड़की देखते थे  और रिश्ता तय हो जाता था और शादी हो जाती है और बेटियों को माँ की सीख रहती है कि तेरा घर वही है तुझे वहीं निभाना है और रिश्ते निभते भी थे
लेकिन अब खुले विचार के लड़के लड़की एक दूसरे को खूब समझते फोन पर बातें करते मिलते और शादी तय होती और उसके बाद दोनों में सामंजस्य तालमेल नहीं बैठता है और हो जाता है संबंध विच्छेद।
ऐसी स्तिथि में दोनों परिवारों को बैठकर बात करनी चाहिए उनको ये अहसास दिलाना चाहिए की
पहले आपस में इतनी बातें नहीं होती थी तो भी रिश्ते अच्छे से निभते थे । किसी को स्वीकार करो तो उसकी कमियों के साथ दोनों एक दूसरे की भावनाओ का सम्मान करना चाहिए।
आजकल पति पत्नी में एक दूसरे के प्रति सम्मान की कमी हो गई है ,रिश्तो में
अहंकार ने अपनी जगह बना ली।
पति पत्नी का स्वरूप नारायण और लक्ष्मी सा होता है इस रिश्ते में दोनों को एक दूसरे के प्रति आदर और सम्मान देना चाहिए।
एक दूसरे की कमियों को नजरअंदाज करना चाहिए ।
कभी कभी ऐसा भी होता है कि पत्नी मायके वालों का ज्यादा ध्यान रखती है या उनका हस्तक्षेप ज्यादा होता है मायके वाले अगर धनाढ्य है और ससुराल में इतनी सम्पन्नता न हो तो भी पत्नी को अपने ससुराल का मान रखना चाहिए।
और अगर परिस्तिथि विपरीत हो तब पति को ध्यान रखना चाहिए । 
पति और पत्नी दोनों को विवाह जन्मजनमोत्तर का बंधन है और जोड़ियां ईश्वर बनाता है ऐसा सोचकर सम्बन्धो का निर्वाह करना चाहिए । कभी एक नाराज हो तो दूसरा मना ले कभी एक थोड़ा सब्र रख ले
जीवन रूपी गाड़ी को खींचने के लिये दोनों पहिये समान रूप से जुटे रहे बस ।फिर सुखी संसार।।
                       
               
 













बात प्रेम की ,#love #pyar #prem #eshk

बसन्त ऋतु में प्रकृति ने प्रेम की चादर ओढ़ ली, जब प्रकृति ही प्रेममय है तो फिर इस प्रेम से कोई कैसे बचे।

 प्रेम, प्यार, उल्फत, मोहब्बत, इश्क व लव

 न जाने कितने नाम, लेकिन एहसास एक।

  प्यार सभी रिश्तों में होता है, तभी हम रिश्ते निभाते हैं, बिना प्रेम के कोई रिश्ता निभ नहीं सकता।

 क्योंकि जहाँ प्रेम नहीं, स्नेह नहीं, वहाँ रिश्तों की कल्पना ही नहीं कर सकते।

 प्रेम कब नहीं था, पहले भी था, अब भी है, हमेशा ही रहेगा।

 राधा को कृष्ण से प्रेम था, मीरा भी कृष्ण से प्रेम करती थी, मगर इनके प्रेम में शारीरिक आकर्षण नहीं था, मन से प्रेम, भाव से प्रेम और दोनों के लिए ही प्रेम का उद्देश्य उसको पाना नहीं था, बल्कि आपस में समाने का था। आज के दौर में प्रेम के मायने बदले हैं, अब प्रेम समर्पण नहीं सिर्फ अपना हक माँगता है।

 

क्या प्रेम अपनी पराकाष्ठा तक पहुँच पाता है।

 क्या है प्रेम की पराकाष्ठा आज के दौर में ? 

कहते हैं कि प्रेम की पराकाष्ठा राधा और समर्पण की पराकाष्ठा मीरा और इस प्रेम व समर्पण की पराकाष्ठा श्री कृष्ण है। 

प्रेम क्या है महज आकर्षण या यौवन की दहलीज का  सुनहरा ख्वाब।

क्या प्रेम को पाना ही उसकी सार्थकता है।  प्रेम किसे नहीं होता, यह तो सबको होता है, बस कोई इजहार कर देता है और कोई प्रेम की मंजिल को पा लेता है।  

प्रेम उम्र के बन्धन को भी नहीं स्वीकारता।

 न ही यह किसी में भेद करता है, कब किससे प्रेम हो जाए पता ही नहीं चलता।

 क्योंकि प्रेम सोचने का अवसर ही नहीं देता।

आजकल प्रेम निश्छल नहीं रहा, प्रेम स्वार्थी हो गया है।

 इसके लिए चाहे अपने रूठे  या अपनों को छोड़ना पड़े, इसकी परवाह नहीं करता। आज के प्रेम करने वालों से हम त्याग की उम्मीद नहीं कर सकते।

बहुत कम ऐसे होते हैं, जो अपने अपनों के लिए अपने प्रेम को भूलना स्वीकार करते हैं।

 प्रेम के मायने बदल गए सोच बदल गई, और प्रेम पाने के बाद भी वह अपनी मंजिल पर पहुँचे या नहीं यह किसी को अवगत ही नहीं।

 बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो रिश्ते में बन्ध तो जाते हैं पर निभा नहीं पाते।

 वह प्रेम को समझ ही नहीं पाते हैं।

प्रेम पाने का ही नाम नहीं है, प्रेम एक से होता है तो उसके सारे अपनों को भी अपनाना होता हैं। 

लेकिन आज के दौर का प्रेम बस दो लोगो के बीच तक ही सीमित है, प्रेम एक-दूजे पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो अपनों की परवाह किए बिना गलत कदम उठा लेते हैं।

प्रेम होने का सबूत नहीं दिया जा सकता है, प्रेम तो बस महसूस किया जाता है। प्रेम को करना नही समझना है, और प्रेम को परखना है तो पहले हमें प्रेम में 

समर्पित होना पड़ेगा।

आजकल लिव इन रिलेशनशिप में जो रहते हैं वो अपने आपको प्रेमी कहते है। निभ जाए तो प्रेम और न निभे तो टुकड़े-टुकड़े प्रेम के।

प्रेम को प्रेम ही रहने दो, प्रेम छिनता नहीं सर्वस्य न्यौच्छावर करता है । 

प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं है। प्रेम को बस प्रेम ही रहने दो।।

#99का फेर #99kafer #Illusion

 


                      99 का फेर

कहते हैं कि इस जग की माया में जो फँसा वह फँस कर ही रह गया।

एक बार अगर कोई 99 के फेर में पड़ जाए तो निकलना मुश्किल है, वह इसमें ही लगा रहता है।

बात 99 की हो या ...........999 रूपए की हो 

इस निन्यानवे  के ऑफर से कोई बच जाए तो बड़ी बात है।

हम दौड़े-दौड़े जाते हैं, हमें  सौ से निन्यानवे कम

 लगता है, हम इन दोनों के फासले को भूल जाते हैं। सच कहूँ तो इस 99 के फेर में हम एक रुपए को बहुत महत्व देते हैं।

 निन्यानवे काऑफर हो और उस पर एक 

खरीदने पर दूसरा  फ्री  भी हो तो सोने पर सुहागा।

 त्यौहार की आहट सुन ये  ऑफर जरूर आते हैं और हमारे दिलों दिमाग में दस्तक दे जाते हैं और दिल भागा-भागा जाता है इनकी ओर।

जीवन में खुशियों का अवसर ऑफर के बिना अधूरा है, ऐसा सोचकर हम ऑफर में फँस जाते हैं।  बात ऑफर की हो तो हम इनसे दूर नहीं रह सकते हैं। 

हमें हर ऑफर में अपनी सैलरी+ इन्क्रीमेंट+ मेहनत= ऑफर लगता है।

इस रफ्तार भरी जिन्दगी में जहाँ हम 99 के चक्कर में पड़े हैं, आदमी का काम मशीन और मशीन का काम आदमी कर रहा है। हमारी व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि हमें अपनों के लिए समय ही नही है।

हमारी जरूरतें इतनी बढ़ गई है कि हम बस उनको पूरा करने में लग जाते हैं। हमें हर चीज अच्छी और बस अच्छी ही चाहिए। खाने की बात हो तो हमें बेमौसम के फल और सब्जियाँ ही चाहिए, भले ही वो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए, हमें तो बस

 खाना है। बात खाने की ही नहीं है, कपड़े की बात हो या शादी समारोह की, हमें सब काम बहुत अच्छा करना है, पैसों की पूरी ताकत के साथ फिर चाहे उसके लिए हमें कुछ भी करना पड़े। हमें पता ही नही हम क्या पाने की चाह में दौड़ रहे है। 

जीवन पहले भी जीते थे आनन्द से, पहले भी 

जीवन चल रहा था, हमारी जरूरतें कम थी और कम जरूरतों के साथ जीवन खूब सुखी था। 

बड़े-बड़े मकान और उसमें सारी सुविधाएँ गाड़ी 

और न जाने क्या-क्या।

अपनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई, मिलने-मिलाने के लिए अवसर तलाशने पड़ते हैं। 

न हमें अपने लिए समय है, न अपनों के लिए

रिश्तों में उलझने बढ़ती जा रही है, हम सुकून की तलाश में भटक रहे हैं। अपनी व्यस्तता भरी जिन्दगी में हम अपनी सेहत का ख्याल भी नहीं रख पा रहे। हम अपने और अपनों के लिए जितनी उठापटक

 करते हैं, क्या हम पैसों से सारी खुशियाँ खरीद

 सकते है।  हम क्या पाना चाहते हैं और क्या वो

 हमें मिल रहा है।

क्यों हम निन्यानवे को सौ बनाने के चक्कर

 में पड़े हैं। हमें खुशहाल जीवन जीने के लिए 

अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कम 

करना पड़ेगा।

तभी हम अपनी जिन्दगी  को सुकून से जी पाएँगे।

खुशियों के अवसर ऑफर के रूप में हमें कई बार मिलते हैं, बस हमें उनको समझने और उनका लाभ उठाने की देर है। 

 छोटी-सी जिन्दगी है  मजे से जिओ बस और खुशियों के अवसर तलाशते रहो।

       संगीता दरक

पतंग ,मकर संक्रांति, पतंगबाजी, गुड़तिल की मिठास, खिचड़ी

 मकर संक्रांति #पतंग #उड़ान #आसमान #गुड़ #तिल्ली 

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, सच में बहुत अद्भुत अनोखा देश है हमारा, अनेक ऋतुएँ और मौसम व इनके अनुसार खानपान और ऋतु परिवर्तन के समय पर त्योहारों का आगमन सब कुछ अद्भुत!

      यूँ तो सृष्टि के कण-कण में ईश्वर का वास है। लेकिन सूर्य और चन्द्रमा ईश्वर के द्वयचक्षु सदृश है।  जब-जब सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है, हम प्रभावित होते हैं।

     ऐसा ही एक त्योहार हैं मकर संक्रांति, शीत ऋतु के पौष मास में जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं यहाँ 

 "मकर" शब्द मकर राशि और संक्रांति अर्थात संक्रमण अर्थात प्रवेश करना एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के स्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।


     पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य अपने पुत्र शनि की नाराजगी भूलकर उससे मिलने जाते हैं, शनि मकर राशि के स्वामी है। ऐसा भी कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन भागीरथी के तपोबल पर भगवान विष्णु के अंगूठे से गंगा माता पृथ्वी पर प्रकट हुई।

       प्राचीन उपनिषदों के अनुसार उत्तरायण का आरम्भ मुक्ति का मार्ग दिखाता है। 

 महाभारत में जब पितामह भीष्म बाणों की शय्या पर लेटे होते हैं, तो वह भी  उत्तरायण शुरु होने पर ही अपना शरीर छोड़कर मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

 वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध में प्रवेश करता है, दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं।  रातें धीरे-धीरे छोटी होने लगती है।

         विनयचन्द्र मौद्गल्य है की  रचना   

 "हिन्द देश के निवासी हम सभी जन एक हैं, रंग-रूप वेश भाषा चाहे अनेक हैं"

ये पंक्तियाँ हम भारतीयों के लिए कितनी सटीक है। मकर संक्रांति देश के सभी हिस्सों में मनाया जाता है, बस अलग-अलग नामों से। मकर संक्रांति का त्योहार हरियाणा और पंजाब में लोहड़ी के रूप में 

        बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के रूप में, मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने के पीछे भी आरोग्य वृद्धि का कारण होता है। खिचड़ी में हल्दी

 व घी का सम्बन्ध गुरु और  सूर्य से होता है।

 असम में माघ बिहू, मुगाली बहू के रूप में तमिलनाडु में पोंगल, केरल में मकर, विलक्कू और उत्तराखण्ड में घुघूती भी कहते हैं।

         गुजरात के अहमदाबाद शहर में  पतंगबाजी का उत्सव दो दिन तक चलता है, अहमदाबाद में पंतग और मांझे (पतंग उड़ाने का धागा) का बाजार लगता है।

 राजस्थान और मध्य प्रदेश में इस त्योहार को  संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पर मकर संक्रन्ति के दिन गेहूँ का खिचड़ा (पूरे गैहूँ को गलाकर विशेष रूप से बनाया गया) दूध और चीनी मिश्रित करके बनाया जाता है। 

          मकर संक्रांति के दिन दान करना शुभ माना जाता है। इस दिन गरीबों को अन्न-वस्त्र का दान और गाय माता को घास व गुड़ खिलाते हैं। सुबह जल्दी उठकर नदी तालाब में स्नान करना या जल में तिल डालकर स्न्नान करने की भी मान्यता है। सुहागिने इस अवसर पर चौदह वस्तुएँ कलपती है और अपने से बड़ो को पाँव लगकर (प्रणाम करके ) देती है। कहीं-कहीं सक्रांति की सुबह अलाव भी जलाया जाता है। 

           बच्चो में पतंगबाजी को लेकर गजब का उत्साह रहता है, कहीं-कहीं पुराना खेल गिल्ली-डण्डा भी खेलते हैं। हमारे हर त्योहार के पीछे अच्छी भावना रहती है। 

हर त्योहार जीवन मे उत्साह उमंग भर देता है।

         लेकिन ये उत्साह कभी कभी दुखदाई भी होता है। मकर संक्रांति पर्व पर गगन में पतंगों का अम्बार लग जाता है। पतंग उड़ाने की शुरुआत कब और कैसे हुई इसके बारे में कोई लिखित रूप से कुछ स्पष्ट नहीं है, लेकिन भारत में यह पतंग उड़ाने की परम्परा बहुत पुरानी है, इस परम्परा ने आज प्रतिस्पर्धा का रूप ले लिया है। उड़ान भरना किसे अच्छा नहीं लगता, हवा के रूख के साथ हो या हवा के विपरीत हो डोर थामें उंगलियाँ हवा के रूख को देखकर पतंग से आकाश नापने की चाह किसे नहीं होती। आसमान एक दिन हमारे लिए है, पर परिंदों की आवाजाही में कोई रुकावट न हो हमारे धागे से उन्हें चोट न पहुँचे, इसलिये हम चीन के मांझे का इस्तेमाल न करके अपने देश मे बनने वाले कपास के धागे, जिनको तेज बनाने के लिए किसी रासायनिक नहीं बल्कि गौंद चावल के आटे और अन्य सामग्री का उपयोग किया जाता है। 

       वैसे 2017 में चीनी मांझा जो कि रसायन और धातु के मिश्रण से ये ब्लेड जैसा धारदार होता है, ये टूटता नही है, स्ट्रेच होता है और तो और इलेक्ट्रिक कण्डक्टर होता है, जिससे इसमें करंट भी आ सकता है। इसे प्रतिबन्धित भी किया गया है, लेकिन हमारे देश मे अभी भी इसका उपयोग हो ही रहा है, इस धागे से पतंग उड़ाने वाले के हाथ कट जाते हैं और पक्षियों को भी चोट लग जाती है। राह चलते हुए किसी वाहन चलाने वाला इस धागे में उलझ जाए तो दुर्घटना हो सकती है। अगर चाइनीज मांझा ट्रेन के पेंटोग्राफ में उलझ जाए तो उसमें से चिंगारी निकलने लगती है। पतंग पहले भी उड़ती थी, आसमां को छूती थी मगर परिन्दों की आवाजाही में कोई बाधा नही होती और कोई अप्रिय घटना नही घटती थी।

सरकार प्रतिबन्ध तो लगाती है पर हम मानते नहीं और इसका हर्जाना भी हमें ही भुगतना पड़ता है। क्यों हम अपने त्योहारों को पुराने तरीके से नही मनाते। 

हम सब मिलकर इतना प्रयास करें कि गुड़ और तिल की मिठास का स्वाद और त्योहार का उल्लास बना रहे, बस! हम अपनी खुशी में औरों का भी ध्यान रखें

त्योहार जीवन में प्रसन्नता का उजास भरते हैं न कि दुःखों का अँधेरा। अस्तु -


       ~~ संगीता दरक माहेश्वरी

                  

#मेरा मन #तेरे साथ #यादें #बहुत देर

 ❤️ बहुत दूर तक निकल आता है,

मेरा मन तेरे साथ 
ढूँढता है एक ऐसा कोना,
जहाँ बैठकर हम बाते करे
और बस करते  रहें।

खुशी में तुझे
गले लगाने की,
ग़म में समझाने  की
जिद करता है ये मन।

मन की बात जब
होती नहीं पूरी,
तो ये लौट आता है,
तेरी यादों को लेकर
रहता यादों के साथ ❤️
                    

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...