#आखिर कब तक ? #ये बेटिया जलेगी #चलो आज कुछ करते हैं

#चलो आज कुछ करते है

चलो कुछ बुनते है ,
मिलकर कुछ बनाते है
खुशियों के दामन को,
काँटों से बचाते हैं
थोड़ा ठहरते है ,
अंधेरो को दूर करते है,
उजालो की और बढ़ते है
चलो आग लगाते है ,
बुझी राख को फिर से जलाते है
नींद से सबको जगाते है
चलो आज सच से मिल आते हैं
सच की तपिश से झूठ
को पिघलाते हैं।
जमीं पर पैर रखकर ,
आसमान को छूते है
चलो आज हवा से बातें करते है
टूटते इंसानों को आज जोड़ते हैं ,
चलो आज इंसान बनकर,
इंसानियत को बचाते हैं
और हैवानो को सजा दिलवाते है
हर दिन नवरात्रि हो ,
ऐसा माहौल बनाते है।
शहर ऐसा बसाते है,
कि बेटिया महफूज रह सके।
   "सबक ऐसा उनको सिखाते है,
की रूह काँप उठे"
और फिर कोई हाथ,
किसी बेटी की तरफ ना उठे
चलो आज स्वछता का अभियान,
सही मायने में हम चलाते हैं,
दिलो दिमाग की गंदगी को मिटाते है ।
चलो अपनी संस्कृति को बचाते हैं
पुराना भारत फिर से  बनाते है।
चलो आज......

                  संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरा ख़्वाब, my dream ,khawab

मेरा ख़्वाब "
आज फिर कोई ख़्वाब
हाथ से मेरे यूँ फिसल गया।
मानो रेत से बनाया हो मैने महल ।
लेकिन, ये वही ख़्वाब तो है ।
जिसे मैंने बचपन से संजोया ।
अपनी पलको तले बसाया।
फिर क्यों हुआ वो पलको से मेरी दूर ।
चिलमन में जा बैठा ,किसी और के
फिर मैं रहीअकेली।
                       संगीता दरक माहेश्वरी
                          सर्वाधिकार सुरक्षित

#बेटी हूँ, बेटी ही समझना,#to be a daughter

एक पिता को बेटे के जन्म का इंतजार रहता है,लेकिन बेटी का जन्म होता है
तब उस बेटी के भाव अपने पिता के लिये क्या होते है , 

पढ़िये मेरे शब्दों में

    "बेटी हूँ, बेटी ही समझना"
जानती हूँ, आपको इंतजार था बेटे का।
लेकिन माँ की गोद में मुझको पाया।
उतरा चेहरा देखकर आपका,
मन में मैंने भी ठान लिया था।
बेटे से बढ़कर हूँ, दिखाऊँगी।
बेटी को बेटी की तरह ही प्यार मिले,
बेटा कहकर उसका मान मत खोना।
परवरिश बेटी के अस्तित्व
की ही करना,
यूँ बेटा कहकर बेटी को
सम्मान ना देना।
मेरे मन की कोमलता को,
तुम कमजोर ना समझना।
बेशक पिता की नजर से
मुझे परखना
और बेटी हूँ तुम्हारी ,
कहने में मत झिझकना।
कोमल हूँ, कमजोर नहीं,
सृष्टि चलाने का रखती हूँ दम।
फर्ज सारे मैं भी निभाऊँगी
किसी भी क्षेत्र में बेटों से नहीं मैं कम।
बेटी हूँ मैं बेटी ही समझना ।
                       संगीता दरक
                    सर्वाधिकार सुरक्षित

ये कैसी जिंदगी , life,

मैंने ऐसे कई व्यक्ति देखे जिनकी नजर में जिंदगी की परिभाषा कुछ और ही है उसी पर मैंरे मन के विचार

     ये कैसी जिंदगी
उनके विचारों के प्रतिबिंब में , 
     जिंदगी की झलक नहीं दिखती

सोचती हूँ ,कैसे होंगे उनके
विचार  
कैसा होगा उनका आचार
जो आम जिंदगी में ,
नहीं पाया जाता
          
क्या इतने उच्च विचार है,
उनके जहाँ जिंदगी का निशा
तक नहीं 
या हम जीते हैं वो जिंदगी नहीं
  
 उनकी नजरों में क्या है जिंदगी   
लेकिन कभी सोचती हूँ ,
वे केवल सोचते हैं
उनके विचार में है जिंदगी              
सांसों में नहीं  
 
 उनके सपनों में है जिंदगी,
बातों में नही ।
उनके विचारों के प्रतिबिंब में
जीवन की झलक नहीं मिलती
                    संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित
 

ये रिश्तों की बगिया,garden of relationships.,


      ये रिश्तों की बगिया........

ये रिश्तों की बगिया ,यूँ ही नहीं महकती।
मिट्टी सा समर्पण,और बीज सा धैर्य
रखना होता है।
मिलती तो हैं बहार ,पर पतझड़
को भी सहना पड़ता है,
और काँटों तले फूलों सा
खिलना पड़ता है।
ये रिश्तों की बगिया, यूँ ही नही महकती,
पत्तियों और शाख़ की जिम्मेदारी भी निभानी होती है।
कभी मालिक तो कभी माली बनना पड़ता है।
सुखी टहनियों को,अलविदा कहकर
नयी कोपलों की उम्मीद
जगानी पड़ती है।
ये रिश्तों की बगिया यूँ ही नही महकती,
त्याग और विश्वास से इसे
सींचना पड़ता है।।।
              ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

आदमी आदमी ना रहा

    जिस रफ्तार से हम जी रहे है अपने आपको पीछे छोड़ते जा रहे है इसी व्यथा को बंया करः रही मेरी रचना     
 
आदमी आदमी ना रहा
फिरते हैं शब्द भी, अपने अर्थ के लिये
रिश्तों की मिठास, अट्टहास बन गई

उलझा है आदमी ,
शब्दों के जाल मे ऐसे,
सहेजता कुछ नही उड़ेलता है ,बस

हर त्यौहार फीका -फीका सा लगता है
दिखावा ही आदमी की पहचान बन गई
कुदरत ने बदला कुछ नही,
बस हम इंसानों की नियत बदल गई
रिश्तों की जिम्मेदारी
अब आफत बन गई

दिखावा और  बेईमानी
अब शराफत  बन  गई
देखो अपनी संस्कृति को
पश्चिमी   सभ्यता छल गई

आदमी आदमी न रहा
मशीन बन गया
आदमी का काम मशीन
और मशीन का काम आदमी
कर  रहा

देखो कैसे जीने के नाम पर
अपने आपको छल रहा
और राजनीति के नाम पर आज भी देश बंट रहा !
             ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

भ्रूण हत्या 👧female foeticide

  बेटियाँ जब माँ के गर्भ में ही मार दी जाती है तो उसे कन्या भ्रूण  हत्या कहते हैं

 एक बेटी जब माँ के गर्भ में आती है तो वह अपने आप को इस दुनिया में लाने के लिए कहती है ,

मेरे शब्द उसी  व्यथा को  बयां कर रहे हैं 

कैसे एक अजन्मी बेटी अपने माँ पिता और दादा -दादी से अपने जीवन को बचाने के 

और दुनिया में लाने का कहती है  ।    

भ्रूण हत्या (अजन्मी बेटी)

माँ से कहती है
  सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे।
मैं भी आँखों का तारा बनूँगी ,
तुम्हारा मैं भी सहारा बनूँगी।
फिर कहती पिता से, प्रतिबिम्ब हूँ तेरा
यूँ मुझसे नाता न तोड़।
यूँ जीवन देकर मुँह न मोड़ ।
सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा मुझे आकार तो लेने दे।
दादा-दादी से कहती है ,
मैं भी तुम्हारा मान बढ़ाऊँगी।
दादा को मैं भी सोने की सीढ़ी चढ़ाऊँगी।
संस्कार में भी सारे पूरे करूँगी
तुम्हारी ममता का मान में भी रखूँगी
अंश हु तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे
आज जो कहना है ,वह कहने दे
नयी सृष्टि तो मैं ही रचूँगी,फिर क्यों मेरी रचना की होती है विकृति
क्या ? यही है तुम्हारी संस्कृति !!!
                ✍️संगीता दरक
                सर्वाधिकार सुरक्षित

चुनावी बारिश,election rain,

   सोचिये कभी  चुनाव भी बारिश की तरह हो तो ,आनंद लीजिये और पढ़िये मेरी रचना
    
   चुनावी बारिश
चुनाव का मौसम आया
प्रचारों की बारिश लाया ।
देखते है ,बाढ़ आयेगी या अकाल। बूँदेआयेगी या मूसलाधार बारिश ।
बादल सब तरफ काले होते है
पहले कहते है,
फिर सब मुहँ मोड़ लेते है।
देखते है कौन सी बारिश आगी।
इक्कीसवीं सदी का कीचड़ लायेगी ।
जिस पर बिना फिसले
ही हर कोई चल सकेगा।।।
         
            ✍️संगीता दरक "माहेश्वरी"
                 सवार्धिकार सुरक्षित

ख़्वाब ऐसे होते है....dreams are like this,

आज सपनो की बात करते है कैसे बुंनते है हम सपने .....

रात के कैनवास पर जीवन के रंगों से
उकेरी हुई आकृतियाँ ,
होती है ख़्वाब ।
कुछ मन से,कुछ अनमने से ।
लुभावने ख़्वाबों, को
पूरा करने में जुट जाता
ये तन-मन
होते पूरे, जब ख़्वाब
झूम उठता मन
अधूरे ख़्वाब मिटते ,
फिर लेते नया कोई आकार।।
                संगीता दरक माहेश्वरी
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...