#मासिक धर्म ,#menstrual day, "#28 मई स्वच्छता एवं स्वस्थता दिवस"


 28 मई महिला स्वस्थता एवं स्वच्छता दिवस  ,जी हाँ इसे  मासिकधर्म दिवस भी कह सकते है । ये ऐसा विषय है जिस पर आज भी चुप्पी बनी हुई है ।

इसी विषय पर मेरी रचना प्रस्तुत है उम्मीद करती हूँ  मेरी कलम अपने उद्देश्य में सफल् हुई होगी

मासिकधर्म......
नारी निभाती सारे धर्म,
समझकर अपने कर्म,
रक्त सोखने का करो तुम उचित उपाय।
साफ कपडे या सेनेटरी पेड का करो चुनाव।
इन दिनों करो न कुछ ज्यादा काम,
लो पोष्टिक आहार और करो थोड़ा आराम।
बेटी से अपनी खुलकर करो तुम बात,
समझाओ उसको साफ सफाई की हर बात,
ये है एक शारीरिक प्रक्रिया जो होती सभी के साथ,
घबराने और शर्म की नही है बात।
जैसे शरीर के बाकी अंगों की करते हो सफाई,
वैसे अंदरूनी अंगों की भी हो सफाई।
इस विषय पर क्यों मौन रहती हो तुम, अब ना शरमाओ खुलकर बात करो तुम।
हो कुछ परेशानी तो इलाज करवाओ,
तुम सृष्टि को सजाती हो ।
हर मास पीड़ा से गुजरती हो ।
हाँ एक धर्म हर माह निभाती
हो तुम ।।।
           संगीता  माहेश्वरी दरक
                  सर्वाधिकार सुरक्षित
         

रौनक मेरे गाँव की Ronak mere ganv ki , beauty of my village




रौनक मेरे गाँव की
ख्वाहिशों का यह शहर बसा कैसा, 
सपने 'गाँव की मिट्टी' से ढह गए ।  
रौनक मेरे गाँव की शहर के
शौर में दब गई ।
गांव की पगडंडी अब एक 
चौड़ी सड़क में बदल गई ।
खुले आसमाँ में गिनते थे जो ,
तारे वह दिन अब ना रहे ।
सितारों से भरा आसमाँ
आँखो में यूँ बसा लेते थे ,
मानो जहाँ को रोशन करने की ख्वाहिश हो ।
हाथ में हमारे वक्त रहता था ,
जी चाहे जब अपनों के संग
खर्च कर लेते ।
पहले जमीन से आसमाँ
को निहारना बड़ा अच्छा लगता था ।
अब गगनचुंबी इमारतों से 
नीचे आने को मन करता है
  "ख्वाहिशों की खाई है कि 
भरती नहीं, वक्त है कि मिलता नहीं 
   दिन यूँ ही गुजर जाता है
कभी-कभी 
गैरों की क्या कहूँ ,अपने आप 
से भी नही मिल पाता हूँ ।
सब कुछ पाकर भी 
खाली हाथ लौट आया हूँ, 
रौनक मेरे गाँव की 
गाँव में छोड़ आया हूँ !!!!!
                 संगीता दरक माहेश्वरी
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरे देश का हाल तो देखो,mere desh ka hal to dekho


    मेरे देश का हाल तो देखो
प्रशासन की योजनाओं का लगा है अंबार,
व्यवस्थाओं का हाल तो देखो।
शराब ,गुटखे बिकते धड़ल्ले से
वैधानिक चेतावनी और,
ना खाने का विज्ञापन तो देखो।
होती हैं घटनाये, सुलगती है माँ की गोद,
इन घटनाओं पर राजनीति करने का 

अंदाज तो देखो।
संसद के कैंटीन के खाने का हो जायका

 या हो वीआईपी सुविधाऐ ,
कभी आम आदमी की तरह कतारों में लगकर तो देखो।
सत्रह उलझनों में उलझा रखा है आदमी को,
कभी इनकी उलझनों को सुलझाकर तो देखो।
लाडली से लेकर सुकन्या और अनगिनत योजनाए ,पर बेटियो को"निर्भया" बनने से रोककर तो देखो।
लगी है आग चारो तरफ, पूछते हो जला

 क्या -क्या,

कभी ये आग बूझाकर तो देखो ।

उस पिता का दिल कभी अपने सीने पर लगाकर तो देखो।
बनाते हो हर बात को मुद्दा, कभी मुद्दे की बात करके तो देखो ।
पक्ष विपक्ष बनकर करते हो तकरार ,
देश हित में कोई मुद्दा उठाकर तो देखो।
चुनावी  दौरे ,रैलियों में जितना जोश दिखाते हो ।
कभी देश हित में आजमाकर तो देखो।
स्वछता का चलाया है जो अभियान सही मायने में देश की गंदगी को हटाकर तो देखो।
अंत में--
""मत बैठो आँखे मूँदकर पता नही कब क्या हो जायेगा। फिर कोई भेड़िया बचपन 

तार -तार कर जायेगा""
देश को आगे बढ़ाना है तो बढ़ाओ पर बेटियो को तो बचाओ।।।

               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                     सर्वाधिकार सुरक्षित

#आपदा में अक्सर ढूढँते है अवसर #aapada m dudhte h avser

 कोरोना महामारी ने समूचे विश्व में हाहाकार मचा दिया,इस महामारी में कुछ हाथ मदद को आये किसी ने अवसर समझ समय का लाभ उठाया।मेरे मन के भाव ने कुछ शब्दों को यूँ पिरोया पढ़िए और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराये

आपदा में अक्सर,
                ढूढँते है अवसर।
घात लगाये  बैठे करने को शिकार ,
करते नही किसी बात का जो विचार,
टूटे हुए को और तोड़ा जाये,
पूरी तरह उसको निचोड़ा जाये,
अपनी सुख सुविधाओं के लिये

 संचय कुछ और किया जाये ,
रख मानवता को ताक में 

क्यों न अवसर का लाभ उठाया जाए।

आपदा में अक्सर , मिलता है अवसर
अपनी छवि को खूब चमकाया जाये।
जनता के हित से अपना हित

 भी किया जाये।
रोज थोड़ी-थोड़ी सुर्खियां बटोरी जाये।
आपदा में अवसर तलाशा जाये ।

मानवता की बाट जोहती आपदा,
देती मानव को सेवा भाव का अवसर,
टूटती आशाओं की दीवार को बचाया जाए,
किसी की लाचारी ,और भूख को

 मिटाया जाये ।
बची रहे इंसानियत ,

काम कुछ ऐसा भी किया जाये।

ढूढँते है अवसर...
             ✍️संगीता माहेश्वरी दरक©
                               

माँ (यशोदा सी),Maa, Mother

                   माँ
आज मातृ दिवस है ,वैसे तो हर दिन माँ का होता है । आज माँ की बात की जा रही हैं।
लेकिन,आज  मेरा विषय कुछ अलग है ,
माँ शब्द की सार्थकता क्या माँ बनने में ही है ,क्या शिशु प्रसव करने वाली ही माँ होती है , उनके हिस्से में भी तो मातृत्व है जो इस सुख से वंचित है ,और इसे वो भगवान की मर्जी मानकर स्वीकारती है
आप सोचिये वो कितनी हिम्मत वाली है जो माँ नही बनती फिर भी परिवार में माँ की भूमिका बखुबी निभाती है ।
और उम्रभर अपने ममत्व को उड़ेलती रहती है ।
माँ बनने के लिये संतान को जन्म
देना आवश्यक नही ,
माँ बनकर उसका पालन करना
भी माँ बनना ही है।
मेरी पोस्ट से कोई आहत न हो मेँ किसी का मन नही दुखाना चाहती हूँ।
भगवान कृष्ण की माँ यशोदा और देवकी दोनों थी यहाँ एक ने पोषण किया तो दूसरी ने जन्म दिया ।
स्त्री सृजन का कार्य करती है ,वो संसार को सवांरती है और कभी कभी ईश्वर किसी किसी को इस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य सौपता है।
माँ तो अपनी संतान में अपने भविष्य के सपनों की अपेक्षा रखकर अपना जीवन व्यतीत करती, लेकिन जो स्त्री बिना भविष्य की आस लगाए अपने सारे दायित्वों का निर्वहन करती  है वो तो सच में बहुत बड़ी  होती है।
                संगीता दरक माहेश्वरी©

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...