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ये जीवन है y jivan h, this is life


          

  जीवन कैसे रचता है बसता है उतार चढ़ाव

 में भी ठहरता नही 

पढ़िये मेरी रचना में बीज का सफर 

जीवन के छोर तक🙏


ये जीवन है......
सृजन को लालायित बीज,
बना इक पौधा
यौवन की दहलीज पे आके,
सजा वृक्ष घना
फैली शाखाएँ चारों ओर,
रचाया संसार अपना
फलता फूलता, सुगंधित, सुरचित,
तन पर अपने नीड़ बनाता

सुख, दुख की छांव और धूप तले
जड़ें गहराईं, शाखाओं ने आकाश नापा
इक ओर किसी डाली के
बिछड़ने का शोक मनाया,
तो दूसरी ओर नयी कोपलों की
परवरिश में खिलखिलाया,

पतझड़ और बहार के मौसम को 

उसने हरदम यूँ सहज अपनाया।
                         

                   संगीता दरक
                 सर्वाधिकार सुरक्षित

ये रिश्तों की बगिया,garden of relationships.,


      ये रिश्तों की बगिया........

ये रिश्तों की बगिया ,यूँ ही नहीं महकती।
मिट्टी सा समर्पण,और बीज सा धैर्य
रखना होता है।
मिलती तो हैं बहार ,पर पतझड़
को भी सहना पड़ता है,
और काँटों तले फूलों सा
खिलना पड़ता है।
ये रिश्तों की बगिया, यूँ ही नही महकती,
पत्तियों और शाख़ की जिम्मेदारी भी निभानी होती है।
कभी मालिक तो कभी माली बनना पड़ता है।
सुखी टहनियों को,अलविदा कहकर
नयी कोपलों की उम्मीद
जगानी पड़ती है।
ये रिश्तों की बगिया यूँ ही नही महकती,
त्याग और विश्वास से इसे
सींचना पड़ता है।।।
              ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

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