जीवन कैसे रचता है बसता है उतार चढ़ाव
में भी ठहरता नही
पढ़िये मेरी रचना में बीज का सफर
जीवन के छोर तक🙏
ये जीवन है......
सृजन को लालायित बीज,
बना इक पौधा
यौवन की दहलीज पे आके,
सजा वृक्ष घना
फैली शाखाएँ चारों ओर,
रचाया संसार अपना
फलता फूलता, सुगंधित, सुरचित,
तन पर अपने नीड़ बनाता
सुख, दुख की छांव और धूप तले
जड़ें गहराईं, शाखाओं ने आकाश नापा
इक ओर किसी डाली के
बिछड़ने का शोक मनाया,
तो दूसरी ओर नयी कोपलों की
परवरिश में खिलखिलाया,
पतझड़ और बहार के मौसम को
उसने हरदम यूँ सहज अपनाया।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित