खूब की कोशिश हमने निभाने की
चालाकिया समझ न आई हमे जमाने कीरिश्तों के नाम पर मन बहुत हर्षाया
मन को बहुत बार ये कहकर समझाया था
पर मन अब ये समझने लगा है
खोखले रिश्तो में अब बचा क्या है
संगीता दरक©
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
खूब की कोशिश हमने निभाने की
चालाकिया समझ न आई हमे जमाने की
यूँ ही नहीं बनती
कविता और ये कहानियाँ
परिस्तिथियाँ बनती है,
और मन में विचारो के बादल उमड़ते है
शब्द बरसते है ,
कोई बूँद अपने में भाव लिये
कागज पर उतरती
और कोई बिना भाव लिये मिट जाती
उन्ही बूंदों से कोई कविता कहानी बन जाती
और आपके दिल को स्पर्श
करने की कोशिश करती
और ये कोशिश निरन्तर रहती ।
संगीता दरक©
होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर, कीजिए थोड़ा चिन्तन-मनन दहन पर। कितनी बुराइयों को समेट हर बार जल जाती, न जाने फिर ...