खूब की कोशिश हमने निभाने की
चालाकिया समझ न आई हमे जमाने कीरिश्तों के नाम पर मन बहुत हर्षाया
मन को बहुत बार ये कहकर समझाया था
पर मन अब ये समझने लगा है
खोखले रिश्तो में अब बचा क्या है
संगीता दरक©
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
खूब की कोशिश हमने निभाने की
चालाकिया समझ न आई हमे जमाने की जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास भर दे
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं
जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
मिट जाए, हर मन की त्रास
रिश्तों में हो भरी मिठास
अपने कर्मों का हो एहसास
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
ईश्वर में हर पल हो आस्था,
सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
बड़ो को मिलता हो सम्मान
मिट जाए जग से अज्ञान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
जीवन की भागदौड़ से जब मन थक जाता है तब मन कुछ यूँ कहता है
"कुछ पल सुस्ता लूँ"
जीवन की आपा धापी में,
कुछ पल सुस्ता लूँ ।
करके साधना,
नित्य की ये
दौड़ धुप में अपने आप को
खो आया ।
अपने आपको अपनी
अंतर आत्मा से मिलवा दूँ।
करके शांत चित्त को ,
आज समझा दूँ।
नश्वर है ये जीवन,इसे बतला दूँ।
जीवन की हो साँझ,
उससे पहले थोड़ा पुण्य कमा लूँ
डूबती है ज्यों ये साँझ
जीवन भी खो जायेगा
एक दिन फिर होगी भोर
फैलेगा उजियारा चहूँ और
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
आज सपनो की बात करते है कैसे बुंनते है हम सपने .....
रात के कैनवास पर जीवन के रंगों से
उकेरी हुई आकृतियाँ ,
होती है ख़्वाब ।
कुछ मन से,कुछ अनमने से ।
लुभावने ख़्वाबों, को
पूरा करने में जुट जाता
ये तन-मन
होते पूरे, जब ख़्वाब
झूम उठता मन
अधूरे ख़्वाब मिटते ,
फिर लेते नया कोई आकार।।
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित

मन सब कुछ बर्दाश्त करता है लेकिन कभी कभी बोल पड़ता है
दोस्तों आपके साथ भी ऐसा होता होगा पढ़िये और कमेंट जरूर कीजिये
"मन"
मन को आज बड़ा समझाया
की मान जा तू जिद ना कर
हर बार की तरह तू ही मेरी सुन
कहने लगा मन हर बार
मुझे ही क्यों झुकना पड़ता है
हर बार मुझे ही क्यों मरना पड़ता है
कभी तो मेरे मन की मुझे करने दो
हर बात मन की मन में रह जाती है
यही कसक मन को दुखाती है
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
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