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खोखले रिश्ते

 खूब की कोशिश हमने निभाने की

चालाकिया समझ न आई हमे जमाने की
रिश्तों के नाम पर  मन बहुत हर्षाया
मन को बहुत बार ये कहकर समझाया था
पर मन अब ये समझने लगा है
खोखले रिश्तो में अब बचा क्या है
             संगीता दरक©

ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं,These lamps burn themselves

 जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो  दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास  भर दे

ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं

जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।

  मिट जाए, हर मन की त्रास
  रिश्तों में हो भरी मिठास
  अपने कर्मों का हो एहसास
  ये दीये तो ख़ुद  ही जल उठते हैं।

  ईश्वर में हर पल हो आस्था,
  सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
  अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
  ये दीये  तो ख़ुद ही जल उठते हैं।

  परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
  बड़ो को मिलता हो सम्मान
  मिट जाए जग से अज्ञान
   ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
              संगीता दरक
        सर्वाधिकार सुरक्षित
                 

कुछ पल सुस्ता लूँ

जीवन की भागदौड़ से जब मन थक जाता है तब मन कुछ यूँ कहता है

         "कुछ पल सुस्ता लूँ"
  जीवन की आपा धापी में,
   कुछ पल सुस्ता लूँ ।
करके साधना, 

नित्य की ये
दौड़ धुप में अपने आप को
खो आया ।
अपने आपको अपनी
अंतर आत्मा से मिलवा दूँ।
करके शांत चित्त को ,
आज समझा दूँ।
नश्वर है ये जीवन,इसे बतला दूँ।
जीवन की हो साँझ,
उससे पहले थोड़ा पुण्य कमा लूँ
डूबती है ज्यों ये साँझ
जीवन भी खो जायेगा
एक दिन फिर होगी भोर
फैलेगा उजियारा चहूँ और
          संगीता दरक
      सर्वाधिकार सुरक्षित

ख़्वाब ऐसे होते है....dreams are like this,

आज सपनो की बात करते है कैसे बुंनते है हम सपने .....

रात के कैनवास पर जीवन के रंगों से
उकेरी हुई आकृतियाँ ,
होती है ख़्वाब ।
कुछ मन से,कुछ अनमने से ।
लुभावने ख़्वाबों, को
पूरा करने में जुट जाता
ये तन-मन
होते पूरे, जब ख़्वाब
झूम उठता मन
अधूरे ख़्वाब मिटते ,
फिर लेते नया कोई आकार।।
                संगीता दरक माहेश्वरी
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

मन ,mind , ego,


       मन  सब कुछ बर्दाश्त करता है लेकिन कभी कभी बोल पड़ता है
दोस्तों आपके साथ भी ऐसा होता होगा पढ़िये और कमेंट जरूर कीजिये       
               
              "मन"
मन को आज बड़ा समझाया
की मान जा तू जिद ना कर
हर बार की तरह तू ही मेरी सुन
कहने लगा मन हर बार
मुझे ही क्यों झुकना पड़ता है
हर बार मुझे ही क्यों मरना पड़ता है
कभी तो मेरे मन की मुझे करने दो
हर बात मन की मन में रह जाती है
यही कसक मन को दुखाती है
           संगीता दरक माहेश्वरी
              सर्वाधिकार सुरक्षित

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...