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आदमी आदमी ना रहा

    जिस रफ्तार से हम जी रहे है अपने आपको पीछे छोड़ते जा रहे है इसी व्यथा को बंया करः रही मेरी रचना     
 
आदमी आदमी ना रहा
फिरते हैं शब्द भी, अपने अर्थ के लिये
रिश्तों की मिठास, अट्टहास बन गई

उलझा है आदमी ,
शब्दों के जाल मे ऐसे,
सहेजता कुछ नही उड़ेलता है ,बस

हर त्यौहार फीका -फीका सा लगता है
दिखावा ही आदमी की पहचान बन गई
कुदरत ने बदला कुछ नही,
बस हम इंसानों की नियत बदल गई
रिश्तों की जिम्मेदारी
अब आफत बन गई

दिखावा और  बेईमानी
अब शराफत  बन  गई
देखो अपनी संस्कृति को
पश्चिमी   सभ्यता छल गई

आदमी आदमी न रहा
मशीन बन गया
आदमी का काम मशीन
और मशीन का काम आदमी
कर  रहा

देखो कैसे जीने के नाम पर
अपने आपको छल रहा
और राजनीति के नाम पर आज भी देश बंट रहा !
             ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

भ्रूण हत्या 👧female foeticide

  बेटियाँ जब माँ के गर्भ में ही मार दी जाती है तो उसे कन्या भ्रूण  हत्या कहते हैं

 एक बेटी जब माँ के गर्भ में आती है तो वह अपने आप को इस दुनिया में लाने के लिए कहती है ,

मेरे शब्द उसी  व्यथा को  बयां कर रहे हैं 

कैसे एक अजन्मी बेटी अपने माँ पिता और दादा -दादी से अपने जीवन को बचाने के 

और दुनिया में लाने का कहती है  ।    

भ्रूण हत्या (अजन्मी बेटी)

माँ से कहती है
  सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे।
मैं भी आँखों का तारा बनूँगी ,
तुम्हारा मैं भी सहारा बनूँगी।
फिर कहती पिता से, प्रतिबिम्ब हूँ तेरा
यूँ मुझसे नाता न तोड़।
यूँ जीवन देकर मुँह न मोड़ ।
सपना हूँ तेरा ,मुझे सच तो होने दे।
अंश हूँ तेरा मुझे आकार तो लेने दे।
दादा-दादी से कहती है ,
मैं भी तुम्हारा मान बढ़ाऊँगी।
दादा को मैं भी सोने की सीढ़ी चढ़ाऊँगी।
संस्कार में भी सारे पूरे करूँगी
तुम्हारी ममता का मान में भी रखूँगी
अंश हु तेरा ,मुझे आकार तो लेने दे
आज जो कहना है ,वह कहने दे
नयी सृष्टि तो मैं ही रचूँगी,फिर क्यों मेरी रचना की होती है विकृति
क्या ? यही है तुम्हारी संस्कृति !!!
                ✍️संगीता दरक
                सर्वाधिकार सुरक्षित

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...