बेजार सी एक रात
बेजार सी एक रात आँखों में,
आज मेरे यूँ उतरती है।
ख्वाबो की खलिश,आँखों को
यूँ खटकती हैं।
ख्वाहिशों की बंजर जमीं में
रेगिस्तान सी पसरी हुई यादे
कैक्टस सी चुभ रही है।
अँधेरी रात आँखों से
कतरा-कतरा बह रही हैं।
बेताब है आँखे मेरी पाने
को आफताब
शायद अब्र उजाले के ले आए।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
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बेजार सी एक रात,a poor night
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