बात प्रेम की ,#love #pyar #prem #eshk

बसन्त ऋतु में प्रकृति ने प्रेम की चादर ओढ़ ली, जब प्रकृति ही प्रेममय है तो फिर इस प्रेम से कोई कैसे बचे।

 प्रेम, प्यार, उल्फत, मोहब्बत, इश्क व लव

 न जाने कितने नाम, लेकिन एहसास एक।

  प्यार सभी रिश्तों में होता है, तभी हम रिश्ते निभाते हैं, बिना प्रेम के कोई रिश्ता निभ नहीं सकता।

 क्योंकि जहाँ प्रेम नहीं, स्नेह नहीं, वहाँ रिश्तों की कल्पना ही नहीं कर सकते।

 प्रेम कब नहीं था, पहले भी था, अब भी है, हमेशा ही रहेगा।

 राधा को कृष्ण से प्रेम था, मीरा भी कृष्ण से प्रेम करती थी, मगर इनके प्रेम में शारीरिक आकर्षण नहीं था, मन से प्रेम, भाव से प्रेम और दोनों के लिए ही प्रेम का उद्देश्य उसको पाना नहीं था, बल्कि आपस में समाने का था। आज के दौर में प्रेम के मायने बदले हैं, अब प्रेम समर्पण नहीं सिर्फ अपना हक माँगता है।

 

क्या प्रेम अपनी पराकाष्ठा तक पहुँच पाता है।

 क्या है प्रेम की पराकाष्ठा आज के दौर में ? 

कहते हैं कि प्रेम की पराकाष्ठा राधा और समर्पण की पराकाष्ठा मीरा और इस प्रेम व समर्पण की पराकाष्ठा श्री कृष्ण है। 

प्रेम क्या है महज आकर्षण या यौवन की दहलीज का  सुनहरा ख्वाब।

क्या प्रेम को पाना ही उसकी सार्थकता है।  प्रेम किसे नहीं होता, यह तो सबको होता है, बस कोई इजहार कर देता है और कोई प्रेम की मंजिल को पा लेता है।  

प्रेम उम्र के बन्धन को भी नहीं स्वीकारता।

 न ही यह किसी में भेद करता है, कब किससे प्रेम हो जाए पता ही नहीं चलता।

 क्योंकि प्रेम सोचने का अवसर ही नहीं देता।

आजकल प्रेम निश्छल नहीं रहा, प्रेम स्वार्थी हो गया है।

 इसके लिए चाहे अपने रूठे  या अपनों को छोड़ना पड़े, इसकी परवाह नहीं करता। आज के प्रेम करने वालों से हम त्याग की उम्मीद नहीं कर सकते।

बहुत कम ऐसे होते हैं, जो अपने अपनों के लिए अपने प्रेम को भूलना स्वीकार करते हैं।

 प्रेम के मायने बदल गए सोच बदल गई, और प्रेम पाने के बाद भी वह अपनी मंजिल पर पहुँचे या नहीं यह किसी को अवगत ही नहीं।

 बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो रिश्ते में बन्ध तो जाते हैं पर निभा नहीं पाते।

 वह प्रेम को समझ ही नहीं पाते हैं।

प्रेम पाने का ही नाम नहीं है, प्रेम एक से होता है तो उसके सारे अपनों को भी अपनाना होता हैं। 

लेकिन आज के दौर का प्रेम बस दो लोगो के बीच तक ही सीमित है, प्रेम एक-दूजे पर इस कदर हावी हो जाता है कि वो अपनों की परवाह किए बिना गलत कदम उठा लेते हैं।

प्रेम होने का सबूत नहीं दिया जा सकता है, प्रेम तो बस महसूस किया जाता है। प्रेम को करना नही समझना है, और प्रेम को परखना है तो पहले हमें प्रेम में 

समर्पित होना पड़ेगा।

आजकल लिव इन रिलेशनशिप में जो रहते हैं वो अपने आपको प्रेमी कहते है। निभ जाए तो प्रेम और न निभे तो टुकड़े-टुकड़े प्रेम के।

प्रेम को प्रेम ही रहने दो, प्रेम छिनता नहीं सर्वस्य न्यौच्छावर करता है । 

प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं है। प्रेम को बस प्रेम ही रहने दो।।

#99का फेर #99kafer #Illusion

 


                      99 का फेर

कहते हैं कि इस जग की माया में जो फँसा वह फँस कर ही रह गया।

एक बार अगर कोई 99 के फेर में पड़ जाए तो निकलना मुश्किल है, वह इसमें ही लगा रहता है।

बात 99 की हो या ...........999 रूपए की हो 

इस निन्यानवे  के ऑफर से कोई बच जाए तो बड़ी बात है।

हम दौड़े-दौड़े जाते हैं, हमें  सौ से निन्यानवे कम

 लगता है, हम इन दोनों के फासले को भूल जाते हैं। सच कहूँ तो इस 99 के फेर में हम एक रुपए को बहुत महत्व देते हैं।

 निन्यानवे काऑफर हो और उस पर एक 

खरीदने पर दूसरा  फ्री  भी हो तो सोने पर सुहागा।

 त्यौहार की आहट सुन ये  ऑफर जरूर आते हैं और हमारे दिलों दिमाग में दस्तक दे जाते हैं और दिल भागा-भागा जाता है इनकी ओर।

जीवन में खुशियों का अवसर ऑफर के बिना अधूरा है, ऐसा सोचकर हम ऑफर में फँस जाते हैं।  बात ऑफर की हो तो हम इनसे दूर नहीं रह सकते हैं। 

हमें हर ऑफर में अपनी सैलरी+ इन्क्रीमेंट+ मेहनत= ऑफर लगता है।

इस रफ्तार भरी जिन्दगी में जहाँ हम 99 के चक्कर में पड़े हैं, आदमी का काम मशीन और मशीन का काम आदमी कर रहा है। हमारी व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि हमें अपनों के लिए समय ही नही है।

हमारी जरूरतें इतनी बढ़ गई है कि हम बस उनको पूरा करने में लग जाते हैं। हमें हर चीज अच्छी और बस अच्छी ही चाहिए। खाने की बात हो तो हमें बेमौसम के फल और सब्जियाँ ही चाहिए, भले ही वो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए, हमें तो बस

 खाना है। बात खाने की ही नहीं है, कपड़े की बात हो या शादी समारोह की, हमें सब काम बहुत अच्छा करना है, पैसों की पूरी ताकत के साथ फिर चाहे उसके लिए हमें कुछ भी करना पड़े। हमें पता ही नही हम क्या पाने की चाह में दौड़ रहे है। 

जीवन पहले भी जीते थे आनन्द से, पहले भी 

जीवन चल रहा था, हमारी जरूरतें कम थी और कम जरूरतों के साथ जीवन खूब सुखी था। 

बड़े-बड़े मकान और उसमें सारी सुविधाएँ गाड़ी 

और न जाने क्या-क्या।

अपनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई, मिलने-मिलाने के लिए अवसर तलाशने पड़ते हैं। 

न हमें अपने लिए समय है, न अपनों के लिए

रिश्तों में उलझने बढ़ती जा रही है, हम सुकून की तलाश में भटक रहे हैं। अपनी व्यस्तता भरी जिन्दगी में हम अपनी सेहत का ख्याल भी नहीं रख पा रहे। हम अपने और अपनों के लिए जितनी उठापटक

 करते हैं, क्या हम पैसों से सारी खुशियाँ खरीद

 सकते है।  हम क्या पाना चाहते हैं और क्या वो

 हमें मिल रहा है।

क्यों हम निन्यानवे को सौ बनाने के चक्कर

 में पड़े हैं। हमें खुशहाल जीवन जीने के लिए 

अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कम 

करना पड़ेगा।

तभी हम अपनी जिन्दगी  को सुकून से जी पाएँगे।

खुशियों के अवसर ऑफर के रूप में हमें कई बार मिलते हैं, बस हमें उनको समझने और उनका लाभ उठाने की देर है। 

 छोटी-सी जिन्दगी है  मजे से जिओ बस और खुशियों के अवसर तलाशते रहो।

       संगीता दरक

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...