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मैं दीया माटी का , I am a lamp of clay , M diya mati ka


एक संवाद दीये और मेरे बीच

         "मैं दीया माटी का "
एक दिन पूछा मैंने, दीये से
क्यों जलते हो तुम।
दीया बोला,मैं तो उजाले के
लिए तेल और बाती को साथ
लिएबरसों से जल रहा हूँ ।
आज भी अंधकार को मिटा रहा हूँ। लेकिन यहाँ आदमी-आदमी
को जला रहा है।
मैंने कहा बने हो मिट्टी के,
क्या इस बात से अनजान हो।
दीया बोला मिट्टी का हूँ
जानता हूँ मैं जलता,तपता हूँ ।
तभी तो बिखरकर नए
साँचे में ढलता हूँ।
अपने अस्तित्व को पहचानता हूँ।
तुम इंसानों की तरह
अपनी मिट्टी को नहीं भूलता।
मैंने कहा बिकते हो बाजारों में
फिर इतने अरमान क्यों ?
आएगा एक हवा का झोंका,
फिर इतना अभिमान क्यों,
दीया बोला बिकता हूँ बाजारो में,
लेकिन किसी अमीर की
जागीर नहीं ।
गरीब के घर में भी जलता हूँ ।
उसके सुख-दुख के साथ
चलता हूँ।
मेरे उजाले को तुम बाँट
नहीं पाओगे।
अँधेरे के  खिलाफ हर
जगह मुझे ही पाओगे ।
आए चाहे बयार या कोई
तूफाँ मैं अपने कर्म से नहीं हटता
हाँ होता है मुझे भी अहंकार जब अलौकिक कान्हा के सामने
अपनी ज्योति बिखेरता हूँ
मिट्टी का दीया हूँ, चारों और
प्रकाश बिखेरता हूँ
                संगीता दरक
          सर्वाधिकार सुरक्षित

ऐ वक्त

कहते है कि वक्त किसी का नही होता न ही किसी के लिये ठहरता है ये वक्त...

ऐ वक्त
जवाब नही ऐ वक्त तेरा कि कब किसकी तरफ तू हो  जाये
कंरूँ क्या मैं अभिमान कि तू पहलू में जाकर किसी और  के बैठ जाये
मैं थामना भी चाहूँ तुझको
तो क्या  एक लम्हा भी न समेट पाऊँ 
फिर करू क्यों मैं गुमाँ
हर हस्ती को मिटा आया है तू
चाहे  जर्रा हो या हो चट्टान
थमता  नही  तू किसी के लिये चाहे साँसे थम जाये
             संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...