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एक दीप ऐसा जलाये

         एक दीप ऐसा जलाये,
बाहरी चकाचौंध बहुत हुई ,
                  आओ अंतर्मन में उजास भर दे।
 चख लिये स्वाद खूब,
                      अब रिश्तों में मिठास भर दे ,
पहनावे खूब  पहन लिए,
       संस्कारो का अचकन अब पहना जाए।
 भर जाये चारो और प्रकाश, 
दीपोउत्सव ऐसा मनाया जाए।
                  संगीता दरक©
    



 




 

 

बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts

 शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि  यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान         संगीता दरक माहेश्वरी