एक दीप ऐसा जलाये,
बाहरी चकाचौंध बहुत हुई ,
आओ अंतर्मन में उजास भर दे।
चख लिये स्वाद खूब,
अब रिश्तों में मिठास भर दे ,
पहनावे खूब पहन लिए,
संस्कारो का अचकन अब पहना जाए।
भर जाये चारो और प्रकाश,
दीपोउत्सव ऐसा मनाया जाए।
संगीता दरक©