बात तो नजर की है ! Bat to najer ki h

 बात तो नजर की है!


 मैंने उसको देखा और देखते रह गया! अरे, मैंने तो उसको देखा ही नहीं! अरे ज़रा एक नजर देखो तो सही! मैं तो उसे देख ही नहीं सकता! कभी हम लालायित रहते है देखने को, और देखते ही उसमें अच्छाई बुराई को ढूँढने लगते हैं।

हमारी नजर जैसे ही किसी को देखती है मन मष्तिष्क सोचने लगता है, उसके प्रति भाव जागृत होते हैं, क्रिया प्रतिक्रिया होने लगती है। कभी-कभी हम ऐसा भी देखते है कि नजर ही नहीं हटती और कभी ऐसा भी कि फिर देखने को मन ही ना करे।

प्यार भरी नज़र पराए को भी अपना बना लेती है। वहीं तिरछी या टेढ़ी निगाह दूरियाँ और संदेह पैदा करती है। बच्चों को प्यार भरी नजर से देखो तो वह अपने पास दौड़ा चला आता है और गुस्से वाली नजर से देखो तो मुँह बनाकर रोने लगता है।

आँखे होते हुए भी हम कभी-कभी कितना कुछ नजरअंदाज कर देते हैं। क्यों हमारी नजर कुछ ऐसा देखना चाहती है जो हमें नहीं देखना है? महाभारत की द्यूत  सभा में धृतराष्ट आँखों से अंधे थे लेकिन बाकी सबकी आँखे होते हुए भी उस सभा में द्रोपदी का चीर हरण हुआ और सबने देखा, कोई भी उसे रोक नही पाया।

अभी दुनिया में कितने अपराध हो रहे है, तो क्या मैं यह कहूँ कि आँखे न होती तो शायद इतना कुछ ना होता! जब आप देखेगे ही नहीं तो कुछ होगा ही नहीं, मन में भाव दुष्भाव आएंगे ही नहीं! 

लेकिन एक बात और ये भी है कि 

कभी-कभी नजर देख कर कुछ गलत हो तो ठीक भी कर सकती है। महाभारत में धृतराष्ट्र अंधे थे, तो उनकी पत्नी पति के अंधत्व के कारण अपनी आँखों पर पट्टी बांधने का निर्णय लेती है। ऐसा निर्णय लेना कोई सहज नहीं है, लेकिन वह पतिव्रता पत्नी ऐसा निर्णय लेती है, लेकिन वह यह न करके अपने पति की आँखे बनती तो शायद इतिहास कुछ और होता।

खैर हम इस बात को यही छोड़ते हैं।क्योंकि बात तो नजर की है कि आपकी नजर कैसी, आपने देखा क्या, और देखने पर मन में भाव क्या आये। आपकी नजर किसी पर नजर रख सकती है, तो किसी नजर को नजर से बचा सकती है। आँखे  नहीं हो तो भी मन में भाव तो विचारों को उत्पन्न करते हैं, आँखे बंद होती हैं तब भी मन सोचना तो बंद नहीं करता है। 

ये नजर ही तो है जो किसी को फलक पे तो कभी जमी पर गिरा देती है, किसी की नजरों से बचना मुश्किल है।

"जो देखकर भी नहीं देखते हैं" हेलेन केलर का पाठ भी हमें यही बताता है कि हम आँखे होते भी नहीं देखते हैं। प्रकृति ने हमारे चारो और सुंदर नजारे बिखेरे है फिर हमारी नजर सुंदरता को क्यों नहीं देखती ।

हेलेन केलर, जो आँखों से देख नही सकती थी, लिखती है  "जब अपनी मित्र से पूछा जो जंगल की सैर करके लौटी कि तुमने 

क्या-क्या देखा तो मित्र का जवाब था कि कुछ खास तो नही" तो हेलेन केलर को बहुत आश्चर्य हुआ और वो सोचने लगी कि जिन लोगो की आँखे होती है वो कम देखते है। जिस प्रकृति के स्पर्श मात्र से उसका मन आनन्दित हो उठता है और देखने वालों को जरा भी आनंद की अनुभूति नही हुई आश्चर्य है ! 

कहने का अभिप्राय यह है कि हम आँखों वाले अपनी आँखों का सही उपयोग कर रहे है या नहीं! 

दुर्ष्टिहीन सोचते है कि दुनिया की सारी सुंदरता तो आँखों वाले ही देखते है, जबकि हम अपनी आँखों से क्या देख रहे और किसे अनदेखा कर रहे है !

मेरा ये कहना है कि भगवान ने जो आँखे  हमें दी है, उससे हम अच्छा देखें। वरना हमसे तो वो बिना आँखों वाले अच्छे, जो न देखते हुए भी अच्छा महसूस करते हैं ।

ये नजर बचपन में माँ से ममता मांगती है तो योवन काल मे पिता से हक मांगती है। ये नजर कब नजर से मिलती और आँखे चार कर लेती, कब ये जिम्मेदारियों को देखने लगती है। बात तो नजर की है हम इससे कहाँ कब क्या देखते हैं। 

ये नजर हमे आभास करवाती है कि भविष्य के गर्भ में क्या है, नजर से ही तो भाव झलकते है, ये नजर किसी की पीड़ा को देखकर नम हो जाए, किसी की खुशी में शामिल हो जाये, हमारी नजर ऐसी हो जाये कि चारो ओर ख़ुशियाँ ही खुशियाँ नजर आए। 

     संगीता दरक

हैप्पी करवा चौथ Happy karva choth

 तेरा हर ख्याल धड़कनों को छू जाता,

तू बिन बोले ही बहुत कुछ कह जाता,

हर बात तेरी अनोखी,अंदाज अलग सा,

मैं देखती रह जाती,

 तू आँखों से दिल मे उतर जाता ।

         संगीता दरक

रावण जलने को तैयार नहीं, Ravana is not ready to burn

     रावण जलने  को तैयार नहीं


रावण बनने को और जलने को,
अब की  बार तैयार नहीं ।
कहता है मेरे समक्ष, मुझे जला सके
वो राम नहीं ।
हर बार तो मैं जलता हूँ, अपने पाप सहित मिटता हूँ ।
किया था मेंने सीता हरण, उस पाप के कारण बरसों से जल रहा हूँ।
लेकिन जो पापी मासूमों के साथ करते खिलवाड़,
और लेते हैं जो कानून और लंबी तारीखों की आड़।
मुझसे बढ़कर पापी है इस धरा पर,
क्या उनका संहार नहीं हो सकता ।
मुँह में राम बगल में भी राम हो ,
क्या ये नहीं हो सकता ।
जिसने अपनी सारी बुराईयों को हो जलाया,
वो ही आकर मुझे बनाये और जलाए।
                      संगीता दरक माहेश्वरी
                          सर्वाधिकार सुरक्षित 

तू ही बता जिंदगी.....tu hi bata

 कुछ भुला दिया जाए,

 कुछ याद रखा जाए,

   तू ही बता जिंदगी,  

    तुझे कैसे जिया जाए।

    मिला जो नसीब से,
     छुटा जो तकदीर से,
  क्या उसे ही मान लिया जाए।
    तू ही बता जिंदगी, 
   तुझे कैसे जिया जाए। 
             संगीता दरक माहेश्वरी 

डाकिया डाक लाया,postmen



कहाँ गए वो पुराने दिन जब हम एक दूसरे को चिट्टिया लिखते थे ,डाकिया हर घर द्वार पर दस्तक देता था । आज के बच्चे तो पोस्टकार्ड को पहचानते ही नही है ।आज मेरी रचना का विषय यही है पढ़िये और अपने पुराने दिनों को याद करिये।



डाकिया डाक लाया... 

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

अहसासों को हाथों से समेटकर, 

लिफाफे में भरता न कोई।

लाल डिब्बा भर जाता था तरह- तरह की 

बातों से, 

आजकल लाल डिब्बे को खोजता न कोई।

 उम्मीद और इंतजार की टकटकी 

लगाता न कोई,

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

सालो संभालते हम इन चिट्ठियों को,

डिलीट का ऑप्शन होता न कोई।

कई-कई बार पढ़ते एक चिट्ठी को,

मन को भाती जैसी चिट्ठियां, 

वैसे भाता न कोई।

खुशियो  के दरवाजे को खटखटाता

न कोई,

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

मन की मेमोरी ऐसी भरता न कोई।

कभी खुशियो की सौगात, 

तो कभी मन की बात, 

आजकल सुनाता न कोई।

आता नही डाकिया अब, लेकर चिट्ठी कोई।

        संगीता दरक माहेश्वरी

            


मेरी डायरी,my diary

 मेरी डायरी

सबके मन का सुनती है, 

सुख-दुख का हिस्सा बनती है। 

जीवन के हर पल का हिसाब इस पर होता, 

कोई तिजोरी में तो कोई सिरहाने रख सोता। 

मेरी डायरी बनती कभी किसी यात्रा का हिस्सा, 

तो बनती कभी किसी जीवन का किस्सा। 

मन की हो या दिल की बात सब सुन लेती,

कितना भी कुछ हो जाए किसी से कुछ न कहती। 

रखता कोई गुलाब तो कोई प्रेम पाती ,

तनहाई को भी यादों से उसकी महकाती । 

हर रंग के भाव अपने में बसाती,

अधूरी ख़्वाहिशों और साकार सपनों

को अपने में सजाती। 

बातों से जब भर जाती कोने 

में रख दी जाती ,

चलती जब यादों की बयार 

एक -एक पन्ना छेड़ जाती। 

सबसे न्यारी मेरी डायरी

मन को भाती ,

अपनो से भी बढ़कर मेरा साथ निभाती ।

                  संगीता दरक माहेश्वरी©

ये पत्थर ,these stones

 इस पत्थर का सफर भी बड़ा अजीब है इसने आदमी के असभ्य से सभ्य होने तक साथ दिया

इस पत्थर के कई रूप है जैसा चाहा वैसा हमने इसे बनाया पढ़िए पत्थर की व्यथा मेरे शब्दों में            

                  ये पत्थर

      ये पत्थर चट्टान सा मजबूत था,

    लगा जिसके सिर उसके लिये यमदूत था!

    पर जब बिखरा तो बिखरकर टूट गया,

  जैसे अपनों का साथ इक पल में छूट गया!

   कभी इसे नींव का तो कभी मील का

     पत्थर बनाया,

   मिले तराशने वाले हाथ तो देकर आकार 

    किसी देवालय में बैठाया!

   कभी मस्जिद की दीवार में तो कभी 

    मंदिर के कंगूरों में सजाया,

  कभी बनाकर सेतु सागर पार करवाया!

कभी इसे रत्न शान शौकत तो कभी 

ठोकर में लुढ़काया,

  कभी किसी राह का रोड़ा तो कभी जोर               आजमाइश में आजमाया!

   इस पत्थर को हमने भी क्या खूब आजमाया,

   असभ्यता और सभ्यता के बीच का 

   सफर भी इस पत्थर ने पार करवाया!

   ये पत्थर तो आखिर पत्थर है फिर क्यों 

    हमने मानवता को पत्थर बनाया।

  और  धर्म के नाम पर इसे 

    अपना हथियार बनाया!


           संगीता दरक माहेश्वरी©

जमाने की भीड़........

         ज़माने की भीड़....

     जमाने की भीड़ से न रख वास्ता,

       बस ईश्वर में  रख तू  आस्था।

         झूठ से न रख वास्ता,

      चुन हरदम तू सच का रास्ता।

   निराशाओं का जीवन से न हो वास्ता,

   आत्मविश्वास भरपूर रख तू अपने अंतस्था।

    जीवन मे रोगों से न हो वास्ता,

     हरदम अपना तू  योग, प्राणायाम का रास्ता।

    रहे आनन्द ही आनन्द चाहे हो कोई अवस्था,

    बनाये रखना जीवन मे तू अपने अनुशास्ता।

     अभिमान अहंकार से न हो वास्ता,

    रखना तू हरदम  याद  ईश्वर की है ये

    प्रशास्ता (सत्ता) ।

        जमाने की भीड़ से न रख वास्ता,

          बस ईश्वर में रख तू आस्था।

              संगीता दरक माहेश्वरी©

World No-Tobacco Day (विश्व तम्बाकू निषेध दिवस)

 ये जीवन है अनमोल.....

यह जीवन है अनमोल,
नशे का जहर इसमे मत घोल।

जी ले ये जिंदगी, है बड़ी अनमोल।
नशे के पलड़े में मत इसको तोल ।

जीवन मे हो आगे बढ़ना,
तो नशे के चक्कर मे कभी न पढ़ना।

शराब गुटखा और सिगरेट
मत कर इन से यारी,
मौत के सामान की है ये तैयारी ।
    संगीता दरक माहेश्वरी©

मासिक धर्म दिवस, menstrual day

 28 मई का दिन.."मासिक धर्म दिवस"

"बात उन दिनों की"

स्वच्छता एवं स्वच्छता दिवस पर आप सभी को बधाई ।

सन 2014 में जर्मनी के एक NGO ने इस दिन को मनाने की शुरुआत् की ।

चलो आज हम खुद की बात खुलकर सबसे 

करते हैं।

वो जीवन देने के चार दिन ...

लाल रंग शक्ति का परिचायक है, आज मैं इस लाल रंग  की ही बात कर रही हूँ, नारी का दूसरा रूप  शक्ति और यही शक्ति अपने में सृजन को संचित करती है। असहनीय पीड़ा को झेलती है ।

बचपन की चहलकुद खत्म होते ही ,एक धर्म शुरु हो जाता है, जो विज्ञान की नजर में नारी को पूर्ण करता है, और उस माहवारी के साथ ढेर सारे नियंम कायदे।

 कही फुसफुसाहट तो कही चुप्पी और शर्म सी । 

लेकिन ये सब क्यों ?

ये एक शारीरिक क्रिया है जो स्त्रीत्व को पूर्ण करती है ,जब मातृत्व साकार होता है तो गुजंती है किलकारियाँ मनाते हैं उत्सव। तो  मासिक धर्म पर चुप्पी क्यों ?

क्यों कपड़े और पेड के बीच का सफर तय नही हुआ आज भी।

क्यों आज भी हम इतना शिक्षित और विकसित होने के बाउजूद भी पीछे है।

 बस बहुत हुआ ,टीवी में विज्ञापन आता है तो अब नज़रे नीची नहीं करना है, अब खुलकर बात करना है।

 स्वच्छता  और स्वस्थता को अपनाना है।

भारत जैसे देश में जहाँ महिलाओं के शिक्षा और स्वास्थ्य पर पुरजोर दिया जाता है वहाँ मासिक धर्म को लेकर कोई बात नही क्या हमे सेनेटरी नेपकिन कम मूल्य या निःशुल्क मिलने चाहिए । 

ताकि स्वस्थ और स्वछ्ता दोनों का ख्याल रहे ।

आश्चर्य की बात  ये भी है, 

कि यूँ तो हमारे देश में हर मुद्दे पर बहस और अधिकार की बातें होती है ,लेकिन सेनेटरी नैपकिन हर एक को न्यूनतम मूल्य या निशुल्क उपलब्ध हो ऐसा मुद्दा आज तक किसी ने नहीं उठाया।

और ये ऐसी जरूरत है जो हरेक वर्ग की महिलाओं और लड़कियों को चाहिए।


 हाँ हमारे देश की संसद में 2017 में निनॉन्ग इरिंग ने जरूर पीरियड लीव के लिए बात रखी थी।

भारत में माहवारी और महिलाओं की सेहत से जुड़े विषयों पर अब भी खुल कर बात नहीं होती। लेकिन अब धीरे- धीरे जागरुकता बढ़ रही है,

 कई स्तरों पर हो रही सामाजिक पहल के अलावा वर्तमान में एक सच्ची कहानी पर आधारित  बनी एक फिल्म पैडमैन में भी इस बारे में खुलकर बात करने पर जोर दिया गया। 

लखनऊ के मनकामेश्वरमठ की महंत दिव्यागिरी ने पिछले दिनों मंदिर परिसर में पीरियडस को लेकर एक गोष्ठी कराई, जिसका विषय था 'माहवारी, शर्म नहीं सेहत की बात'.

यूनिसेफ का एक अध्ययन बताता है कि 28 प्रतिशत लड़कियां पीरियड्स के दिनों में स्कूल नहीं जातीं, इसीलिए केरल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों ने सरकारी स्कूलों में फ्री सैनिटरी नेपकिन देने की शुरुआत की है, ताकि पीरियडस के कारण लड़कियों की पढ़ाई का नुकसान न हो। कई संस्थाएं भी महिलाओं को पैड मुहैया कराने के प्रयासों में जुटी हैं। 

अभी पेड मशीन लगाने की मुहिम भी शुरु की थी, 5 रुपये का सिक्का डालते ही मशीन एक पेड उगलती है ,लेकिन इन मशीनों  को रखरखाव यानि समय -समय पर उसमे पेड उपलब्ध होंगे तभी जरूरतमंद की पूर्ति होगी । मैं तो कहती हूँ की 

ये 5 रुपये भी क्यों निःशुल्क मिलना चाहिए।

र्ब्रिजरानी मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट नाम की संस्था देश भर में एक हजार पैड बैंक बनाना चाहती है. इन पैड बैंकों में उन महिलाओं को पैड मुहैया कराए जाएंगे जो इन्हें नहीं खरीद पातीं।

वाकई सेनेटरी नेपकिन तो फ्री होना ही चाहिए।

आज भी ग्रामीण इलाकों में रहने वाली ज्यादातर महिलाएं इन दिनों मे कोई सैनिटरी नेपकिन इस्तेमाल नहीं करतीं, कई बार वे आर्थिक कारणों से इन पैड्स को नहीं खरीद पाती हैं, तो कइयों को यह उपलब्ध नहीं होते हैं।

वो कपड़ा काम में लेती है जिसे धुप में खुले में सुखाया तक नही जाता शर्म के कारण। 

पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई बहुत जरूरी है, वरना कई तरह की बीमारियां  हो सकती हैं. इनमें बुखार, अनियमित पीरियड्स, खून ज्यादा आने के साथ गर्भधारण में दिक्कतें शामिल हैं।

अंत में एक बात और 

स्कॉटलैंड की संसद ने सर्वसम्मति से महिलाओं से जुड़े स्वच्छता उत्पादों को बांटने वाला कानून पास किया है। 

.कानून के पास हो जाने के बाद स्कॉटलैंड मासिक धर्म से जुड़े उत्पादों को मुफ्त में देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है

क्या ऐसा हमारे देश में हम महिलाओं के लिये हो सकता हैं।

बात उन दिनों की........

                      संगीता माहेश्वरी दरक©

मन की बातें, things of mind

   मन की बातें ....

मन की बातें मन ही जाने,
या जाने वो, जो इस मन को पहचाने ।

कभी खुश तो कभी उदास,
कभी टूटती उम्मीद सा ,तो बनती कभी आस।
होता मन जो साथ ,तो होते मन से काम।
जो होता न साथ तो अनमने से होते   काम ।

खूब समझाते इसे ,समझता भी है।
पल भर में रूठता भी है।
कभी मान जाता, तो कभी मनाता भी है।

कितने ही रंगों से ,आने वाले पलो को ये सजाता भी है।
कितने  ही उम्मीदों और ख्वाबो को बुनता,
कभी अपनी तो  कभी दूजे मन की सुनता।

सोचती हूँ ,रहता कहाँ ये मन,
जो इतने खेल दिखाता
दिल मे जो रहता, तो ये इतने हिसाब न लगाता। 
और रहता जो  दिमाग में, तो इतना  दिल न  दुखाता।

कभी कुछ कहने का , तो कभी
कुछ करने का  होता मन ।
जाने क्या- क्या  करता ये मन।
मन की बातें मन ही जाने,
ये  कहाँ किसी की माने।
       संगीता दरक माहेश्वरी©

      

मिलने की......

 मिलने की जो अभित्सा (लालसा) है

 वो बनाये रख, 

पहले दूरियों का स्वाद तो चख !

           संगीता दरक©

इंतजार

 मुद्दते बीत गई इस इंतजार में,

 आकर देखे तू मेरा हाल, 

पर ये तो  है बस एक ख्याल ।

          संगीता दरक ©

कितना कुछ , How much, kitna kuch

 अपने भीतर कितना कुछ,

बिखेर आई हूँ ।

तब कहिं जाकर ,

सारा समेट पाई हूँ !!
             संगीता दरक माहेश्वरी©

राई का पहाड़

कुछ लोग राई का पहाड़

 बना लेते है ,

और तो और, 

उस पर चढ़ा भी देते है।

खुद तो अपनी जिंदगी

 मजे से जीते हैं ,

और दूसरों की जिंदगी में 

जहर घोल देते है !!

       संगीता दरक माहेश्वरी

जय महावीर jay mahaveer

 महावीर जन्म कल्याणक पर्व पर आप

सभी को बहुत-बहुत बधाई...शुभकामनाये 


हम अपना व अपनो का जन्मोत्सव तो बड़े हर्ष से मनाते हैं, लेकिन बात जब उस परमात्मा की हो।

इनका जन्म अंतिम जन्म हुआ। और उसके बाद अहिंसा अपरिग्रह  और आत्मध्यान आदि के माध्यम से मोक्ष चले गए।

मन मे अपार हर्ष होता है महावीर भगवान के पद चिन्ह पर निरंतर चलने वाले,

मुनि 108 श्री प्रणम्य सागर जी और 108 चन्द्रसागर जी महाराज श्री का आगमन माह दिसम्बर सन 2015 मैं मनासा हुआ और इस पुनीत पावन अवसर का लाभ 

हमें भी मिला...  

महाराज श्री ने अपने प्रवचनों के साथ 

सभी को अर्हम योग भी सिखाया।

मुझे महाराज श्री के समक्ष कुछ बोलने का अवसर मिला। आज आप सबसे वही साझा कर रही हूँ 

     "सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी" 

    सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी,

   दौड़ते दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।

   संतों की वाणी की छांव में,

  पल भर बैठता है आदमी।

   दर-दर भटकता है, राम को ढूंढता है

 लेकिन जब ज्ञान गुरुवर का मिलता है       

 अपने अंतरात्मा में,

राम को पहचानता है आदमी । 

गुरु की वाणी से ही सँवरता है , 

शिक्षा और संस्कारों के महत्व को 

जानता है आदमी ।

  गुरु के ज्ञान से उन्हें,

  अमल में लाता है आदमी ।

 ओम अर्हम के नाद से अपने

 स्वास्थ्य को सुधारता है आदमी ।

 सुबह से शाम तक दौड़ता है आदमी, 

 और अपनी आपाधापी से जब

 थकता है,पल भर सुस्ताता है, 

गुरुवर के चरणों में आदमी ।

       संगीता दरक माहेश्वरी

क्या प्यार वही...is love the same


   क्या प्यार वही.......

क्या प्यार  वही, जिसे चाहा  पा लिया,
कभी प्यार में समर्पित होकर भी देख ।
क्या प्यार वही, जो पहुँचे अपनी मंजिल
तोड़कर सारे दिलो को ,रखे सिर्फ
अपने दिल का ख्याल।
प्रेम वो जो नजरो से देखा, और हो गया
भुलाकर सबको बस उसी में खो गया।
चंद पलो  के लिये सालो को भूल गया।
प्रेम की पराकाष्ठा क्या प्रेम को पाने में ।
माना तूने देख लिए रूमानी होकर कुछ सपने
लेकिन तेरे अपनो ने भी  बुने है कुछ सपने
कर तू प्रणय अपने प्रेम के लिये पर
अपनो का भी रखना तू मान
                          संगीता दरक©




                 






मैं नारी, महिला दिवस, i woman,womans डे


        महिला दिवस की आप सबको बधाई
मैं स्त्री
      नारी, बेटी ,बहन, पत्नी ,बहु, माँ न जाने कितने बंधनो में मैं बंधी, हरेक रिश्ते को सँवारती
और पूरी तरह उसमें रम जाती ।
कभी भाई तो कभी पिता की ओर
अपना फर्ज निभाती ।
पत्नी बहू और माँ बन कर भी जीवन भर ससुराल और मायके के बीच सामंजस्य बनाए रखती ,और कभी जब इन दो किनारों के बीच सामंजस्य बिगड़ता तो खुद पुल बन जाती ।
अपने स्वाभिमान अपने शौक को किसी कोने में रख देती ।  पूरे घर को संभालती यह रिश्तो के हरेक साँचे में ढल जाती मानो हर एक साँचे के लिए इसे ही गढ़ा गया हो ।
हर रोज सूरज के साथ जागती और दिन को बिखेरती और शाम होते-होते रात को समेटती।
कभी प्यार देती बच्चों को तो कभी फटकार लगाती  ।
न जाने क्या -क्या यह करती ,कभी पत्थर तोड़ते हाथ, तो कभी कलम चलाते हाथ ,कभी बेटियों के जन्म के बाद बेटे का इंतजार करती और वृद्धावस्था में उसी बेटे की ओर आस लगाती।
ना जाने कितने चेहरे एक दर्पण में सजाती।
कभी पहाड़ से जिंदगी में बन जाती खुद चट्टान।
परिवार की धुरी वह, हर पीढ़ी में अपना फर्ज निभाती नई पीढ़ी के परिवर्तन को सहजता से अपनाती ।
कोमल और कमजोर कहीं जाने वाली नारी देह तोड़ने वाली प्रसव वेदना से गुजरती और एक जीवन को जन्म देती।
धीरे-धीरे अपनी सहनशीलता को अपना गहना बनाकर पता नहीं क्या-क्या ओढ़ लेती ।
परिवर्तन की प्रक्रिया में नई परिस्थितियों का जन्म हुआ, नारी अपने हुनर और काबिलियत से नित् नये मुकाम हासिल करने लगी ।
आज महिलाओं के अधिकारों का दायरा भी बढ़ गया । बस अब हमें अपने हुनर को पहचानना है और घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर बाहर की दुनिया में अपने आप को साबित करना  है।
पहले जिन विषयों पर खुलकर बात नहीं होती थी, आज उन विषयों पर खुले मंच पर बात हो रही है, आज महिलाए स्वंय ही नहीं पुरुष भी महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गए हैं। हम महिलाएं संस्कार और संस्कृति की जननी है, हमें अपने बच्चों को संस्कार और संस्कृति दोनों का ज्ञान देना है ।
बीते वर्षों में अपने हमने खूब पंख पसारे हैं तो हमारी शीलता पर प्रहार भी होते आए हैं ,हमें अपनी आत्मरक्षा के गुर भी सीखने होंगे।
हमें अपनी बेटियों को सशक्त और मजबूत बनाना है।
हमें गलत व्यवहार का विरोध करना है
हमें मुश्किलों से लड़ना हैं हमें आत्मनिर्भर बनना है।
आज का दिवस हमारा है तो आज हम प्रण ले की हम अपने आप को स्वस्थ रखेंगे और एक स्वस्थ परिवार और स्वस्थ समाज का निर्माण करेंगे।
                       संगीता दरक©

काँटो की तमन्ना


 काँटो की तमन्ना

 काँटो को भी चमन चाहिए

 रहने को फूलों के पास 

थोड़ी सी जगह चाहिए

 खुशबू ना मिले ना सही 

थोड़ी सी चुभन तो चाहिए 

बहारें हमें भी छुए 

पतझड़ बनकर ही सही

 जिंदगी हमें भी मिले 

चाहे फूलों के तले ही सही

         संगीता दरक©


जाने क्यों तुम वो हो ही नहीं

 तुम वो हो ही नही जैसा मेने चाहा

साथ तुम्हारा ऐसा मिला ही नही जैसा मेने चाहा
न तुमने  समझा मुझे कभी ऐसे जैसा मैंने चाहा
हर बार उम्मीद लगाई मैने तुमसे
पर मेरी उम्मीद में तुम थे ही नही
चल तो रही है जिंदगी पर
वैसे नही जैसे मेने चाहा
निभाया है ,आगे भी निभा लुंगी पर
वैसे नही जैसे मैंने चाहा
जाने क्यों तूम वो हो ही नहीं
                 संगीता दरक©
          

सपनों को तो साथ चाहिए

            सपनों को तो साथ चाहिए

            सपनों को तो साथ चाहिए 

           बस एक अंधेरी रात चाहिए 

           आएंगे और समा जाएंगे 

     पलकों तले और कभी बह जाएंगे अश्को में  

       मैं  कह उठती हूँ

              क्यों आते हैं मुझे सपने 

               जो नहीं है मेरे अपने

            कभी लगता है इन से डर 

               भागती हूँ उनसे दूर 

     मगर फिर सोचती हूँ यही तो मेरा सहारा है

      क्यों कि हकीकत तो मुझसे दूर भागती है

                 संगीता दरक माहेश्वरी©


बात का बतंगड़, talk about


 बात का बतंगड़ !

क्या सच में बनता है बात का बतंगड़
और राई का पहाड़
क्या सच में बात बिगड़ती सँवरती है
बात- बात होती है क्या हर बात
 में जज्बात होते हैं
या होता है शब्दो का गुच्छा
जो कभी उलझा देता है तो कभी सुलझा देता है
क्या सच में बाते कड़वी और मीठी होती है
होता है इनमें स्वाद,
कहते है हम तोल कर बोल, तो
क्या सच मे इन बातों का होता है कुछ मोल
क्या सच में बात करने से जी हल्का हो जाता है
मन मे रोष हो या हर्ष बात करने से होता है व्यक्त
कहते है कि
"बात निकली है तो दूर तलक जायेगी
सच मे बात निकली है तो दूर तलक जायेगी
पर किसी को ज़ख्म तो किसी को मरहम दे जायेगी
कही अनकही बाते मतलब बेमतलब की बाते
तेरी ,मेरी, इसकी,उसकी, बेहिसाब बाते
कभी चुप्पी साधे ,तो करती कभी  शोर ये बाते
ये बाते चारो और बिखरी हुई
जिंदगी चलती इनके इर्दगिर्द
सच मे ये बाते........
               

 संगीता दरक माहेश्वरी
  सर्वाधिकार सुरक्षित 

ख्वाहिशो की पतंग kite of desire

 ख्वाहिशो की पतंग को, कोशिश के मांजे से उमंगो की ढील देते रहना।

ऊंची उड़ान भरते हुए डगमगाने लगो तो, बढ़ते कदम थोडे पीछे ले लेना।
ओर फिर पूरी ऊर्जा से ऊँची उड़ान भर लेना,
हवा भी विपरीत होगी, बस थोड़ा धैर्य से काम लेना।
और देखना, फिर कोशिशें तुम्हारी गगन को चूम लेगी।
              संगीता दरक©

मंजिले वही थी #shyari status#

 मंजिले वही थी हमने  राहें बदल ली,

कारवां वही था हमने हमराज 
बदल लिया ,
फिजा भी वही मौसम भी वही था,
हमने अपना मिजाज बदल लिया ।
            संगीता दरक माहेश्वरी©

आज बड़े दिनों के बाद




 आज बड़े दिनों के बाद
आज बड़े दिनों के बाद
समय को चुराकर
भावो को समझाकर
शब्दों को मनाकर 
आज बड़े दिनों के बाद
कविता लिखने का मन बनाया
कलम ओर कागज को साथ बैठाया
मन में उमड़ने लगे है  कई भाव
लिखूं जिंदगी की धूप -छाँव
या फलसफ़ा ऐ इश्क
नील गगन पर  लिखू या  धरा के सौंदर्य पर
लिखू उगते सूरज या शीतलता बिखेरते चाँद पर या टिमटिमाते तारो पर
लिखू इस बयार पर या मौसम की ठिठुरन पर
या देह बिखेरती इस धूप पर
या लिख दु अपने मन की बात
या बिखेर दु ढेर सारे जज्बात
या लिखू जो सबके मन को भाये वो बात
आज बड़े दिनों के बाद
                      

संगीता दरक माहेश्वरी 
सर्वाधिकार सुरक्षित

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...