माँ
आज मातृ दिवस है ,वैसे तो हर दिन माँ का होता है । आज माँ की बात की जा रही हैं।
लेकिन,आज मेरा विषय कुछ अलग है ,
माँ शब्द की सार्थकता क्या माँ बनने में ही है ,क्या शिशु प्रसव करने वाली ही माँ होती है , उनके हिस्से में भी तो मातृत्व है जो इस सुख से वंचित है ,और इसे वो भगवान की मर्जी मानकर स्वीकारती है
आप सोचिये वो कितनी हिम्मत वाली है जो माँ नही बनती फिर भी परिवार में माँ की भूमिका बखुबी निभाती है ।
और उम्रभर अपने ममत्व को उड़ेलती रहती है ।
माँ बनने के लिये संतान को जन्म
देना आवश्यक नही ,
माँ बनकर उसका पालन करना
भी माँ बनना ही है।
मेरी पोस्ट से कोई आहत न हो मेँ किसी का मन नही दुखाना चाहती हूँ।
भगवान कृष्ण की माँ यशोदा और देवकी दोनों थी यहाँ एक ने पोषण किया तो दूसरी ने जन्म दिया ।
स्त्री सृजन का कार्य करती है ,वो संसार को सवांरती है और कभी कभी ईश्वर किसी किसी को इस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य सौपता है।
माँ तो अपनी संतान में अपने भविष्य के सपनों की अपेक्षा रखकर अपना जीवन व्यतीत करती, लेकिन जो स्त्री बिना भविष्य की आस लगाए अपने सारे दायित्वों का निर्वहन करती है वो तो सच में बहुत बड़ी होती है।
संगीता दरक माहेश्वरी©
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
माँ (यशोदा सी),Maa, Mother
आ जाओ कान्हा , God please come
जब जब धरती पर पाप अनाचार बढ़ जाता है तब ईश्वर अवतार लेते है आज मन कुछ ऐसा ही कह रहा है पढ़िये मेरी प्रार्थना
आ जाओ कान्हा एक बार फिर इस धरा पर
आ जाओ कान्हा........
आ जाओ एक बार फिर इस धरा पर
बनकर तुम नटखट नंदलाला
बस्तो के बोझ से दबे इन बच्चो को
अपने बचपन से मिलवा दो
आ जाओ कान्हा अपनी अठखेलिया
इनको सिखलादो
हाथ में जिनके मोबाइल है,बाँसुरी उनको तुम थमा दो
गोकुल के प्यारे ,उनको भी अपने जैसा बना दो
आ जाओ कान्हा एक बार फिर
इस धरा पर बनकर तुम ग्वाल
आकर देख लो इस धरा पर अपनी गैया के हाल
बेसुध मारी-मारी फिरती है
आज भी तेरी बाँसुरी की तान को तरसती है
आ जाओ कान्हा एक बार फिर
इस धरा पर,
बनकर सच्चे सखा
रिश्तों में आकर बैठा कंस यहाँ पर
आकर मधुरता बिखेर जाओ तुम
सच्चे सखा सुदामा के तुम
कुछ हमे भी सीखा जाओ तुम
आ जाओ कान्हा एक बार फिर
इस धरा पर,
प्रियतम तुम बने गोपियों के
निश्छल प्रेम के हो प्रतीक
आज देखो यहाँ प्रेम वासना बन चूका है
आ जाओ कान्हा एक बार
फिर इस धरा पर
देवकी और यशोदा की गोद तुमने पाई थी
क्या खूब तुमने बेटे का फर्ज निभाया था
इस फर्ज से आज बेटे अंजान है
माँ आज भी रोती है,पिता बेहाल है
आ जाओ कान्हा,एक बार फिर इस धरा पर,
बन जाओ तुम सारथी
मेरे जीवन रथ के
पार कर सकू धर्म से इस पथ को
दे दो गीता का ज्ञान बना दो हमको अच्छा इंसान।
आ जाओ कान्हा एक बार फिर इस धरा पर लेकर अवतार🙏
संगीता माहेश्वरी दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
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