मेरा ख़्वाब "
आज फिर कोई ख़्वाब
हाथ से मेरे यूँ फिसल गया।
मानो रेत से बनाया हो मैने महल ।
लेकिन, ये वही ख़्वाब तो है ।
जिसे मैंने बचपन से संजोया ।
अपनी पलको तले बसाया।
फिर क्यों हुआ वो पलको से मेरी दूर ।
चिलमन में जा बैठा ,किसी और के
फिर मैं रहीअकेली।
संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
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मेरा ख़्वाब, my dream ,khawab
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