ये दिन...लॉक डाउन के
मार्च की 20 तारीख तक हमने ऐसा नही सोचा था कि हम ऐसे ठहर जायेंगे ।बच्चो की परीक्षा चल रही थीं सबने अपने अपने स्तर पर भविष्य के लिये कुछ सोच रखा था और अचानक से ये लॉक डाउन और सब वही रुक गए कुछ समझ नही पा रहे थे की ये क्या हो रहा है आज 8 अप्रैल के बाद भी आगे कुछ समझ नही आ रहा है पर मन कहता है कि हम मनुष्य बहुत अहंकारी हो गए हमे सिर्फ अपना स्वार्थ नजर आता है हमें प्रकृति की परवाह नही हम जंगल काटे जा रहे और उस पर कंट्रक्शन का काम हरेक जगह हमारा हस्तक्षेप बढ़ गया हम समझने लगे की हर जगह हमारा ही राज है हम भूल गए थे की ये कुदरत सबसे बड़ी होती है तभी तो
सब कुछ थम गया है नही थमा है तो बस प्रकृति का काम सूरज का आना- जाना चाँद का सितारों को लेकर आना और पेड़ो का हमे प्राण वायु देना वही रात और अँधेरे को चीरती वही सुबह पैरो तले जमीं और सर पे हमारे वही आसमाँ
हमने प्रकृति को अपनी सत्ता समझ रखा है लेकिन प्रकृति हमे अपनी संतान समझती है
वो सड़के जो रफ्तार से हाफ जाती थी आज सुस्ता रही है
आकाश में पक्षियों को उड़ने के लिये विचरण के लिये देखना पड़ता था वो आसमाँ आज खाली है
हम प्रकृति से खिलवाड़ करते आ रहे है प्रकृति का संतुलन हम बिगाड़ रहे है और हम फिर भी प्रकृति से उम्मीद रखे की वो हमें माफ़ करती रहै हम कब सबक लेंगे।केदारनाथ का प्रलय हम भूल गए ।
कब तक हम अपना स्वार्थ ही साधते रहेंगे।आज इतना सब हम सोच रहे है क्योंकि हम इन 21 दिनों में अपना आत्मविश्लेषण कर रहे है देश के बारे में बात कर रहे हैं
हमने तो रामायण देखि हमारी नयी पीढ़ी को तो ये भी पता नही है की हनुमान जी सँजीवनी बूटी लेने गए थे । लेकिन अभी के बच्चो को अब पता लग रहा है
रामायण में मैने पढ़ा है कि जब धरती पर अनाचार पाप बढ़ता है तो धरती माता गौ का रूप बनाकर देवताओं के पास जाती हैं और तब देवताओं द्वारा राम के अवतार लेने की बात कही जाती हैं ।
तात्पर्य है कि पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ गया है हम अपने स्वार्थ के लिये क्या कुछ नही कर रहे ।कुदरत को हर रोज हम नजरअंदाज करते है
आज हवाऐ साफ हो गई नदियों के पानी में अब फैक्ट्रियों का गन्दा पानी नही पहुँच रहा है नदिया अब चैन की साँस ले रही हैं । आज हमको अपनी जान की परवाह है आज सब बराबर है कोई अमीर नही कोई गरीब नही
आज डॉक्टर और पुलिस के काम को सराहा जा रहा है
चैत्र महीना जिसमे राम जन्म हुआ ऐसे में पृथ्वी पर पाप का नाश हुआ क्यों की अभी हर कोई ईश्वर आराधना में लगा हुआ है। आज भले ही हम कोरोना की डर से घरों में है लेकिन अपनों के साथ है
यदि हम देश के लिये कुछ करना चाहते है तो हमे घर में ही रहना चाहिए ।
फिर मिलते है आप भी रहिये अपनों के साथ सुरक्षित
जय हिंद
संगीता माहेश्वरी दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
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