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#भूख से पलायन#run out of hunger

   भूख का एहसास कोई भूखा व्यक्ति ही करः सकता है, जिसे पकवान मिलते हो और भूख से पहले ही भोजन मिलता हो वो भूख को नही समझ सकता, और भूख के सामर्थ्य
को भी नही, ये भूख इंसान से क्या क्या करवाती है ।पढ़िये मेरी पसंदीदा रचना
ये मैंने कोरोना महामारी के दौरान पलायन करते मजदूरों पर लिखी

     "भूख" से पलायन
भूख होती क्या? हमें नही पता
हमने देखा और ,पढ़ा है बस ।
क्यों की हमारी भूख की
दस्तक से पहले ही,भोजन
हमारे सामने होता हैं
हमारी भूख का सामर्थ्य,
हमे पता ही नही,
की ये क्या- क्या करवाती है
ये भूख गाँव को
शहर ले आई थी
मिटा न पाया शहर तो आज
फिर भूख गाँव लौट आई
भूख से भागना और
जीने की लालसा,
देखती है आँखे, हजार बातें
किसे भूख नजर आईऔर
किसी ने अपनी भूख मिटाई
फिर पिसता है आदमी ,
अपनी ही किस्मत के पाटो में
मजदूर मजबूर है
अपनी भूख के हाथों।।।
            संगीता दरक माहेश्वरी
              सर्वाधिकार सुरक्षित

खामोश दीवारें ,silent walls, khamosh divare

खामोश दीवारें......
खामोश दीवारें कब बोलेंगी
चार दीवारी का भेद कब खोलेंगी
क्या दीवारों के सिर्फ कान होते हैं
होती नही आँखें
क्यों ये मूक होकर देखती रहती हैं
सिसकियों और चीखों को सुनती हैं बस
अपने पहलू में क्या कुछ होने देती हैं
छत को बचाने के लिए नही
बोलती ये दीवारें
रिसता पानी दीवारों से कुछ बयां तो करता है
पर खुलकर कुछ नही बताती ये दीवारें खामोश खड़ी ये दीवारें
और जब साहस करके कुछ बोलती हैं तो टूट कर बिखर जाती हैं ये दीवारें
         संगीता माहेश्वरी
        सर्वाधिकार सुरक्षित

2 जून की रोटी #रोटी #2जून #जुगाड़ #2 वक्त #

 दो जून की रोटी गोल-गोल रोटी जिसने पूरी दुनिया को अपने पीछे गोल-गोल  घुमा रखा है। यह रोटी कब बनी यह कहना थोड़ा मुश्किल है  पर हाँ, जब से भी ब...