खूब की कोशिश हमने निभाने की
चालाकिया समझ न आई हमे जमाने कीरिश्तों के नाम पर मन बहुत हर्षाया
मन को बहुत बार ये कहकर समझाया था
पर मन अब ये समझने लगा है
खोखले रिश्तो में अब बचा क्या है
संगीता दरक©
जीवन के सारे रंग , हौसला और हिम्मत अपनी पुरानी संस्कृति मेरी कविता में देखिये लेख, और शायरी भी पढ़िये ,मेरे शब्द आपके दिल को छू जाये ,और मेरी कलम हमेशा ईमानदारी से चलती रहे आप सब पढ़ते रहिये , और अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत जरूर कराये आपकी प्रतिक्रियाओ से मुझे प्रोत्साहन और मेरी कलम को ऊर्जा मिलेगी 🙏🙏
खूब की कोशिश हमने निभाने की
चालाकिया समझ न आई हमे जमाने की
कुछ रिश्ते हमे बने बनाये मिलते है
और
कुछ बन जाते हैं कुछ निभाने पड़ते है
और
कुछ निभ जाते हैं।
संगीता दरक©
Hello दोस्तों,
जीवन में क्या सब आसान होता है,कितना कुछ सहेजना और छोड़ना पड़ता है ,यहाँ कुछ भी आसान नही है ,
पढ़िये मेरी रचना
आसान नही होता
आसान नहीं होता
आसान नहीं होता
बिखरते पलों को समेटना
और,
नये लम्हों को सजाना,
अनकही बातों को यूँ संभालना,
कहाँ आसान होता है।
ज़िंदगी के शोर में ,
ख्वाहिशों की चुप्पी को सुनना,
कहाँ आसान होता है।
हर बार अपने आप से मिलना,
मिलकर भी अनदेखा करना ,
कहाँ आसान होता है।
रिश्तों को निभाना और
अपनी खुशी को बयां करना,
कहाँ आसान होता है।
हर बार जीना और
जीने के लिये मरना ,
कहाँ आसान होता है...।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
मतलब के रिश्तों में,
बेमतलब उलझने लगे।
परायों की भीड़ में,
हम अपनों को ढूंढने लगे।
चंद रोज की है जिंदगी,
और इसे हम अपना समझने लगे।
ख़्वाहिशें अपनी भूलकर,
सींचे जिनके सपने,
बदल गए वो ,
ना रहे अब अपने।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
मेरा स्वाभिमान
लाई थी साथ ,मैं
अपने स्वाभिमान को।
पर साथ अपने रख ना पाई ।
स्वाभिमान के साथ रिश्तों को
निभाना कठिन लगता है ।
स्वाभिमान जब साथ होता है,
तो रिश्ते सिमटने लगते है।
और जब अपने स्वाभिमान
को पुराने कपड़ो की
तह के नीचे रख देती हूँ तो ,
सब सहज हो जाता है
संगीता दरक©
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