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उजाले की और,path of light,new morning

जीवन में हमे उम्मीद का दामन नही छोड़ना चाहिए परिस्तिथियां कैसी भी हो
हर रात की सुबह जरूर होती है
'उजाले की और" पढ़िए मेरी रचना

उजाले की और

सपनो को साथ लिए
 बोझिल आँखों से
मेने भी देखी है ,चिलचिलाती धूप

लेकिन मैं थकी नही,
पल भर भी रुकी नही
क्यों कि मालूम था मुझे होगा नया उजाला

जिसकी रोशनी में बैठकर करूँगी सपने सारे साकार
आज भी करती हूँ, इंतज़ार

  एक नये आत्मविश्वास का
  खोये हुए अहसास का
पल भर भी नही लगा ,
और टूटा था मेरा सपना
आज भी अरमान है,
उसे पूरा करने का।
इंतजार है मुझे,
एक नई सुबह का !!!!
                   संगीता माहेश्वरी दरक
                       सर्वाधिकार सुरक्षित

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