जीवन की भागदौड़ से जब मन थक जाता है तब मन कुछ यूँ कहता है
"कुछ पल सुस्ता लूँ"
जीवन की आपा धापी में,
कुछ पल सुस्ता लूँ ।
करके साधना,
नित्य की ये
दौड़ धुप में अपने आप को
खो आया ।
अपने आपको अपनी
अंतर आत्मा से मिलवा दूँ।
करके शांत चित्त को ,
आज समझा दूँ।
नश्वर है ये जीवन,इसे बतला दूँ।
जीवन की हो साँझ,
उससे पहले थोड़ा पुण्य कमा लूँ
डूबती है ज्यों ये साँझ
जीवन भी खो जायेगा
एक दिन फिर होगी भोर
फैलेगा उजियारा चहूँ और
संगीता दरक
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