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जाने किस पशोपेश में

हम रिश्तो को सींचते है उसकी देखरेख करते है कि वो बड़ा होकर हमारा सहारा बनेगा ,हमारे सपनो को वो पूरा करेगा

  जाने किस पशोपेश में
बोया मिट्टी में बीज,
फल की आस में ।
बीज बना पौधा ,
उसकी देख-रेख में ।
पौधा बना पेड़,
छायादार लेकिन ।
भूल गया मुझको,
जाने किस पशोपेश में !!!!
           संगीता दरक माहेश्वरी
               सर्वाधिकार सुरक्षित

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