Showing posts with label माँ की गोद. Show all posts
Showing posts with label माँ की गोद. Show all posts

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, Please bring my old days back, koi lota d mere bite hue din


कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

देखा मैंने आज बचपन को अपने आसपास ,
मन में जगी फिर से बच्चा बनने की आस,
मिल जाये मुझको सुहाना बचपन आज, बन जाऊँ बच्चा करूँ सब पर राज ।

ना कोई चिंता ना झमेले,
बस खुशियों के रेलम पेले,
पकड़ा -पकड़ी छुपम छुपाई ,
राजा-मंत्री चोर सिपाही खेल निराले,

सामान्य ज्ञान आसानी से बढाऊँ
लैपटॉप पर नए प्रोजेक्ट पाऊँ
फ्रोजन का बैग डाल कांधे पर इठलाऊँ  पिंक ड्रेस पहन कर खुद बॉर्बी डॉल बन जाऊँ

इंद्रधनुषी रंगीन अपनी सारी दुनिया सजाऊँ,
खेलकूद पढ़ाई में हमेशा अव्वल आऊँ,
माता-पिता का सहयोग
और पूरा अटेंशन मैं पाऊँ,
  सुबह से शाम तक मस्ती वाली नियमावली बनाऊँ ।

सारे जहाँ को भूलकर माँ की गोद में आऊँ,
कभी टीचर तो कभी पुलिस बन जाऊँ विशद परिष्कृत मन में सुंदर विचार गढ़ जाऊँ,
  खुशियाँ इतनी की झोली में समेट ना पाऊँ।

  ना ख़्वाहिशों का बोझ,ना भविष्य की चिंता
ना डाइट की फिक्र, बस खुशियों का जिक्र,
वो खुली छत पर सोना, आसमान को निहारना,
टूटते तारे से मन ही मन में कुछ मांगना।

जाने  कितने अरमान भरे,
यह प्यारे -प्यारे दिन,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।
              संगीता दरक माहेश्वरी
                 सर्वाधिकार् सुरक्षित

   

#बेटी हूँ, बेटी ही समझना,#to be a daughter

एक पिता को बेटे के जन्म का इंतजार रहता है,लेकिन बेटी का जन्म होता है
तब उस बेटी के भाव अपने पिता के लिये क्या होते है , 

पढ़िये मेरे शब्दों में

    "बेटी हूँ, बेटी ही समझना"
जानती हूँ, आपको इंतजार था बेटे का।
लेकिन माँ की गोद में मुझको पाया।
उतरा चेहरा देखकर आपका,
मन में मैंने भी ठान लिया था।
बेटे से बढ़कर हूँ, दिखाऊँगी।
बेटी को बेटी की तरह ही प्यार मिले,
बेटा कहकर उसका मान मत खोना।
परवरिश बेटी के अस्तित्व
की ही करना,
यूँ बेटा कहकर बेटी को
सम्मान ना देना।
मेरे मन की कोमलता को,
तुम कमजोर ना समझना।
बेशक पिता की नजर से
मुझे परखना
और बेटी हूँ तुम्हारी ,
कहने में मत झिझकना।
कोमल हूँ, कमजोर नहीं,
सृष्टि चलाने का रखती हूँ दम।
फर्ज सारे मैं भी निभाऊँगी
किसी भी क्षेत्र में बेटों से नहीं मैं कम।
बेटी हूँ मैं बेटी ही समझना ।
                       संगीता दरक
                    सर्वाधिकार सुरक्षित

हर एक दिन माँ के नाम हो,every day mother's name,Maa,

    
               माँ
"माँ " इस शब्द में पूरी सृष्टि समाई हुई है
क्या एक ही दिन माँ को याद करने का होता है  या बिना माँ को  याद किये कोई दिन गुजरे ही नही  ऐसा होता है
जब हम छोटे रहते तो माँ का चेहरा हमारे लिए खास होता है जब बचपन में हम चलना सीखते तो माँ का हाथ उनकी बाहों का हमे जो सहारा मिलता वो किसी जन्न्त से कम नही होता
जैसे जैसे हम बड़े होते हम माँ से दूर होते जाते हम भूल जाते की जिस माँ से हमने जीना  सीखा  हमे लगता है कि हम माँ से ज्यादा समझते हैं
जिस माँ की गोद में जाने के लिये
हम तड़पते है उस माँ के लिये
अब हमारे पास वो तड़प और
वक्त है ही नहीं माँ से बात करने
का उसके पास बैठने का
हमारे पास समय नही
सब अपनी जिंदगी में व्यस्त है माँ बाप को आज भी हमारी फ़िक्र है लेकिन हमें अपने आप से फुर्सत नही
मैं ये भी नही कहती की सब  ऐसे होते हैं लेकिन जो ऐसे है उनको तो समझना होगा
वो आँखे जिनमे कभी  तुम्हारे सपनो की चमक हुआ करती थीं अब धुंधला गई है उनको तुम्हारी परवाह ( नजरो )की जरूरत है
आज भी उनकी धड़कनों को रफ्तार मिल जाती है जब तुम खुश होते हो
अभी भी वक्त है वरना कांधे पर रखकर जब छोड़ने उनको (माँ-पिता )जाओगे तो बड़ा पछताओगे ।लेकिन तब बहुत देर हो चुकी होगी इस दुनिया में सब मिलते एक माँ और पिता का रिश्ता है जो दुबारा नही मिलता
माँ जो कई रिश्तों से गुजरते हुए "माँ" के मुकाम पर ठहर जाती है एक स्त्री जब माँ बनती है तब उसे पूरी कायनात मिल जाती है उसका जीवन पूर्ण हो जाता है
माँ क्या नही बनती हमारे लिये जीवन भर हमारी ढाल बनती माँ आपको नमन है
       संगीता  माहेश्वरी दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित
    

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...