चंदा मामा की बात करते है आज,
जो सबके लिये अलग अलग रूप
लिये है
बच्चो के लिये बड़ो के लिये,चाँद को
हर रूप में हम देखते है पढ़िये और आनंद लीजिये मेरी रचना में
चाँद की बात,,,,,,🌙🌒🌓🌔🌕
बचपन में जब हम जिद करते थे,
तो माँ समझाकर,
चाँद की परछाई थाली में दिखा देती थी,
और आज चाँद हमे समझाता है ,
कभी ईद का चाँद तो कभी
करवा चौथ का चाँद बनकर ।
चाँद भी सोचता होगा ,
मन ही मन मुस्काता होगा।
ये मुझे छूने की कोशिश में लगे है,
लेकिन मेरी शीतलता को
महसूस न कर पाए।
करते है मेरा दीदार ,पर मुझे ये समझ न पाए ।
मैं तो बिखेरता हूँ, चाँदनी
लेकिन ये तो अपने अपने हिस्से
समेटने में लगे है ।
मैं तो परिस्थतियोंवश अपना चेहरा बदलता हूँ।
घटता बढ़ता हूँ, लेकिन इंसानी
फिदरत से हैरान हूँ मैं
हर चेहरे पर कई चेहरे चढ़े है।
संगीता दरक माहेश्वरी
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