जय जवान जय किसान
जय जवान जय किसान
ये है तुम्हारी पहचान।
धरती को चीर के सोना उगाते हो,
पसीने को पानी के जैसे बहाते हो।
फिर आज क्यों हाथों में तुम्हारे "हल" नही।
हवा और पानी का रुख तुम बेहतर समझते हो,
फसल और खरपतवार को अलग करते हो।
अपनी उचित मांगो का तुम भले ही निराकरण करो,
माँ भारती के लाल यूँ तुम राष्ट ध्वज का अपमान ना करो।
अन्नदाता हो तुम, यूँ अपने आप को बदनाम ना करो।
अपनी जमीं अपना है आसमाँ,
फिर क्यों दूसरो के बहकावे में आते हो।
अपनी धरती माँ का शीश झुकाते हो।।
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित