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बचपन बचाओ,save childhood, Bachpan bachao


  आप सभी पाठकों को नमस्कार

बाल मजदूरी में बचपन खो जाता है ,

बचपन बचाओ

इसी विषय पर मेरी आज की रचना जो मार्च 1997 में  दैनिक भास्कर समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी , प्रस्तुत है     

(बालशोषण)
     बचपन बचाओ
बचपन में मैं खेला नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
गरीबी का पालन पोषण
करता,
अपने बचपन को उसमें
दफन करता।
कंधों पर मेरे घर का बोझ था।
  शरीर से  कोमल कमजोर था,
सुबह से शाम तक हुक्म चलता था।
बचपन से ही जुल्म हुए मुझ पर कितने। बचपन में मैं खेला नहीं,
स्कूल को मैंने देखा नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
कंधे मेंरे बोझ से दबे हुए,
आंखें मेरी सपनों में डूबी हुई।
मैं भी बच्चा बनना चाहता हूँ,
मैं भी  पढ़ना चाहता हूँ।
बचपन मेरा बीत न जाए।
सपने मेरे बिखर न जाए।
कोई हमारा बचपन बचाओ ।
बड़ों से हमें बच्चा बनाओ।
               संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित

बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts

 शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि  यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान         संगीता दरक माहेश्वरी