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#99का फेर #99kafer #Illusion

 


                      99 का फेर

कहते हैं कि इस जग की माया में जो फँसा वह फँस कर ही रह गया।

एक बार अगर कोई 99 के फेर में पड़ जाए तो निकलना मुश्किल है, वह इसमें ही लगा रहता है।

बात 99 की हो या ...........999 रूपए की हो 

इस निन्यानवे  के ऑफर से कोई बच जाए तो बड़ी बात है।

हम दौड़े-दौड़े जाते हैं, हमें  सौ से निन्यानवे कम

 लगता है, हम इन दोनों के फासले को भूल जाते हैं। सच कहूँ तो इस 99 के फेर में हम एक रुपए को बहुत महत्व देते हैं।

 निन्यानवे काऑफर हो और उस पर एक 

खरीदने पर दूसरा  फ्री  भी हो तो सोने पर सुहागा।

 त्यौहार की आहट सुन ये  ऑफर जरूर आते हैं और हमारे दिलों दिमाग में दस्तक दे जाते हैं और दिल भागा-भागा जाता है इनकी ओर।

जीवन में खुशियों का अवसर ऑफर के बिना अधूरा है, ऐसा सोचकर हम ऑफर में फँस जाते हैं।  बात ऑफर की हो तो हम इनसे दूर नहीं रह सकते हैं। 

हमें हर ऑफर में अपनी सैलरी+ इन्क्रीमेंट+ मेहनत= ऑफर लगता है।

इस रफ्तार भरी जिन्दगी में जहाँ हम 99 के चक्कर में पड़े हैं, आदमी का काम मशीन और मशीन का काम आदमी कर रहा है। हमारी व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि हमें अपनों के लिए समय ही नही है।

हमारी जरूरतें इतनी बढ़ गई है कि हम बस उनको पूरा करने में लग जाते हैं। हमें हर चीज अच्छी और बस अच्छी ही चाहिए। खाने की बात हो तो हमें बेमौसम के फल और सब्जियाँ ही चाहिए, भले ही वो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए, हमें तो बस

 खाना है। बात खाने की ही नहीं है, कपड़े की बात हो या शादी समारोह की, हमें सब काम बहुत अच्छा करना है, पैसों की पूरी ताकत के साथ फिर चाहे उसके लिए हमें कुछ भी करना पड़े। हमें पता ही नही हम क्या पाने की चाह में दौड़ रहे है। 

जीवन पहले भी जीते थे आनन्द से, पहले भी 

जीवन चल रहा था, हमारी जरूरतें कम थी और कम जरूरतों के साथ जीवन खूब सुखी था। 

बड़े-बड़े मकान और उसमें सारी सुविधाएँ गाड़ी 

और न जाने क्या-क्या।

अपनों के बीच दूरियाँ बढ़ गई, मिलने-मिलाने के लिए अवसर तलाशने पड़ते हैं। 

न हमें अपने लिए समय है, न अपनों के लिए

रिश्तों में उलझने बढ़ती जा रही है, हम सुकून की तलाश में भटक रहे हैं। अपनी व्यस्तता भरी जिन्दगी में हम अपनी सेहत का ख्याल भी नहीं रख पा रहे। हम अपने और अपनों के लिए जितनी उठापटक

 करते हैं, क्या हम पैसों से सारी खुशियाँ खरीद

 सकते है।  हम क्या पाना चाहते हैं और क्या वो

 हमें मिल रहा है।

क्यों हम निन्यानवे को सौ बनाने के चक्कर

 में पड़े हैं। हमें खुशहाल जीवन जीने के लिए 

अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कम 

करना पड़ेगा।

तभी हम अपनी जिन्दगी  को सुकून से जी पाएँगे।

खुशियों के अवसर ऑफर के रूप में हमें कई बार मिलते हैं, बस हमें उनको समझने और उनका लाभ उठाने की देर है। 

 छोटी-सी जिन्दगी है  मजे से जिओ बस और खुशियों के अवसर तलाशते रहो।

       संगीता दरक

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