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मैं नारी, महिला दिवस, i woman,womans डे


        महिला दिवस की आप सबको बधाई
मैं स्त्री
      नारी, बेटी ,बहन, पत्नी ,बहु, माँ न जाने कितने बंधनो में मैं बंधी, हरेक रिश्ते को सँवारती
और पूरी तरह उसमें रम जाती ।
कभी भाई तो कभी पिता की ओर
अपना फर्ज निभाती ।
पत्नी बहू और माँ बन कर भी जीवन भर ससुराल और मायके के बीच सामंजस्य बनाए रखती ,और कभी जब इन दो किनारों के बीच सामंजस्य बिगड़ता तो खुद पुल बन जाती ।
अपने स्वाभिमान अपने शौक को किसी कोने में रख देती ।  पूरे घर को संभालती यह रिश्तो के हरेक साँचे में ढल जाती मानो हर एक साँचे के लिए इसे ही गढ़ा गया हो ।
हर रोज सूरज के साथ जागती और दिन को बिखेरती और शाम होते-होते रात को समेटती।
कभी प्यार देती बच्चों को तो कभी फटकार लगाती  ।
न जाने क्या -क्या यह करती ,कभी पत्थर तोड़ते हाथ, तो कभी कलम चलाते हाथ ,कभी बेटियों के जन्म के बाद बेटे का इंतजार करती और वृद्धावस्था में उसी बेटे की ओर आस लगाती।
ना जाने कितने चेहरे एक दर्पण में सजाती।
कभी पहाड़ से जिंदगी में बन जाती खुद चट्टान।
परिवार की धुरी वह, हर पीढ़ी में अपना फर्ज निभाती नई पीढ़ी के परिवर्तन को सहजता से अपनाती ।
कोमल और कमजोर कहीं जाने वाली नारी देह तोड़ने वाली प्रसव वेदना से गुजरती और एक जीवन को जन्म देती।
धीरे-धीरे अपनी सहनशीलता को अपना गहना बनाकर पता नहीं क्या-क्या ओढ़ लेती ।
परिवर्तन की प्रक्रिया में नई परिस्थितियों का जन्म हुआ, नारी अपने हुनर और काबिलियत से नित् नये मुकाम हासिल करने लगी ।
आज महिलाओं के अधिकारों का दायरा भी बढ़ गया । बस अब हमें अपने हुनर को पहचानना है और घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर बाहर की दुनिया में अपने आप को साबित करना  है।
पहले जिन विषयों पर खुलकर बात नहीं होती थी, आज उन विषयों पर खुले मंच पर बात हो रही है, आज महिलाए स्वंय ही नहीं पुरुष भी महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गए हैं। हम महिलाएं संस्कार और संस्कृति की जननी है, हमें अपने बच्चों को संस्कार और संस्कृति दोनों का ज्ञान देना है ।
बीते वर्षों में अपने हमने खूब पंख पसारे हैं तो हमारी शीलता पर प्रहार भी होते आए हैं ,हमें अपनी आत्मरक्षा के गुर भी सीखने होंगे।
हमें अपनी बेटियों को सशक्त और मजबूत बनाना है।
हमें गलत व्यवहार का विरोध करना है
हमें मुश्किलों से लड़ना हैं हमें आत्मनिर्भर बनना है।
आज का दिवस हमारा है तो आज हम प्रण ले की हम अपने आप को स्वस्थ रखेंगे और एक स्वस्थ परिवार और स्वस्थ समाज का निर्माण करेंगे।
                       संगीता दरक©

मेरा हिसाब,mera hisab,my account

मेरा हिसाब,,,,,,,,,
👨साल का आखिरी महीना आज सबके हिसाब करके नये साल से नयी शुरुआत करनी होगी
........और मेरा हिसाब👩
बेटी बहन ,पत्नी बहु और माँ कितने ही किरदारों में,. मैं सिमटी
हर किरदार  को बखुबी निभाती
इन सब में अपने आप को भी
भूल जाती ।
बेटी बनती तो भाई नाराज और
बहन बनती तो भाभी नाराज हरेक को मुझसे अपेक्षाएं।
पत्नी और बहू के किरदार में तालमेल कभी सास की ख़ुशी तो कभी पति की इच्छाओं का सम्मान,
बच्चो के लिये कभी ढाल बनती तो,
कभी बन जाती बिना डिग्री लिये बेमिसाल वकील ,जो हर दलील में खुद को ही गवाह और मुजरिम भी मानती।
कभी सोचती हूँ, ईश्वर ने नारी को ऐसे रचा जो हर साँचे में फिट बैठता है।
ढेरों किरदार हर रोज निभाती ना कोई पगार ना छुट्टी और ना इंनक्रीमेन्ट की झंझट।
कभी मायके तो  कभी ससुराल में,
मैं हरदम सामंजस्य के पूल बनाती
और अपने सफर को आसान
बनाने की कोशिश में लगी रहती ।
मायके में रहती तो जी जान लुटाती पर उस घर को अपना न कह पाती।
और कभी जो अपना हक मांग
लिया तो,
सबकी नजरो में गलत ठहराई जाती।
और ससुराल के घर को वो सर्वस्य सौंपकर भी अपना  नही जता सकती कहने को वो हाउस वाइफ होती है पर बात जब कभी आत्मसम्म्मान की आती, और बात अलगाव पर पहुँचती तो उसे अहसास होता की वास्तव में उसका घर है कहाँ।
जमीं का टुकड़ा ,कीमत चुकाकर खरीदो और पैसों के बल पर मकान बना लो
पर उसको घर स्त्री ही बना सकती है
जी हाँ आज भी ऐसे घर जहाँ गृहलक्ष्मी
का वास नही वहाँ सुकूँन नहीं।
इसलिये कभी हमारा भी आकलन कर लिया करो
आपके हिसाब के एक हिस्से में हमसे ही आपका पलड़ा भारी है
"माना कि पुरुष के पीछे नारी चलती है पर संसार नारी के बिना नही चलता"
                संगीता दरक©

स्वाभिमान मेरा भी👩,my self respect

    स्वाभिमान मेरा भी.....
आज एक सीरियल में इन शब्दों को सुनकर मेँ सोचती रह गई..........
"स्त्री का स्वाभिमान उसकी जिद और पुरुष की जिद उसका स्वाभिमान"

वाकई ये शब्द हरेक स्त्री के जेहन में
होते है, बस हर कोई कह नही पाता।
अपने आप को महत्व देना,
कोई कम बात नही होती।
कहने को कितना कुछ बदला है,
पर आज भी स्वाभिमान और जिद,
और जिद और स्वाभिमान के बीच
का फासला  कम नही हुआ ।
आज भी पुरुष का अहंकार ज्यों का त्यों है और स्त्री का समर्पण आज भी बरकरार है ।
स्त्री को रिश्तों को निभाने की दुहाई दी जाती है,और संस्कारों की दीवार खड़ी कर दी जाती है ।
पति पत्नी के रिश्तों में तनातनी हो या रिश्ता टूटने की कगार पर हो तो सबसे ज्यादा गलती पत्नी की ही निकाली जाती है ,अभिप्रायः यह है कि समर्पण स्त्री के हिस्से ही आया है। त्रेता युग में सीता जी ने त्याग किया और आज भी स्त्रियों से त्याग की अपेक्षा की जाती है,
और उनको खरा उतरना भी  पड़ता है अपने को सही साबित करने के लिये करना पड़ता है।
मैं यह भी नही कहती की समय परिवर्तन नही हुआ पर सोच वही है।
ना में रिश्तों को तोड़ने के पैरवी कर रही हूँ ,मैं तो बस मन को समझने और स्वाभिमान को बरकरार रखने की पक्ष में हूँ,।
आपकी जिद का सम्मान होता है ,
तो हमारे स्वाभिमान की कद्र भी होनी चाहिए। और ये अपेक्षा मायके और ससुराल दोनों पक्षों के हरेक रिश्ते से रहती है।
रिश्तों की डोर की पहली और दूसरी
दोनों छोर की और नारी ही होती है
और रिश्ता बरकरार रखने में
नारी की ही भूमिका महत्वपूर्ण होती है ।फिर हर बार उसको समझने में ही कमी क्यों है सोचियेगा जरूर✍️
                       संगीता दरक©

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...