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करः लीजिये ना, थोड़ा एडजस्ट,adjust a bit ,adjustment

☺️"थोड़ा एडजस्ट करः लीजिये "

Adjust बड़ा सहज और सुंदर सा
ये दिखने वाला शब्द कितने ही रिश्तों की नींव का पत्थर बना बैठा है।
इस एडजस्ट के कारण जाने
कितने रिश्ते साँस ले रहे है।
नाम भले ही 6 अक्षर का ,
पर काम बड़े बड़े करः जाता ।
जीवन के हरेक मोड़ पर इस शब्द को सार्थक करना पड़ता है।
और आश्चर्य की बात ये है कि एडजस्ट शब्द हमारे (नारियों) हिस्से कुछ ज्यादा ही आया है।
रिश्ते के हर रूप को सँवारने के लिये, हमें एडजस्टमेन्ट बिठाना ही पड़ता है।
बहुत कम बार ऐसा होता है कि
हमारे लिये कोई और
एडजस्ट करता है।
और हाँ अगर किसी ने हमारे लिये एडजस्ट किया है ।
तो उसका ऋण हम अच्छी तरह से लौटाती है ।
बचपन में ही माँ कह देती है,
बेटी थोड़ा तू ही समझ ले (मतलब समझ जाओ की ये समझना ही एडजस्टमेंट है) थोड़ा एडजस्ट करः ले।
फिर बात  पढाई की हो या हो ख्वाहिशो की फिर वहाँ
भी एडजस्टमेंट ।
और जब रिश्तो को जोड़ने की बारी आती है तो ये "एडजस्ट" हमारे पीछे ही खड़ा होता है।
जैसे ही इसकी जरूरत हुई बीच में आ जाता है ,और नए रिश्ते के साथ इस "एडजस्ट" के पौधे को भी सींचते रहो। कहि कोई रिश्ता टूटने की कगार पर हो तो झट से सब सलाह देने लगते है, कि किसी एक को तो एडजस्ट करना चाहिए।
और एडजस्ट करते -करते हम तो ऐसे आदी हो जाते है, कि हमारा एडजस्टमेन्ट एक तरह का "कम्पोस्ट" बन जाता है।
जब रिश्तो में कुछ तकरार हुई, और रिश्ता मुरझाने लगा तो, हमने एडजस्टमेंट की कम्पोस्ट उसमे डाल दी। हो गया फिर  से रिश्ता हरा भरा
रिश्तों की बात हो या खाने पीने की आज जरा "एडजस्ट" करः लीजिये ।
कभी सैलेरी हाथ में  कम आती हो तो सहसा मुँह से निकल ही जाता है कि अबकी बार तो "एडजस्ट" करना पड़ेगा
और हम मिडिल क्लास के लोगो के लिये तो "एडजस्टमेंट" एक एंटीबायोटिक की तरह है ,
अपने सपनो और ख्वाहिशो के पूरे ना होने पर उनके रिएक्शन से ये एंटीबायोटिक एडजस्टमेंट ही हमे बचाता है।
सफर करते वक्त आपको टिकना होतो, आप कह देते है थोड़ा एडजस्ट करः लीजिये।
आपने तो कह दिया पर अब बैठा हुआ हर व्यक्ति थोड़ी -थोड़ी जगह आपके लिये बनायेगा,
और आखिरी किनारे पर जो व्यक्ति बैठा है एडजस्ट का सब बोझ उस पर आएगा ।
आप चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिये, बैठ जायेंगे ।
ये जीवन भी ऐसा ही है कोई थोड़ा एडजस्ट करने को राजी हुआ तो दूसरे चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती हैं ,
बस हमे ये ध्यान रखना है कि एडजस्ट का भी अपना एक लिमिट होता है, करने वाला व्यक्ति कहि इसके बोझ को बर्दाश्त न करः पाए और या तो रिश्ते बिखर जायेंगे या वो खुद बिखर जायेगा ।
यदि a d j u s t को हम इस तरह अलग अलग आपस में बाँट ले तो कोई एक इसके बोझ तले नही रहेगा।
जीवन सहज और सुखद हो जायेगा।
             संगीता दरक ©
    

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