माँ तू ऐसी क्यों हैं ?
बचपन में जितनी परवाह थी, आज भी वो बरकरार क्यों हैं।
निकल गए हम उम्र की आपाधापी में कितना आगे,
तू आज भी वहीं रुकी क्यों हैं...
माँ तू ऐसी क्यों हैं ?
मैं रिश्तों में उलझ गया,
तेरी पसंद नापसंद को भूल गया,
पर याद तुझे आज भी
मेरी हर बात क्यों हैं...
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
छत तेरी हो न हो, बनती हर
मुसीबत में तुम दीवार
समेटकर सारी खुशियाँ
तू हम पर देती वार
ये छत और दीवार सी क्यों है......
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
बहू के ताने सुनकर भी देती उसको दुआएं,
बेटे की फिर ले लेती सारी बलाएं
जिसके इंतजार में तूने सही
कितनी पीड़ा
आज उस बेटे से कहती कुछ
क्यों नही है...
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
भूल जाएं खुशियों में हम तुझे
लेकिन दर्द से मेरे आज भी
तेरा नाता है,
आह निकलने से पहले जुबाँ पर माँ तेरा ही नाम आता है।
मोम सा हृदय तेरा पाषाण सी सहनशीलता क्यों है
मोम सा ह्रदय तेरा पाषाण सी सहनशीलता क्यों है.......
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
बेटे हो भले ही चार
माँ की ममता सबके हिस्से आती,
एक माँ तू है जो किसी के हिस्से में नहीं आती।
एक होकर चारों में बंट जाती क्यों है
माँ तू ऐसी क्यों हैं?
बता माँ, तू ऐसी क्यों हैं?
- संगीता दरक
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