सातु तीज रो त्योहार
वैशाख की गर्मी के बाद सावन की ठंडी फुहार बड़ी सुहानी लगती है एक तरफ आसमान प्यार बरसाता है तो धरती हरियाली ओढ़ने लगती है हरियाली को देखकर मन झूमने लगता है सावन के झूले और तीज त्यौहार साथ में बरखा की फुहार ।
हमारे यहाँ कहते हैं कि नाग पंचमी से त्योहारों का आगमन होता है और ऋषि पंचमी से समापन श्रावण मास में शिवालयों में शिव भक्ति की गूंज सुनाई देती है, हरियाली अमावस्या में मालपुये की मिठास ।
और उसके बाद छोटी तीज सिंजारा और लहरिये की बात है खास
युवतिया हो या ब्याहता सब के लिए खास तीज का यह त्यौहार मेहंदी रचे हाथ और सातू की मिठास लिमडी की पूजा और दूध भरी परात और उसमें पायल ककड़ी नींबू और दीये और लिमड़ी के दर्शन करना चांद को अर्घ्य देना और उसके बाद सत्तू पासना सब कुछ उमंगों से भरा हुआ ।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया बड़ी तीज मनाई जाती है, बड़ी तीज का उत्सव भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है।
राजस्थान बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश पंजाब और राजस्थान के कोटा के बूंदी शहर में सातु तीज का मेला भी लगता है।
बड़ी तीज के सिंजारे का अपना ही महत्व है इस दिन सुहागिन महिलाएं लहरिया की साड़ी पहनती है, और सोलह सिंगार करती है अविवाहित कन्या भी मेहंदी लगाती है ,उनके लिए जिनकी सगाई हो जाती छोटी तीज का सिंजारा भी महत्वपूर्ण होता है ,उनके ससुराल से लहरिया की साड़ी और श्रृंगार का सामान और जेवर मिठाई आदि आते हैं। बड़ी तीज के दिन जौ, चने ,चावल,मैदे का सत्तू बनाया जाता है (एक प्रकार की मिठाई जो आटे को भूनकर शक्कर घी के साथ बनाई जाती है )
,4 साल एक धान के आटे का सत्तू पासा(खाया) जाता है या ऐसे 16 साल तक चने, गेहूँ, चावल ,जौ, खाया जाता है।
आजकल तो सातु के लडुओ को तरह-तरह से सजाया जाता है ,
विवाहित महिलाओं का सत्तू का पिंडा (लड्डू) उनके पति द्वारा खोला जाता है और लड़कियों के सत्तू का पिंडा उनके भाई के द्वारा खोला जाता है ,इस तरह पिंडे के साथ सग (एक और लड्डू)होती है जिसे अपने बड़े (सास या जेठानी,ननद)को पैर लगकर दिया जाता है सच में हमारी परम्पराओ में संस्कार और स्नेह दोनों है।
संगीता दरक©
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#सातु -तीज -रो - त्यौहार
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं,These lamps burn themselves
जब हम रिश्तों को स्नेह और
अपनापन देते है और बड़ो का सम्मान करते है और सबका ख्याल रखते है तो दीये तो खुद ही जल उठते हैं
पढ़िये मेरी रचना को और अपने आसपास खुशियां बिखेर दे ,चारों तरफ उजास भर दे
ये दीये तो खुद ही जल उठते हैं
जब,अधरों पर हो मुस्कान
जीवन जीने का हो, अरमान
अपनेपन का हो मन मे भान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
मिट जाए, हर मन की त्रास
रिश्तों में हो भरी मिठास
अपने कर्मों का हो एहसास
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
ईश्वर में हर पल हो आस्था,
सच्चाई से हो हर क्षण वास्ता
अपनाएं सुकून,संतोष का रास्ता
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते हैं।
परम्पराओं का होता हो निर्वाहन
बड़ो को मिलता हो सम्मान
मिट जाए जग से अज्ञान
ये दीये तो ख़ुद ही जल उठते है।
संगीता दरक
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होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #
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