एक वक्त की बात है,once upon a time ,ek vkt ki bat h

  मन कभी-कभी अतीत में चला जाता है और पुरानी बातों को याद करता है मेरी कलम आज यही लिख रही है     

एक वक्त की बात है
जब गाँव शहर सब एक थे,
मुखोटों के पीछे छुपे,
दिल सबके नेक थे।
जब वादों की कीमत पर ,
जलती थी इंसानियत।
और ख्वाबो के सितारों पर,
चमकती थी कायनात।
समय की हवाओं में बहके,
ऐसे दूर हम आ गए।
जहाँ गाँव हुए चकाचोंध
शहर में समा गए।
लोग बदले सोच बदली और
चल पड़े तलाश में मौजमस्ती
बड़ी ईमारत और सुनहरे
ख़्वाब में।
उस कस्तूरी की तलाश में
भटका वो सारा जँहा ।
जब सब बसा सकता था
वही अपना गाँव अपना देश,
अपनी दुनिया ।
भूल गया वो गाँव,
जो एक वक्त देश था।
बदल गये सब लोग,
जैसे कल का उतरा वेश था ।।
एक वक्त की बात है।।।
            ✍️संगीता दरक
               सर्वाधिकार सुरक्षित
          

बचपन बचाओ,save childhood, Bachpan bachao


  आप सभी पाठकों को नमस्कार

बाल मजदूरी में बचपन खो जाता है ,

बचपन बचाओ

इसी विषय पर मेरी आज की रचना जो मार्च 1997 में  दैनिक भास्कर समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी , प्रस्तुत है     

(बालशोषण)
     बचपन बचाओ
बचपन में मैं खेला नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
गरीबी का पालन पोषण
करता,
अपने बचपन को उसमें
दफन करता।
कंधों पर मेरे घर का बोझ था।
  शरीर से  कोमल कमजोर था,
सुबह से शाम तक हुक्म चलता था।
बचपन से ही जुल्म हुए मुझ पर कितने। बचपन में मैं खेला नहीं,
स्कूल को मैंने देखा नहीं,
ऐसा मैं अकेला नहीं।
कंधे मेंरे बोझ से दबे हुए,
आंखें मेरी सपनों में डूबी हुई।
मैं भी बच्चा बनना चाहता हूँ,
मैं भी  पढ़ना चाहता हूँ।
बचपन मेरा बीत न जाए।
सपने मेरे बिखर न जाए।
कोई हमारा बचपन बचाओ ।
बड़ों से हमें बच्चा बनाओ।
               संगीता दरक
         सर्वाधिकार सुरक्षित

ये जीवन है y jivan h, this is life


          

  जीवन कैसे रचता है बसता है उतार चढ़ाव

 में भी ठहरता नही 

पढ़िये मेरी रचना में बीज का सफर 

जीवन के छोर तक🙏


ये जीवन है......
सृजन को लालायित बीज,
बना इक पौधा
यौवन की दहलीज पे आके,
सजा वृक्ष घना
फैली शाखाएँ चारों ओर,
रचाया संसार अपना
फलता फूलता, सुगंधित, सुरचित,
तन पर अपने नीड़ बनाता

सुख, दुख की छांव और धूप तले
जड़ें गहराईं, शाखाओं ने आकाश नापा
इक ओर किसी डाली के
बिछड़ने का शोक मनाया,
तो दूसरी ओर नयी कोपलों की
परवरिश में खिलखिलाया,

पतझड़ और बहार के मौसम को 

उसने हरदम यूँ सहज अपनाया।
                         

                   संगीता दरक
                 सर्वाधिकार सुरक्षित

आम आदमी हूँ मैं

सबसे सरल और सीधा लेकिन मुश्किलों भरा जीवन जीने वाला आम इंसान ।
लेकिन उसे  अपने आप को हरेक परिस्तिथियों में खुश रखना आता है यही सब मेरी रचना में पढ़िये.....

         आम आदमी हूँ
जानता हूँ, जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती हैं।
जीएसटी और नोटबंदी को
त्यौहार सा मना लेता हूँ।
दिये हो तो रोशन कर देता हूँ
वरना ,अंधेरों से काम चला लेता हूँ।  आम आदमी हूँ,ख्वाहिशें
बेचकर गुजारा कर लेता हूँ।
उलझता नहीं मैं अच्छे दिनों की
प्यास में।
जानता हूँ, बरसो बैठा रहा
मेरा राम भी इसी आस  में ।
काले और सफेद(धन)
के चक्कर में नहीं पड़ता ,
मिट्टी में सोना उगाना जानता हूँ।  
जानता नहीं मैं, राजनीति के
दाँव पेच लेकिन 56 इंच का
सीना लिए पहरेदारी करता हूँ
सीमा पर ।
आम आदमी हूँ साहब जीना जानता हूँ
आता है मुझे, अपनी ख्वाहिशों
पर पैबंद लगाना ।
देता हूँ बच्चों को आसमाँ उड़ने के
लिए पर , बंदिशें आरक्षण
की भी जानता हूँ।
सामान्य सी मुस्कान लिए आरक्षण
का दर्द भी झेल जाता हूँ।
हँसता हूँ हर पल जिंदगी जी लेता हूँ। जानता हूँ , जीने का हुनर तो
मरने की कारीगरी भी आती है मुझे !!!
               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                     सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरा स्वाभिमान,my self respect

     मेरा स्वाभिमान
लाई थी साथ ,मैं
अपने स्वाभिमान को।
पर साथ अपने रख ना पाई ।
स्वाभिमान के साथ रिश्तों को
निभाना कठिन लगता है ।
स्वाभिमान जब साथ होता है,
तो रिश्ते सिमटने लगते है।
और जब अपने स्वाभिमान
को पुराने कपड़ो की
तह के नीचे रख देती हूँ तो ,
सब सहज हो जाता है
         संगीता दरक©

दिल❣️की बात Dil ki bat

 

           दिल

सीने में दिल है मेरे,धड़कता भी है 

पत्थर न समझों, इसे पिघलता भी है

                    संगीता दरक©

भूल गए हम.....Bhul gay hum , we forgot .

दोस्तों नमस्कार , आपको कितना याद है और कितना भूल गए  आपने जो बचपन जिया क्या अभी की पीढ़ी वैसा बचपन जी रही है ।शायद नही ,इसी विषय पर मेरी रचना पढिये और् अपने  पुराने दिनों को याद करिये और सोचियेगा की  क्या "भूल गए हम"


भूल गए हम........

पहले भी दो रोटी का जुगाड़ वो करते थे ,पर हमसे बेहतर वो जीते थे।

जीने की जद्दोजहद में, हम जीने के अंदाज भूल गए ।                  

ख्वाहिशों के पीछे,भागते- भागते
रिश्तों के साथ सुस्ताना भूल गए ।

वो खुली छत पर आसमान को निहारना और तारों को गिनना,

गिनने की गिनती हम भूल गए । 


   ना रूठना याद रहा ना मनाना 

सोशल मीडिया के चक्कर में ,अपनों

 की खुशियों को भूलना हम भूल गए।

छुपम छुपाई,राजा मंत्री चोर सिपाही 

पकड़ा और पकड़ी (पुराने खेल)

मोबाइल के गेम के चक्कर में सारे 

खेल खेलना हम भूल  गए। 

   समर कैंप और छुट्टियों में भी 

क्लासेस इन क्लासेस के चक्कर में,

नाना-नानी के घर की मौज 

हम भूल गए । 

 बना लिए बड़े-बड़े मकान और 

खुशियाँ

 जहाँ की खरीद ली     

बस मकान को घर बनाना, 

और थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए ।   

बस थोड़ा सा मुस्कुराना हम भूल गए।

समय और नई सोच के चक्कर में हम परिवार को आगे बढ़ाना भूल गए ।  

   आने वाली पीढ़ी को मामा और बुआ के रिश्तो में बाँधना हम भूल गए ।

दिया सबको सब कुछ बस थोड़ा सा
वक्त देना हम भूल गए।                 

याद रहा जीना हमको बस जीने का

 अंदाज हम भूल गये।।


    संगीता दरक

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#बधाई हो बेटा हुआ-#Congratulations son is born- #badhai ho beta hua

"बधाई हो बेटा हुआ" ये शब्द कितनी बार सुनने को मिलते है हमे ,आज बेटिया बेटो से कम नही है लेकिन आज भी सोच बदली नही है यही  दर्द बताने की कोशिश की है मैने उम्मीद करती हूँ आप सबको पसंद आएगी ।

बधाई हो ....बेटा हुआ
ख़ुशी होती है, मुझे जब सुनती हूँ।
की उसके बेटा हुआ।
इसलिये,खुश नही होती मैं,
की उस माँ के कुलदीपक हुआ।
बल्कि इसलिये की उस माँ को
अब नही सहना पड़ेंगे ताने
नही होगा अब उस पर
नुकीले व्यंग्यो से प्रहार
मिलेगा अब उसकी बेटियो
को थोड़ा प्यार
अब नही सहना पड़ेगी
उसे प्रसव पीड़ा
बेटे के इंतजार में अब
मासूम बेटियाँ
नहीं आएगी इस जीवन में
जिनकी परवरिश
भी नही हो पाती

               ✍️संगीता दरक
                  सर्वाधिकार सुरक्षित

#मुझे गर्व है , #proud of my culture

भारत त्योहारों का देश है, मेरे देश की बात ही अलग है आप भी अपनी संस्कृति को पढ़िये मेरे साथ मेरी रचना में

मुझे गर्व है ........
मुझें गर्व है मेरे सनातन धर्म
और संस्कृति पर
हरेक त्यौहार कुछ न कुछ कहता है
जीवन में रंग भरता रंगों का त्यौहार
तो रिश्तो की मिठास को
बढ़ाता रक्षा पर्व
और करता अँधेरे का नाश
दीपो उत्सव
हर त्यौहार की बात निराली है
त्यौहारों की मिठास और अपनों
का साथ जीवन में लाता है उमंगें नई
हर त्यौहार की बात निराली है
कई सपनों और ख्वाहिशो की
नींव तो दीवाली है
कितना भी हो हम परेशां पर
त्यौहार के आने से मन में
भर जाता उल्लास
बिछड़े अपने भी घर लौट आते है
सारे त्यौहार में अपने मिल जाते है
जीवन को गति देते , ये त्यौहार
ईश्वर में आस्था को दर्शाते
ये त्यौहार
छोटे बड़े सबकी खुशिया का कद
बढ़ाते ये त्यौहार
क्यों न हो हमे गर्व ,
हर त्यौहार हमे जीने का संदेश देते है
👏👏🙏

            संगीता दरक©

मैं दीया माटी का , I am a lamp of clay , M diya mati ka


एक संवाद दीये और मेरे बीच

         "मैं दीया माटी का "
एक दिन पूछा मैंने, दीये से
क्यों जलते हो तुम।
दीया बोला,मैं तो उजाले के
लिए तेल और बाती को साथ
लिएबरसों से जल रहा हूँ ।
आज भी अंधकार को मिटा रहा हूँ। लेकिन यहाँ आदमी-आदमी
को जला रहा है।
मैंने कहा बने हो मिट्टी के,
क्या इस बात से अनजान हो।
दीया बोला मिट्टी का हूँ
जानता हूँ मैं जलता,तपता हूँ ।
तभी तो बिखरकर नए
साँचे में ढलता हूँ।
अपने अस्तित्व को पहचानता हूँ।
तुम इंसानों की तरह
अपनी मिट्टी को नहीं भूलता।
मैंने कहा बिकते हो बाजारों में
फिर इतने अरमान क्यों ?
आएगा एक हवा का झोंका,
फिर इतना अभिमान क्यों,
दीया बोला बिकता हूँ बाजारो में,
लेकिन किसी अमीर की
जागीर नहीं ।
गरीब के घर में भी जलता हूँ ।
उसके सुख-दुख के साथ
चलता हूँ।
मेरे उजाले को तुम बाँट
नहीं पाओगे।
अँधेरे के  खिलाफ हर
जगह मुझे ही पाओगे ।
आए चाहे बयार या कोई
तूफाँ मैं अपने कर्म से नहीं हटता
हाँ होता है मुझे भी अहंकार जब अलौकिक कान्हा के सामने
अपनी ज्योति बिखेरता हूँ
मिट्टी का दीया हूँ, चारों और
प्रकाश बिखेरता हूँ
                संगीता दरक
          सर्वाधिकार सुरक्षित

दीपावली के बहाने ,excuses of diwali

  दीपावली के बहाने......
छोड़कर सारे अफसाने 
मिल जाये हम,
                  इसी बहाने।
मन का मैल करें दूर
मन में चमकाएँ
जीने का नूर,
         इसी बहाने ।
दिल में प्यार की ज्योत जलाए
मिलकर खुशियाँ मनाए हम,
              इसी बहाने ।
करें मंगल कामना हम
भूल कर सारे गम,
                  इसी बहाने।
गम का वनवास करें आज
हम खत्म,
अब ना करें कोई किसी
पर सितम,
आज खाए हम यह कसम,
            इसी बहाने ।
दीप बनकर प्रकाश
फैलाए ,
रोशनी की राह दिखाए हम,
इसी बहाने।
छोड़कर सारे अफसाने
मिल जाए हम
                  इसी बहाने।

           संगीता दरक
       सर्वाधिकार सुरक्षित

#मैं जिंदगी हूँ, #life

""मैं जिंदगी हूँ, कोई बोझ नही""
दो वक्त की रोटी,
और कुछ लिबास
क्या मांग लिया तुझसे ,
मैंने ऐसा खास
जो तू हजार ख़्वाहिशों
के बीच मुझे
जीना ही भूल गया
                     संगीता दरक©

#लाखो चाँद ,#millions of moons

आज चाँद को देखकर चाँद बनने की कोशिश ...हाँ सच में पढ़िये मेरी रचना

       लाखो चाँद
लाखो चाँद, आज टकटकी लगाए
देखेंगे उस चाँद को।
और मांग लेंगे खुशियाँ जहाँ की
करता वो रोशन आसमाँ को ,
तो हम भी इस जमीं की रौनक है।
तू हर रोज घटता बढ़ता है,
तो हम पर भी,
रिश्तों का रंग चढ़ता रहता है।
तेरी शीतलता का जवाब नही,
और हम सादगी और सृजनता में बेमिसाल है।
आज तेरे दर्श को हम यूँ बेताब है,
हमारे लिए तो तू आज  आफ़ताब है।
ऐ चाँद यूँ ही तू रोशन रहना,
और जोड़िया हमारी
सलामत रखना
                    संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित

#मन के दरिया,#river of mind 

मन के दरिया में
भावों की हिलोर उठी
मैं बांधने लगी, शब्दों के पूल
इस मन को,
उस मन तक मिलाने के लिये।।
                    ✍️संगीता दरक©

होलिका दहन #होलिका #दहन #होली #

  होलिका दहन आज उठाती है सवाल! होलिका अपने दहन पर,  कीजिए थोड़ा  चिन्तन-मनन दहन पर।  कितनी बुराइयों को समेट  हर बार जल जाती, न जाने फिर ...