#चलो आज कुछ करते है
चलो कुछ बुनते है ,
मिलकर कुछ बनाते है
खुशियों के दामन को,
काँटों से बचाते हैं
थोड़ा ठहरते है ,
अंधेरो को दूर करते है,
उजालो की और बढ़ते है
चलो आग लगाते है ,
बुझी राख को फिर से जलाते है
नींद से सबको जगाते है
चलो आज सच से मिल आते हैं
सच की तपिश से झूठ
को पिघलाते हैं।
जमीं पर पैर रखकर ,
आसमान को छूते है
चलो आज हवा से बातें करते है
टूटते इंसानों को आज जोड़ते हैं ,
चलो आज इंसान बनकर,
इंसानियत को बचाते हैं
और हैवानो को सजा दिलवाते है
हर दिन नवरात्रि हो ,
ऐसा माहौल बनाते है।
शहर ऐसा बसाते है,
कि बेटिया महफूज रह सके।
"सबक ऐसा उनको सिखाते है,
की रूह काँप उठे"
और फिर कोई हाथ,
किसी बेटी की तरफ ना उठे
चलो आज स्वछता का अभियान,
सही मायने में हम चलाते हैं,
दिलो दिमाग की गंदगी को मिटाते है ।
चलो अपनी संस्कृति को बचाते हैं
पुराना भारत फिर से बनाते है।
चलो आज......
संगीता दरक
सर्वाधिकार सुरक्षित
Bhut shi likha
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