ये रिश्तों की बगिया........
ये रिश्तों की बगिया ,यूँ ही नहीं महकती।
मिट्टी सा समर्पण,और बीज सा धैर्य
रखना होता है।
मिलती तो हैं बहार ,पर पतझड़
को भी सहना पड़ता है,
और काँटों तले फूलों सा
खिलना पड़ता है।
ये रिश्तों की बगिया, यूँ ही नही महकती,
पत्तियों और शाख़ की जिम्मेदारी भी निभानी होती है।
कभी मालिक तो कभी माली बनना पड़ता है।
सुखी टहनियों को,अलविदा कहकर
नयी कोपलों की उम्मीद
जगानी पड़ती है।
ये रिश्तों की बगिया यूँ ही नही महकती,
त्याग और विश्वास से इसे
सींचना पड़ता है।।।
✍️संगीता दरक माहेश्वरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteIt's Fantastic write up
ReplyDeleteअति सुन्दर सृजन
ReplyDeleteToo good writeup
ReplyDeleteअति सुंदर👌👌
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