अधूरे सच और झूठ का साथ,
पछतावे के सिवा, लगे न कुछ हाथ।
सीता पर लान्छन् लगा, जब था राम राज
सच को आज भी मार पड़े, और झूठ करे राज।
जिसको समझे अपना, वो भी साथ न दे
डूबते हो मझधार में ,तो हाथ न दे।
झूठ की जमीं पर ,यूँ सच की इमारत न बनाओ
यही कहीं बैठा हैं ईश्वर ,यूँ नजरे ना छिपाओ।।
संगीता दरक ©
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