चल सखी अबकी बार...
मन के आंगन में हरियाली बिछाते हैं,
खुशियों के फूल खिलाते हैं ।
उमंगो की बुँदे बरसाकर,
मीठी यादों को टटोलकर
चल सखी अबकी बार
इसमें आस के बीज रोपते हैं।
उत्साह और जोश के मौसम में
धैर्य का खाद देते हैं,
आत्मविश्वास की लगा झड़ी
चल सखी अबकी बार मन के आँगन में
हरियाली बिछाते हैं।
भरोसे के बीज से उत्साह का पौधा
निकल आएगा,
उल्लास से हरा-भरा शाखाओं संग इतरायेगा।
कलियों की महक से मन खिल जाएगा,
चल सखी अबकी बार
मन के आँगन में हरियाली बिछाते हैं।
संगीता दरक माहेश्वरी
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