माहेश्वरी है हम. maheshwari hai hum माहेश्वरी है हम


नमस्कार दोस्तो 

आज मेरी रचना का विषय है 

"माहेश्वरी हैं हम" जी में भगवान महेश से उतपन्न माहेश्वरी समाज की बात कर रही हूँ 

माहेश्वरीयों की अपनी एक पहचान है महेश नवमी वंशो उतपत्ति दिवस पर प्रस्तुत है मेरी रचना पढ़िये और जानिए 



Maheshwari h hum

माहेश्वरी हैं हम

माहेश्वरी हैं हम माहेश्वरी है हम

वंशज शिव के हम है,
लोहागर्ल हमारा उतपत्ति स्थल
सेवा,त्याग,सदाचार प्रतीक हमारे है
जीवन में सदा हम इनको अपनाते हैं
सर पर बांधे पगड़ी,
ललाट पर लगता श्री हमारे
हम माहेश्वरीयो के अंदाज निराले है
शिक्षा का हो क्षेत्र
चाहे राजनीति की बाते हो,
हम माहेश्वरी सबसे आगे है
उज्जैन में सिंहस्थ की बात हो
चाहे धाम बद्रीनाथ
सेवा सदन की सेवा
हर कदम पर है साथ
रंग तेरस का रंग हो या हो गणगौर की झेल
सातू तीज की बात निराली है
हर त्यौहार की अपनी एक कहानी है
संस्कारो और संस्कृति के पहरेदार है हम
माहेश्वरी हैं हम माहेश्वरी है हम
व्यापार हो या हो नोकरी
जी जान से करते हैं
कमाये कम या ज्यादा
बड़ी शान से जीते हैं।
72 हमारी खापें और गोत्र सारी है
सतियो और कुल देवी की
महिमा अति भारी है
माहेश्वरी है हम बात हमारी निराली है
करता जिसकी शिव रखवाली है
माहेश्वरी हैं हम माहेश्वरी हैं हम
       संगीता दरक माहेश्वरी
       सर्वाधिकार सुरक्षित

आप अगर माहेश्वरी उतपत्ति दिवस महेशनवमी के बारे में पढ़ना चाहते है तो जरूर पढ़िये आपको लिंक दिया गया है https://sangeetamaheshwariblog.blogspot.com/2021/06/blog-post_13.html

ये जीवन है यही है रंग रूप ,these colors of life

    
सच
संभालो इस सच को,
 हाथ से फिसल न जाये
झूठ की तपिश से पिघलकर
कही बह न जाये ये ।
      हश्र
समंदर भी कही सूखा है
बहता दरिया भी कही रुका है
आती हैं चट्टाने रोकने को "हश्र"उन्ही,
से पूछो क्या उनका होता है।।
         वक्त
वक्त हूँ ठहरता नही बदलता जरूर हूँ
देता हूँ दर्द पर मरहम भी बनता हूँ
गिराता हूँ कभी पर सँभालता भी हूँ
वक्त हूँ ,हरदम साथ निभाता भी हूँ
     दर्द
  दर्द तो दर्द है, दर्द से तो
आह निकलती है
कभी अपनों के लिये गैरो से भी दुआ निकलती हैं
              ख़ुशी
दामन में काँटे सजाकर भी खुश हूँ।मै
आती हैं जब ओरो के दामन से फूलो की खुशबु
             गम
दर्द को बहाना चाहिए
गम का एक अफसाना चाहिये
कभी अश्को मे बह जाता हैं
कभी दिल में रह जाता हैं
                    संगीता दरक माहेश्वरी
                      सर्वाधिकार सुरक्षित

#भूख से पलायन#run out of hunger

   भूख का एहसास कोई भूखा व्यक्ति ही करः सकता है, जिसे पकवान मिलते हो और भूख से पहले ही भोजन मिलता हो वो भूख को नही समझ सकता, और भूख के सामर्थ्य
को भी नही, ये भूख इंसान से क्या क्या करवाती है ।पढ़िये मेरी पसंदीदा रचना
ये मैंने कोरोना महामारी के दौरान पलायन करते मजदूरों पर लिखी

     "भूख" से पलायन
भूख होती क्या? हमें नही पता
हमने देखा और ,पढ़ा है बस ।
क्यों की हमारी भूख की
दस्तक से पहले ही,भोजन
हमारे सामने होता हैं
हमारी भूख का सामर्थ्य,
हमे पता ही नही,
की ये क्या- क्या करवाती है
ये भूख गाँव को
शहर ले आई थी
मिटा न पाया शहर तो आज
फिर भूख गाँव लौट आई
भूख से भागना और
जीने की लालसा,
देखती है आँखे, हजार बातें
किसे भूख नजर आईऔर
किसी ने अपनी भूख मिटाई
फिर पिसता है आदमी ,
अपनी ही किस्मत के पाटो में
मजदूर मजबूर है
अपनी भूख के हाथों।।।
            संगीता दरक माहेश्वरी
              सर्वाधिकार सुरक्षित

घर की अर्थ व्यवस्था में हमारी भूमिका


कोरोना महामारी के कारण सब बंद है लेकिन हम महिलाओं की रसोई कभी बंद नही रहती हमारी जिम्मेदारियां अभी और बढ़ गई है ,ऐसे वक्त में जब आमदनी का कोई साधन नही है तब हमारी भूमिका रसोई से लेकर अर्थ तक हो जाती है पढ़िए मेरे विचार...

आज रसोई में क्या बनाया जाये ।
क्या चीज ख़त्म हुई है किसका स्टॉक है लॉक डाउन और कोरोना के कारण घर की सब्जी दाल ही बना ले आदि का ध्यान हम महिलाये ही रखती है
हम नारियों के बिना सृष्टि का हर काम अधूरा है
घर की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में हम नारियों की  भूमिका
1.स्त्री के बिना  घर की कल्पना संभव ही नहीं है नारी जीवन की धुरी है जब सारे व्यापार व्यवसाय और कामकाज बंद है तब भी हमारा काम चलता रहता है हमे कोई छुट्टी नही कोई अवकाश नही और हमारी सेलेरी परिवार के सदस्यों की मुस्कान है अभी के समय में डॉ,पुलिस और सफाईकर्मी के कार्य सराहनीय है तो हम लोगो का कार्य भी कुछ कम नहीं कोरोना महामारी से बचने के कारण जो लॉक डाउन हुआ है उससे हमारी आर्थिक व्यवस्था गड़बड़ा गई है आमदनी तो रुक गई है लेकिन खर्च यथावत या यूँ कहु कुछ बड़ गया है ऐसे समय में हमारी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है यूँ तो  परिवार के हर मौके पर चाहे वह खुशी हो चाहे दुख की घड़ी हो हमारीभूमिका महत्वपूर्ण ही है
2.हम महिलाएँ  बचत करने में निपुण होती है  हम बचत ऐसे  वक्त के लिए ही करते हैं हमारे बचत विषमपरिस्थितियों में ही काम आती है  रसोई में हमारी भूमिका अभी हमें घर की सब्जी दाल का उपयोग करना चाहिए और ऐसी खाद्य वस्तुओं का उपयोग कम मात्रा में करना चाहिए जो बाजार से लाना पड़े हमें एक सब्जी  या दाल से भी काम चला लेना चाहिए ।
हमारे आस पास कोई ऐसा व्यक्ति या परिवार भोजन चाहता हो तो उसे हम कम मूल्य पर भोजन बनाकर दे सकते हैं हम घर पर मास्क और सैनिटाइजर भी बना सकते हैं और चाहे तो न्यूनतम मूल्य पर मास्क और सैनिटाइजर दूसरों को दे भी सकते हैं ऐसे समय जब पुरुषों की आमदनी का कोई स्रोत नहीं है तब हम अपनी दक्षता से उनको संबल प्रदान कर सकते है अभी 31मई तक लॉक डाउन का समय हो सकता है और  कोरोना महामारी का नियंत्रण  ना हो  तो ये अवधि बढ़ भी सकती है इसलिये तब तक उचित मात्रा में ही धन का व्यय करें जरूरी हो तभी और लॉक डाउन  खुलने  के बाद फालतू की फिजूलखर्ची ना करें हमें सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए अपने परिवार को स्वस्थ रखना है  हम पहले जो ऑनलाइन खरीदी करते थे उसको नहीं करते हुए हमें देश के व्यापारी भाई से ही खरीददारी करना है अभी
कोरोना महामारी ने हमें अपने पराए की पहचान कराई है विदेशी कंपनियों ने हमारे देश को कोई मदद नहीं की है स्वदेशी कंपनियों ने हीं मदद की है यह ध्यान रखना चाहिए आप अपनी आय के स्रोत ऐसे  भी शुरू कर सकती हैं आप अपने कौशल को मोबाइल के माध्यम से शेयर करके पैसे कमा सकती है
सरकार भी अर्थव्यवस्था को संभालने में बहुत सी  योजनाये शुरु करेंगी हम भीअपनी खर्च को कम करने  के उपाय कर सकते है
3.हम अभी घर का खाना ही खा रहे हैं और गाड़ी का उपयोग भी नही कर रहे हम इस फिजूल खर्ची को भी रोक सकते है   हम अपने परिवार के  उत्सव आयोजन में भी खर्च की संख्या निर्धारित निर्धारित कर सकते है
4.अभी लॉक डाउन के कारण  मृत्युभोज भी बंद हो गए हैं अगर यह हमेशा के लिए बंद हो जाए तो यह फिजूलखर्ची रुक सकती है हमारे समाज में होने वाली शादियों में भी पकवानों की संख्या निर्धारित हो जाए जाए जाए और एक सीमा तक खर्च निर्धारित हो तो इस पर भी फिजूलखर्ची भी फिजूलखर्ची रुक सकती है और  भी  ऐसे रिवाज जिसमें दिखावा होता है और जिसमें फिजूलखर्ची होती वह बंद हो जाना चाहिए ।
5.एक खास बात पहले के समय में हमारे बड़े अपना काम खुद ही करते थे आजकल सभी घरों में कामवाली आती है अभी लॉक डाउन के समय भी तो हम अपना काम खुद कर रहे है फिर हमेशा क्यों नही ये भी हमारी बचत का हिस्सा होगा
हाँ अगर आप जॉब करती है तो ठीक है पर हम अपना काम स्वयं करेंगे तो स्वस्थ भी रहेंगे ।
       जय महेश
        संगीता दरक माहेश्वरी
          सर्वाधिकार सुरक्षित
        
         

#ख्याल_हूँ _तेरा_#Love_think_ of_ you


ख्याल
हूँ तेरा
ख्याल हूँ तेरा, सोच तो सही
हर कदम पर साथ हूँ तेरे
मंजिलो की और कदम बड़ा तो सही

धड़कती हूँ तेरे दिल में,धड़कन सी
तू साँसे लेकर तो देख
तेरी हर बात में ,बात मेरी है
तू बात करके तो देख

तेरा हर ख़्वाब ,मेरी हदों से गुजरता है
तू ख़्वाब को हकीकत करके तो देख
दर्द में शामिल हूँ ,तेरी खुशियों की पहरेदार हूँ

वक्त हूँ  तेरा ,तू आज़माकर तो देख
ख्याल हूँ तेरा, तू मुझे सोच
कर तो देख 

लफ़्ज़ों में शामिल हूँ तेरे,
कागज़ पर उतार कर तो देख  
  तेरी हर साँस पर पहरा है मेरा,
मेरे प्यार की गहराई,
नाप कर तो देख 

  मर न जाऊ ,तो कहना
तू कभी कह कर तो देख
ख्याल हु तेरा ,तू सोचकर तो देख

           संगीता दरक माहेश्वरी
             सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरे इश्क को,to my love,status,shyari , Love

        मेरे इश्क को❤️
1. मेरे इश्क को रफ्तार देती हैं
तुम्हारी तन्हाइयां
मेरे अक्स में दिखती है
तुम्हारी परछाईयां

2. मेरे इश्क को तेरी आदत सी हो गई हैं
तूने आदतें ही बदल ली ये और बात है

3. इश्क जो मुकम्मल हो जाता तो वो इश्क, इश्क कहाँ रहता
और दर्द को जो दिल में बसाये बैठे है
वो दर्द कहाँ रहता

                 ❤️संगीता दरक माहेश्वरी
                       सर्वाधिकार सुरक्षित

जीवन की उधेड़ बुन


     जीवन की उधेड़बुन
रिश्तो की उधेड़ बुन मै लगी हूँ 
जो मतलब के रिश्ते है,

 नकोउधेड़  रही हूँ 

रूठे रिश्ते बुन रही हूँ ,
जीवन की इस दौड़ -धुप में ,

अपनों का साया हो |
आशाओ की ऐसी चादर बुन रही हूँ !
अनसुलझे ख्वाब,अधूरी चाहतो को उधेड़ रही हूँ  !
सच्चे और नेक चेहरे ,बुन  रही हूँ
चलता रहे जीवन मिलती रहे मंजिले ऐसा काफिला बुन  रही हूँ !!
जिंदगी की उधेड़ बुन में लगी हूँ  |
लम्हा लम्हा बुनती हूँ , सदियों की आस में  !
गम को उधेड़  रही हूँ खुशियों की प्यास में  !
आओ बुनते है ऐसी खुशियों भरी जिंदगी  ,
जिसमे पैबंद ना हो गम का  |
जीवन की उधेड़ बुन में लगी हूँ !!!

संगीता दरक माहेश्वरी 

सर्वाधिकार सुरक्षित 


हर एक दिन माँ के नाम हो,every day mother's name,Maa,

    
               माँ
"माँ " इस शब्द में पूरी सृष्टि समाई हुई है
क्या एक ही दिन माँ को याद करने का होता है  या बिना माँ को  याद किये कोई दिन गुजरे ही नही  ऐसा होता है
जब हम छोटे रहते तो माँ का चेहरा हमारे लिए खास होता है जब बचपन में हम चलना सीखते तो माँ का हाथ उनकी बाहों का हमे जो सहारा मिलता वो किसी जन्न्त से कम नही होता
जैसे जैसे हम बड़े होते हम माँ से दूर होते जाते हम भूल जाते की जिस माँ से हमने जीना  सीखा  हमे लगता है कि हम माँ से ज्यादा समझते हैं
जिस माँ की गोद में जाने के लिये
हम तड़पते है उस माँ के लिये
अब हमारे पास वो तड़प और
वक्त है ही नहीं माँ से बात करने
का उसके पास बैठने का
हमारे पास समय नही
सब अपनी जिंदगी में व्यस्त है माँ बाप को आज भी हमारी फ़िक्र है लेकिन हमें अपने आप से फुर्सत नही
मैं ये भी नही कहती की सब  ऐसे होते हैं लेकिन जो ऐसे है उनको तो समझना होगा
वो आँखे जिनमे कभी  तुम्हारे सपनो की चमक हुआ करती थीं अब धुंधला गई है उनको तुम्हारी परवाह ( नजरो )की जरूरत है
आज भी उनकी धड़कनों को रफ्तार मिल जाती है जब तुम खुश होते हो
अभी भी वक्त है वरना कांधे पर रखकर जब छोड़ने उनको (माँ-पिता )जाओगे तो बड़ा पछताओगे ।लेकिन तब बहुत देर हो चुकी होगी इस दुनिया में सब मिलते एक माँ और पिता का रिश्ता है जो दुबारा नही मिलता
माँ जो कई रिश्तों से गुजरते हुए "माँ" के मुकाम पर ठहर जाती है एक स्त्री जब माँ बनती है तब उसे पूरी कायनात मिल जाती है उसका जीवन पूर्ण हो जाता है
माँ क्या नही बनती हमारे लिये जीवन भर हमारी ढाल बनती माँ आपको नमन है
       संगीता  माहेश्वरी दरक
              सर्वाधिकार सुरक्षित
    

घर से निकला .....

दो वक्त की रोटी कमाने हम कितनी दूर निकल आये,,,,,,

घर से निकला था,,,,,,,,
🏚️घर से निकला था
बहुत सारा वक्त लेकर
पर लगता हैं
सब खर्च हो गया
हो सके तो
माँ थोड़ा वक्त और भिजवा देना
दो वक्त की रोटी,और थोड़ी सी ख्वाहिशे निकला था कमाने, क्या पता था सबकुछ गँवा बैठूँगा!!!
               ✍️संगीता दरक माहेश्वरी
                         सर्वाधिकार सुरक्षित
    

बन बैठा हर कोई :हिन्दीकविता:#kavi#kaivita #shorts

 शॉल श्री फल और सम्मान मिलना हुआ कितना आसान बन बैठा हर कोई कवि  यहाँ कविताओं की जैसे लगाई दुकान         संगीता दरक माहेश्वरी