जीवन की उधेड़ बुन


     जीवन की उधेड़बुन
रिश्तो की उधेड़ बुन मै लगी हूँ 
जो मतलब के रिश्ते है,

 नकोउधेड़  रही हूँ 

रूठे रिश्ते बुन रही हूँ ,
जीवन की इस दौड़ -धुप में ,

अपनों का साया हो |
आशाओ की ऐसी चादर बुन रही हूँ !
अनसुलझे ख्वाब,अधूरी चाहतो को उधेड़ रही हूँ  !
सच्चे और नेक चेहरे ,बुन  रही हूँ
चलता रहे जीवन मिलती रहे मंजिले ऐसा काफिला बुन  रही हूँ !!
जिंदगी की उधेड़ बुन में लगी हूँ  |
लम्हा लम्हा बुनती हूँ , सदियों की आस में  !
गम को उधेड़  रही हूँ खुशियों की प्यास में  !
आओ बुनते है ऐसी खुशियों भरी जिंदगी  ,
जिसमे पैबंद ना हो गम का  |
जीवन की उधेड़ बुन में लगी हूँ !!!

संगीता दरक माहेश्वरी 

सर्वाधिकार सुरक्षित 


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