ये जीवन है यही है रंग रूप ,these colors of life

    
सच
संभालो इस सच को,
 हाथ से फिसल न जाये
झूठ की तपिश से पिघलकर
कही बह न जाये ये ।
      हश्र
समंदर भी कही सूखा है
बहता दरिया भी कही रुका है
आती हैं चट्टाने रोकने को "हश्र"उन्ही,
से पूछो क्या उनका होता है।।
         वक्त
वक्त हूँ ठहरता नही बदलता जरूर हूँ
देता हूँ दर्द पर मरहम भी बनता हूँ
गिराता हूँ कभी पर सँभालता भी हूँ
वक्त हूँ ,हरदम साथ निभाता भी हूँ
     दर्द
  दर्द तो दर्द है, दर्द से तो
आह निकलती है
कभी अपनों के लिये गैरो से भी दुआ निकलती हैं
              ख़ुशी
दामन में काँटे सजाकर भी खुश हूँ।मै
आती हैं जब ओरो के दामन से फूलो की खुशबु
             गम
दर्द को बहाना चाहिए
गम का एक अफसाना चाहिये
कभी अश्को मे बह जाता हैं
कभी दिल में रह जाता हैं
                    संगीता दरक माहेश्वरी
                      सर्वाधिकार सुरक्षित

1 comment:

  1. अति सुंदर, हर छंद अपने आप मे सच लिए हुए है।
    बहुत बढ़िया,इसी तरह लिखते रहिये ।
    🌈👌👌👌👌👌🌈

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