पुरुष, Male, purush

.                   ।। पुरुष।।
ये पुरुष, जैसे विशाल समंदर का आगाज़
अनंत  गहराई   उसमें  छिपे  राज़
छत मेरी,सर पे उसके 

जिम्मेदारियों का ताज
भावनाओं के किनारों में, 

ये कभी बंधता नहीं
कभी शांत, कभी उफ़ना के, 

शांत रहता नहीं
वोअपनी बात,कभी किसी से 

कहता भी नही,
रिश्तों में बंधा हुआ बेटा,भाई पति,व पिता
सबके सपनों को सदा 

अपनी आँखों में बुनता
हमेशा अपने चेहरे पर, 

मुसकान से खिलता,
विषम परिस्तिथियों में जैसे 

मजबूत कांधा हो ,
प्रकृति ने इसे जैसे अति 

कठोरता से सँवारा हो ।
बचपने से बुढ़ापा मज़बूती से 

उसे निखारा हो ।
अपनी भावनाओ को वो,

बाखूबी से छिपाता है ,
बेटी,बहन,पत्नी,माँ के 

लिये खुशियाँ लाता है
इच्छाऐं  बेच कर,वो सपने सबके ख़रीदता है
     हाँ ये पुरुष समंदर सा होता है ......
               ✍️संगीता दरक
             सर्वाधिकार सुरक्षित

2 comments:

  1. वाह, बिल्कुल सही लिखा है 👏

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  2. वाह बहुत खूब 🌹

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