ना जाने दौर ये कैसा आया,I don't know how it came , na jaane daur ye kaisa aaya

कोरोना काल में दिल में दर्द था तो कलम भी यही बंया करः रही

कैसी है ये अंतिम विदाई

ना जाने दौर ये कैसा आया,
ना अपनों का कांधा पाया,
ना तो कोई रस्म निभाई,
कैसी है ये अंतिम विदाई ।

जीवन के कुरुक्षेत्र में, कितने
किये प्रपंच
मृगतृष्णा में रहा दौड़ता ,
जीवन कसता तंज।
जोड़ा सब ,ना जुड़ा राम से,
कितना तू अज्ञान
ईश्वर सत्ता सर्व विदित है ,
मत कर तू अभिमान।

ना जाने दौर ये कैसा आया,
ना अपनों का कांधा पाया,
ना तो कोई रस्म निभाई,
कैसी है ये अंतिम विदाई...  🙏 
       ✍️संगीता दरक©

2 comments:

  1. अत्यंत संवेदनशील और सटीक,केसी विडंबना आई अपनो को दे भी न सके अंतिम विदाई।🙏🙏🙏

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  2. bahut marmik bahut bura samay aaya insaan hi inssan se dur bhaga

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