ये पत्थर ,these stones

 इस पत्थर का सफर भी बड़ा अजीब है इसने आदमी के असभ्य से सभ्य होने तक साथ दिया

इस पत्थर के कई रूप है जैसा चाहा वैसा हमने इसे बनाया पढ़िए पत्थर की व्यथा मेरे शब्दों में            

                  ये पत्थर

      ये पत्थर चट्टान सा मजबूत था,

    लगा जिसके सिर उसके लिये यमदूत था!

    पर जब बिखरा तो बिखरकर टूट गया,

  जैसे अपनों का साथ इक पल में छूट गया!

   कभी इसे नींव का तो कभी मील का

     पत्थर बनाया,

   मिले तराशने वाले हाथ तो देकर आकार 

    किसी देवालय में बैठाया!

   कभी मस्जिद की दीवार में तो कभी 

    मंदिर के कंगूरों में सजाया,

  कभी बनाकर सेतु सागर पार करवाया!

कभी इसे रत्न शान शौकत तो कभी 

ठोकर में लुढ़काया,

  कभी किसी राह का रोड़ा तो कभी जोर               आजमाइश में आजमाया!

   इस पत्थर को हमने भी क्या खूब आजमाया,

   असभ्यता और सभ्यता के बीच का 

   सफर भी इस पत्थर ने पार करवाया!

   ये पत्थर तो आखिर पत्थर है फिर क्यों 

    हमने मानवता को पत्थर बनाया।

  और  धर्म के नाम पर इसे 

    अपना हथियार बनाया!


           संगीता दरक माहेश्वरी©

जमाने की भीड़........

         ज़माने की भीड़....

     जमाने की भीड़ से न रख वास्ता,

       बस ईश्वर में  रख तू  आस्था।

         झूठ से न रख वास्ता,

      चुन हरदम तू सच का रास्ता।

   निराशाओं का जीवन से न हो वास्ता,

   आत्मविश्वास भरपूर रख तू अपने अंतस्था।

    जीवन मे रोगों से न हो वास्ता,

     हरदम अपना तू  योग, प्राणायाम का रास्ता।

    रहे आनन्द ही आनन्द चाहे हो कोई अवस्था,

    बनाये रखना जीवन मे तू अपने अनुशास्ता।

     अभिमान अहंकार से न हो वास्ता,

    रखना तू हरदम  याद  ईश्वर की है ये

    प्रशास्ता (सत्ता) ।

        जमाने की भीड़ से न रख वास्ता,

          बस ईश्वर में रख तू आस्था।

              संगीता दरक माहेश्वरी©

बूढ़े माता पिता

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