इस पत्थर का सफर भी बड़ा अजीब है इसने आदमी के असभ्य से सभ्य होने तक साथ दिया
इस पत्थर के कई रूप है जैसा चाहा वैसा हमने इसे बनाया पढ़िए पत्थर की व्यथा मेरे शब्दों में
ये पत्थर
ये पत्थर चट्टान सा मजबूत था,
लगा जिसके सिर उसके लिये यमदूत था!
पर जब बिखरा तो बिखरकर टूट गया,
जैसे अपनों का साथ इक पल में छूट गया!
कभी इसे नींव का तो कभी मील का
पत्थर बनाया,
मिले तराशने वाले हाथ तो देकर आकार
किसी देवालय में बैठाया!
कभी मस्जिद की दीवार में तो कभी
मंदिर के कंगूरों में सजाया,
कभी बनाकर सेतु सागर पार करवाया!
कभी इसे रत्न शान शौकत तो कभी
ठोकर में लुढ़काया,
कभी किसी राह का रोड़ा तो कभी जोर आजमाइश में आजमाया!
इस पत्थर को हमने भी क्या खूब आजमाया,
असभ्यता और सभ्यता के बीच का
सफर भी इस पत्थर ने पार करवाया!
ये पत्थर तो आखिर पत्थर है फिर क्यों
हमने मानवता को पत्थर बनाया।
और धर्म के नाम पर इसे
अपना हथियार बनाया!
संगीता दरक माहेश्वरी©
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