दो जून की रोटी
गोल-गोल रोटी जिसने पूरी दुनिया को अपने पीछे गोल-गोल
घुमा रखा है। यह रोटी कब बनी यह कहना थोड़ा मुश्किल है
पर हाँ, जब से भी बनी है तब से हमारी भूख मिटा रही है।
आज दो जून की रोटी की बात करते है,
अक्सर कहा जाता है कि हमें दो जून की रोटी भी
नसीब नहीं हो रही।
"दो जून की रोटी" यह पंक्ति साहित्यकारों ने, फिल्मकारों ने
सभी जगह काम में लिया है।
फिल्मों की बात करे तो उसमें भी रोटी का जिक्र हुआ "रोटी" और "रोटी कपड़ा और मकान" जो उस समय की सुपर हिट फिल्म हुई
इतना ही नही साहित्य जगत में प्रेमचंद जी ने भी रोटी की महिमा का बखान किया
जून शब्द अवध भाषा का है जिसका अर्थ होता है समय।
तो दो जून अर्थात् दो समय की रोटी यानी दो समय का भोजन।
जानकारों की माने तो कहा जाता है कि जून में भयकंर गर्मी पड़ती है और इस महीने में अक्सर सूखा पड़ता है।
इसकी वज़ह से चारे-पानी की कमी हो जाती है। जून में ऐसे इलाकों में रह रहे ग़रीबों को दो वक्त की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
इन्हीं हालात में 'दो जून की रोटी' प्रचलन में आई होगी।
यह रोटी (Roti) शब्द संस्कृत के शब्द ‘रोटीका’ से आया और यह बात को 16वीं शताब्दी में लिखित आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी मिलता है।
साथ ही 10 वीं और 18 वी शताब्दी में भी रोटी का ज़िक्र किया गया।
हम आदिम मानव के समय की बात करें तो,
तब वह अपनी भूख जानवरों के शिकार और फल से
मिटाते थे फिर आग की खोज और उसके बाद अनाज और उसके
बाद रोटी बनी होगी जो आज जिसे लोग फुलका, चपाती,
रोटली एवम् भाखरी वगैरह के नाम से भी पुकारते हैं।
यह हम भारतीयों का ख़ास भोजन है।
आज चाहे जो फास्टफूड मिलता हो पर रोटी के बिना
सब अधूरा लगता है। ख़ासतौर से उत्तर भारत में जहाँ गेहूँ की पैदावार ज़्यादा है। कहा भी जाता है कि हमारी पहली ज़रूरत रोटी कपड़ा और मकान होती है ।
इसकी अहमियत का अन्दाज़ा हमारी कहावतों में भी मिल जाता है। जैसे लोग कहते हैं कि फलाने गाँव से हमारा ‘रोटी-बेटी का रिश्ता’ है।
अब रोटी चाहे गोल हो या हो कोई और आकार, पतली हो चाहे मोटी, घी में चुपड़ी हो या सूखी हो, उसके साथ प्याज हो या चटनी, दाल हो या हो ढेर सारी सब्जियाँ। रोटी ने अपनी भूमिका हरेक के साथ निभाई दाल रोटी हो या प्याज रोटी हो रोटी ने कभी भी अपना कदम पीछे नही हटाया।
महंगे आधुनिक रसोईघर में बनी हो चाहे खुले आसमान के नीचे रोटी भूख तो मिटाती ही मिटाती है।
रोटी ने अपने रूप भी बदले पराँठे तन्दूरी लच्छा नान और
भी न जाने क्या-क्या ।
और इस रोटी के लिए इंसान क्या-क्या करता है, किसी को यह आसानी से मिल जाती और किसी को बड़ी मुश्किल से
यह रोटी आलीशान महलों से लेकर झोपड़ी तक किसी अमीर की थाली से ग़रीब के हाथों में दिखाई देती है।
कहते है कि आदमी इस पापी पेट के खातिर सब कुछ करता है, यह रोटी इंसान से अच्छे-बुरे सभी कर्म करवाती है।
ईमानदारी की रोटी से मन तृप्त हो जाती है,
वही बेईमानी की रोटी से मन ही नहीं भरता।
तो आप सब भी दाल रोटी खाओ और प्रभु के गुण गाओ ।।
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